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"जनादेश" करीब सवा तीन महीने की जद्दोजेहद के बाद एक बार फिर पाठकों के बीच है। इस दौरान "जनादेश" लाइव होते हुए पाठकों को खबरें नही दे पा रहा था। दरअसल, इस साल बजट सत्र से ठीक एक दिन पहले 28 अप्रैल 2018 को दोपहर को अचानक "जनादेश" का प्रसारण बंद हो गया। इस बावत जब मैंने अपने इंजीनियर पवन यादव से संपर्क किया, तब उसने बताया कि बेव की हो​सटिंग की रिन्यू करवाने की तारीख खत्म होने के कारण प्रसारण बाधित हुआ है।

तब मैंने नाराजगी व्यक्त करते हुए पवन से कहा कि ऐसी ज़रूरी तारीख का एलर्ट आता है, तब आपने रिन्यू क्यों नही करवाई? इस पर पवन का तर्क था कि जिस मोबाइल नंबर पर यह दर्ज था, वह गुम हो गया। अब हमें उस कंपनी से अपना डेटा बेस लेना होगा। क्योंकि अब दूसरा कोई विकल्प नही था। लिहाजा मैंने पवन से कहा कि जल्द से जल्द इस काम को अंजाम दो, संसद का महत्वपूर्ण बजट सत्र चल रहा है। उसके बाद पवन यादव ने 3 फरवरी को मुझसे मेरा ईमेल आईडी और पासवर्ड मांगा, ताकि डोमिन को नई होस्टिंग में ट्रांसफर किया जा सके। मैंने उसे यह उपलब्ध करवा दिया।

पवन ने कहा कि डेटा अपलोड होने में थोड़ा समय लगेगा। पवन ने 3 फरवरी को "जनादेश" लाइव कर दिया, लेकिन उसका लोगो गायब रहा। उसके बाद पवन ने 13 फरवरी को मुझे बताया कि बेव साइट डेटा के साथ अब लाइव हो गई है और उसका पासवर्ड भी पुराना ही है। लिहाजा मैंने 13 फरवरी से बेव को अपडेट करवाना शुरू कर दिया। लेकिन 15 फरवरी को अचानक बेव की सेटिंग बिगडने लगी।

जब मैंने इस तकनी​की खराबी की जानकारी दी, तब पवन यादव ने कहा कि इसके साथ किसी छेड़खानी की है। तब मैंने उससे कहा कि इसका पासवर्ड ​तुम्हारे और मेरे पास है। फिर छेड़खानी कौन कर सकता है। उसके बाद 18 फरवरी को पवन का मोबाइल पर मैसेज आया कि आज बेव साइड फिर लाइव हो जाएगी। लेकिन ऐसा नही हुआ। इसके बाद पवन ने मेरा फोन उठाना बंद कर दिया।

काफी परेशान होने के बाद मैंने पवन से संपर्क करने के लिए अपनी छोटी बेटी अक्षरा से कहा, अक्षरा पढाई के साथ साथ "जनादेश" की शुरूआत से सहयोग कर रही थी। लिहाजा उसका पवन के साथ पहले भी संपर्क रहा था। मार्च के महीने में पवन ने बेटी के साथ चेट में अचानक अपने तेवर बदल लिए। उसने कहा कि डेटाबेस तो मुझे पैसा मिलने के बाद ही मिलेगा। उस पर अक्षरा ने कहा कि आप अपना बिल और जो भुगतान आपको मिला है। उसकी डिटेल लेकर आ जाएं, आपका जो भु्गतान होगा, वह कर दिया जाएगा। बेव को क्यों नुकसान पहुंचा रहे हैं। पवन ने जब इस पर भी तबज्जों नही दी, अक्षरा ने कहा​ कि अगर आप नही आ सकते, तो अपने घर का पता दे दें, हम संपर्क कर लेंगे।

इस पर पवन ने अपने घर का पता और आने से इंकार करते हुए कहा कि आॅन लाइन पेमेंट के बाद डेटाबेस मिलेगा। लेकिन भुगतान कितना चाहिए, इसका खुलासा नही किया। तब मेरी बेटी ने पवन से कहा कि अगर पापा कानूनी कार्रवाई करवाएंगे, तब आपको ज्यादा परेशानी होगी। इसके बावजूद पवन ने इस मामले में कोई तबज्जो नही दी। मैंने पवन की मां के फोन उठाने पर समझाया कि माता जी पवन गलत कर रहा है। उसे समझाऐ कि परेशान नही करे। मैसेज के माध्यम से काफी समझाने के बाद जब पवन नही माना तब परेशान होकर मैंने 7 अप्रैल 18 को मधु विहार थाने में शिकायत दर्ज करवा दी और होस्टिंग के लिए किसी दूसरी कंपनी से संपर्क किया। होस्टिंग करने वाली नई कंपनी के इंजीनियर ने बताया कि "जनादेश" का डोमिन अब मेरे एकाउंट में नही है। उसे पवन ने ट्रांसफर कर लिया है।

