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"जनादेश" ने अपने जीवन के छठे साल का सफर शुरू कर दिया है। इस यात्रा में पिछले पांच साल की "पत्रकारिता" का सफर यकायक नजर के सामने से गुजर गया। हुआा यूं कि 2012 में अचानक दस साल बाद मेरे जीवन में पहली बार इतने लंबे अरसे तक चली नौकरी पर बेरोजगारी के बादल मड़राने लगे थे। "पंजाब टूडे" यानि एसटीवी एंटरप्राइजज़ का मालिकाना हक हरियाणा के तत्तकालीन मंत्री गोपाल कांडा ने खरीद लिया था और कंपनी के हस्तांतरण की प्रक्रिया चल रही थी। मैं "पंजाब टूडे" के लिए आखि़री बार संसद का मॉनसून सत्र कवर कर रहा था। इसी दौरान एक दिन मेरे अनुज और इलेक्ट्रोनिक मीड़िया के बडे़ नाम वाले एक मित्र का फोन आया। उस वक्त मैं संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में था। फोन पर मित्र ने पूछा कहा हैं, मैंने उन्हें जानकारी दे दी। थोड़ी देर में मेरे वह मित्र संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में आ गये और उन्होंने मुझे बताया कि एक हिंदी न्यूज बेवसाइट शुरू होनी है। क्या आप उसको शुरू करने की जिम्मेदारी ले सकते हैं। चूंकि बात हिंदी न्यूज बेवसाइट शुरू होने की थी, लिहाज़ा मना करने का कोई सवाल नही था। यू भी नई नौकरी की तलाश भी शुरू हो चुकी थी। मेरे इन मीड़िया मित्र ने इस नए प्रोजेक्ट के एवज़ में मुझे पचास हजार रूपपे की नगदी पेशगी के नाम पर दिलवा कर उस वक्त मेरी बहुत बढ़ी मदद की थी और इसके साथ ही उन्होंने ना कहने के सभी दरवाजे़ भी बंद कर दिये थे।

अगले दिन मैं हिंदी न्यूज बेवसाइट श्री गणेश के लिए साउथ दिल्ली की पोश कालोनी ग्रीन पार्क की एक कोठी में शुरू हुए नये कार्यालय के पते पर पंहुंचा। यहां मेंरी मुलाकात मुझसे मिलवाए गये बेवसाइट के मालिक और उनके साथ वहां मौजूद बेव डिजायनर से हुई। मुझे बताया गया कि ये सज्जन बेव डिज़ाइन करेंगे। तब मैंने बेवसाइट का नाम पूछा, जबाव मेरे लिए आश्चर्यजनक था कि जो बेवसाइट मुझे शुरू करनी है, उसका नामकरण भी मुझे ही करना है। झट मैंने "जनादेश" नाम सुझा दिया। यहां पहली बैठक खत्म हो गई। अगले दिन मैं संसद में उस दिन का कामकाज निपटाकर अपनी नई नौकरी पर अपने नए कार्यालय पहुंच गया। अगले दिन बेव डिजायनर ने बताया कि बेवसाइट के लिए "जनादेश" नाम नहीं मिल रहा है। उस वक़्त मुझ पर दबाव यह था कि उसी दिन बेवसाइट शुरू हो जानी है। लिहाजा उस वक्त मुझे ज्यादा कुछ नही सुझा और मूंह से निकला कि नाम के आगे "आपका" लगा दो। थोड़ी देर बाद बेव डिजायनर ने बताया कि यह नाम मिल सकता है। यहां यह ज़िक्र करना मौजू होगा कि "जनादेश" नाम ही क्यों सूझा। दरअसल पहली बार यह नाम मैंने "सहारा" शुरू होने के प्रारंमिक दौर में अख़बार के पहले संपादक कमलेश्वर जी को सहारा समूह से शुरू होने वाले नए अख़बार के लिए सुझाया था, यह नाम कमलेश्वर जी को पसंद आया था। ... यह कहानी फिर सही...........? खैर उस दिन मैंने अपने बेव डिजायनर को हिंदी न्यूज बेवसाइट के अपने नजरिये से अवगत करवा दिया। बेव डिजायनर ने तीन दिन बाद एक बेवसाइट मुझे दिखाई। मैं चाहता था कि मेरी बेवसाइट का पहला लुक अख़बार की तरह नज़र आये। उसी को ध्यान में रखकर मैंने डिज़ाइन की थी, मेरे बताए गये डिज़ाइन को बेव