दरअसल इस सिलसिले में मैं सबसे पहले डीसीपी आफिस मे किसी आला अफसर से मिलने पहुंचा। तब मेरी मुलाकात आर्इ्पीएस आफिसर जसमीत सिंह जी से हुई। बहुत ही सज्जन व्यक्ति है। हुआ यूं कि अपनी व्यथा सुनाने से पहले मैं थोड़ा भावुक हो गया और अपनी व्यथा कह नही सका। मैंने उनसे अनुरोध किया कि क्या पानी मिल सकेगा। सिंह साहब ने पानी के सा​थ चाय भी पिलवाई और मेरी पूरी व्यथा को सुना। उन्होंने मधु विहार थाने के एसएचओ विक्रमजीत सिंह विर्क को फोन करके मेरी मदद करते हुए निर्देश दिया। मैं डीसीपी आफिस से थाने आया और एसएचओ साहब के निर्देश पर मामले की शिकायत दर्ज करवा दी। यह मामला एएाआई सुधीर कुमार को सौंपा गया ​था। मैं सुबह शाम सुधीर कुमार जी को परेशान कर रहा था। इस क्रम में सुधीर जी ने कहा कि अगर वह नही मानेंगा, तो मामले को साइबर सेल को भेजना होगा।

इस मामले की थाने में रिर्पोट करने के बाद मैंने होस्टिंग के लिए एक नई कंपनी से संपर्क किया और उससे कहा कि वह इसको लोगो के साथ नये सरबर से लाइव कर दें और बेव की मेंटिनेंस का कैप्शन लिख दें। उस कंपनी के इंजीनियर ने बताया कि डोमिन मेरे एकाउंट में नही है। तब मैं पुन्: ​जसमीत सिंह से मिला और उनको यह नया डेवलपमेंट बताया। तब सिंह साहब ने एसएचओ साहब से कहा कि यह मामला साइबर क्राइम है। उस लड़के को समझा दो, नही मानें तो एफआईआर दर्ज करवा कर उठवा लो। इसके बाद सुधीर कुमार जी उसी दिन पवन यादव के नजफगढ़ स्थित निवास गये, लेकिन पवन के घर में ताला लगा होने के कारण वह पडौसी को संदेश छोड़ आये थे। इसके बाद पवन ने जब सुधीर जी से संपर्क नही किया।

तब मैंने एसएचओ साहब से अनुरोध किया कि अब पवन के घर जाने की कोई जरूरत नही है। अब वह दो अपराध कर चुका है। लिहाजा फोन पर नही माने, तो मामला दर्ज करके कार्रवाई करें। सुधीर जी ने पवन से संपर्क किया, तब उसी दिन यानि 18 अप्रैल को अचानक पवन ने मेरी बेटी से संपर्क किया और कहा कि वह डोमिन देने को राजी है और उसे पैसा भी नही चाहिए। बस सर अपना इमेल आईडी और पासवर्ड दे दें। बेटी ने उसे मुझसे संपर्क करने के लिए कहा। तब मैंने उसे अपने नये इंजीनियर का नंबर दिया और कहा कि अब जो कुछ आपको ट्रांसफर करना है। वह मेरे नये इंजीनियर को दें। अब अब 5 मई से "जनादेश" का प्रसारण पुन: शुरू हो गया। इस दौरान "जनादेश" लाइव होते हुए भी पाठक खबरों से वंचित रहे, उसके लिए क्षमाप्रार्थी हैं। हम मजबूर थे, क्योंकि इसका नियंत्रण 2012 से जो व्यक्ति कर रहा था। संभवत: उसकी नीयत में खोट आ गया था।

2012 जब "जनादेश" शुरू हुआ था। तब पवन यादव इंजीनियरिंग के छात्र थे और जिस कंपनी ने इस न्यूज बेव को तैयार किया था, वहां इंटर्न थे। उन्हें नौकरी की तलाश थी, लिहाजा उस कंपनी के मालिक ने खबरे अपलोड करने के लिए पवन को साथ जोड़ दिया। उस वक्त पवन खबरें अपलोड करने के साथ—साथ बेव को डेवलप करने के कंपनी के काम भी कर रहा थे। लिहाजा उस तैयार न्यूज बेव साइट आपका "जनादेश" के कंट्रोल पैनल का पास वर्ड पवन के पास भी था।

2015 में जब मैंने स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर "जनादेश" को जीवित रखने का संकल्प लिया, तब मैंने पहले उस कंपनी के मालिक से संपर्क का प्रयास किया था। उनसे संपर्क नही होने की दशा में जब मैंने पवन यादव से संपर्क किया। तब उसने बताया कि वह तो अपने गांव गोरखपुर वापस चले गये है। लेकिन अब मैंने यह काम शुरू कर दिया है। मैंने कहा कि तुम कल मुझसे रायसीना रोड़ स्थित मीड़िया सेंटर में मिलो। वह 9 जून 2015 को मुझसे ​मिला। इस मुलाकात के दौरान मैंने पवन से कहा कि ​मैं चाहता हूॅं कि "आपका जनादेश" की जगह अगर सिर्फ "जनादेश" मिल जाए तो बेहतर होगा। पवन को मैंने दस हजार रूपये भी दिये।

अगले दिन पवन ने जानकारी ​दी कि "जनादेश" डॉट इन मिल गया है। फिर 11 जून को पवन से सुबह—सुबह बताया कि "जनादेश" लाइव हो गया है। इस लंबी लड़ाई के बाद अब समझ में आया कि एक दिन में पवन ने इतने बड़े प्रोजेक्ट को कैसेे अंजाम दिया था। चूंकि "आपका जनादेश" का नियंत्रण पवन के पास था। लिहाजा उसने उस बेव साइट से आपका हटाकर और सभी फाइलों को खाली करके नये सरबर से लाइव कर दिया। यानि पवन ने मेरी पुरानी बेटरी को चार्ज् करके 24 घंटे में मुझे सौंप दिया। मैं खुश था कि समय ज्यादा नही लगा। पवन ने इस काम के लिए 15 हजार रूपये मांगे थे। इसमें दो साल की होस्टिंग और डोमिन का खर्च शामिल था। चूंकि अब विवाद निपट चुका है। लिहाजा इतना ही कहुंगा कि पवन ने मेरे ही माल को दोबारा बेच दिया और लगातार नुकसान पहुंवाने की प्रयास किया। इसके बावजूद मैं अब उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नही करवाना चाहता हॅूं।

लेकिन पवन को याद दिलाना चाहता हॅूं कि उसने एक साल के लिए डोमिन लिया और साल पूरा होने से पहले मैं लगातार पवन को याद दिलाता रहा, लेकिन पवन ने 9 जून 2016 तक इसे रिन्यू नही करवाया और मेरा फोन उठाना भी बंद कर दिया। मुझे इसी दिन लखनऊ जाना था। लिहाजा मैंने अपने पत्रकार मित्र अंदलीब अखतर से संपर्क किया, जो इस क्षेत्र के पुराने खिलाड़ी हैं। उनसे मैंने डोमिन रिन्यू की समस्या का ज़िक्र किया। उन्होंने गोडेडी से संपर्क करके एक साल के लिए रिन्यू करवा दिया। होस्टिंग पवन देख रहे थे। लिहाजा 11 जून 2016 को प्रसारण जारी रहा।

उसके बाद कई बार मैंने पवन से कहा कि इसका कंट्रोल मुझे दे दो। हर बार पवन टाल गया। होस्टिंग बदलने की जब मैंने बात कही, तब उसने कहा कि अभी चलने दीजिए। कोई दिक्कत नही है। यूं तो यह मेरी ही गलती है। जब पवन ने डोमिन रिन्यू के समय दगा दिया था। तब मुझे आगे उस पर विश्वास नही करना चाहिए था। लेकिन तब मुझे लगता था कि अनुभव की कमी के चलते यह गलतियां कर रहा होगा, उसकी नीयत में खोट नही है। आखिर उसने काम सिखने की शुरूआत मेरे साथ की है। लेकिन पवन की डोमिन मेरे खाते से ट्रांसफर करने की घटना के बाद मुझे अब विश्वास हो गया ​है कि पवन की नीयत शुरू से ही साफ नही थी।

इस बार पवन यादव ने प्रसारण रोकने का जो समय चुना, वह इत्तेफाक से महत्वपूर्ण था। बजट सत्र से ठीक एक दिन पहले का। 18 अप्रैल को पुलिस की धमकी के बाद पवन ने हथियार डाले। सवाल यह है​ कि पवन यादव इस क्षेत्र के व्यक्ति हें और वह इस बात से अनभिज्ञ है कि जो वह कर रहा हैं, वह अपराध के दायरे में आता है। या फिर वह यह सब किसी के कहने पर कर रहे थे, यह बात अभी तक मैं नही समझ सका हूॅं। यह अभी भी मेरे लिए रहस्य है। अब तक जो नुकसान हुआ, उसे भूलकर अब हम भविष्य में लगातार "जनादेश" का प्रसारण जारी रखने का वादा करते हैं। चुनावी साल में "जनादेश" अपने पाठकों को विश्वास दिलाता है कि पत्रकारिता के मूल्यों और स़िद्धांतों पर अमल करते हुए जनमानस की आवाज बुलंद करने के लिए "जनादेश" संकल्पबद्ध है। अपना सहयोग बनाए रखे। अपनी शुरूआत से "जनादेश" की कोशिश रही है कि अच्छे दिनों की सही तस्वीर देशवासियों के सामने रखे। अपनी इस कोशिश के लिएं "जनादेश" समर्पित है। इसके लिए आप पाठकों का सहयोग और सुझाव आपेक्षिंत है।

आशु सक्सेना

(प्रधान संपादक)

सलाहकार संपादक मंडल :

जलीस अहसन (सेवानिवृत वरिष्ठ संवाददाता, भाषा)

धर्मपाल धनखड़ (वरिष्ठ पत्रकार)

अंशुला सक्सेना- (प्रबंध संपादक)

चमन गौतम (फोटो पत्रकार)

 

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