डिजायनर ने साकार कर दिया था। अब मैंने बेवसाइट के लिए स्टाफ का मुद्दा उठाया। तब मालिकों ने बेव डिजायनर के साथ आ रहे सहायक को मेरे साथ जोड़ दिया। पवन यादव नाम का यह लड़का मुझे बेवसाइट पर ख़बरे अपलोड करने के लिए मिला था। साथ ही वह बेव को ज़रूरत और निर्देशों के मुताबिक़ उसे अपडेट करने का काम भी कर रहा था। खुशी की बात यह है कि पवन आज भी इस बेवसाइट का रखरखाव देख रहा है। दिलचस्प पहलू यह है कि "आपका जनादेश" नाम का हिंदी न्यूज बेवसाइट जिस कार्यालस से शुरू हुआ था, वह कार्यालय गुजरात विधानसभा चुनाव 2012 के लिए हो रहे आखिरी चरण के मतदान वाले दिन अचानक बंद हो गया। बताया गया कि वह कार्यालय जल्द ही किसी नई जगह शुरू होगा। दरअसल इस हिंदी न्यूज बेव साइट को सिर्फ गुजरात चुनाव तक के लिए शुरू किया गया था। हमारे मित्रों के बीच के किसी मित्र को गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रचार का ठेका मिला था और वह ठेका चुनाव के साथ ख़त्म हो रहा था। बहरहाल उस वक़्त मेरे पक्ष में यह रहा कि इस हिंदी बेवसाइट "आपका जनादेश" का मालिकाना हक मेरे पास सुरक्षित रहा क्योंकि यह साइट मेरे नाम और ईमेल पर रजिस्टर हुई थी। मुझे आज भी याद है कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश की नई सरकारों के शपथ ग्रहण समारोह 26 दिसंबर के अगले दिन बेवसाइट के मालिक का दूत हिसाब किताब के लिफाफे के साथ लेपटॉप मांगने मेरे घर आया। उस वक्त मैं बेवसाइट को अपडेट कर रहा था। बहरहाल लेपटॉप वापस देकर एकबार फिर बेरोजगारी का दौर शुरू हो गया। यह नौकरी करीब चार महीने चली। इसके बाद "आपका जनादेश" का हर पल नियमित अपडेट होना बंद हो गया। इस नौकरी का पारिश्रमिक एक बेवसाइट के मालिकाना हक के तौर पर मिला, इसके लिए आज मैं संतुष्ट हूँ । चूंकि "आपका जनादेश" को तीन साल के लिए रजिस्टर किया गया था। लिहाजा तीन साल के लिए रजिस्टर बेवसाइट पर मैं लगभग हर रोज़ ख़बरे डालता रहा। साथ ही स्वतंत्र पत्रकारिता के संघर्ष से जूझता रहा। इस दौरान हिंदी पत्रकार होते हुए दिल्ली से प्रकाशित अंग्रेजी अखबार" मिलेनियम पोस्ट" के लिए लिखने का मौका मिला। स्वतंत्र पत्रकारिता के इस संघर्ष के दौर में मुझे लखनऊ के एक मिडिया हाउस में साक्षात्कार के लिए बुलाया गया। इस साक्षात्कार के बाद मैंने आपका जनादेश को पुर्नजीवित करने का संकल्प लिया था। दरअसल इस साक्षात्कार में मुझसे पत्रकारिता से संबंधित एक भी सवाल नही पूछा गया। बात की शुरुआत होती है कि आपके किंतने नेताओं से व्यक्तिगत संबंध हैं और संस्थान के लिए आप कितना आर्थिक पैकेज दिलवा सकते हैं....... आदि आदि। अब मुझे एहसास हुआ कि ऐसे सवाल पत्रकार के साक्षात्कार के लिए एहम हो चुके हैं। लिहाजा इस साक्षात्कार के बाद मैने खुद को स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर स्थापित करना ही ज्यादा उपयुक्त विकल्प समझा क्योंकि उम्र के इस पडाव पर पत्रकारिता के मूल्यों से समझौता करना संभव नही है। लखनऊ से लौटने के बाद मैंने जून के महीने में पवन यादव से संपर्क किया और उसे बताया कि मैं "आपका जनादेश" को व्यापक ढ़ग से शुरू करना चाहता हूॅं। लिहाजा आप मुझे बेव डिजायनर का नंबर दे दो, क्योंकि उनका पुराना नंबर इस वक्त काम नही कर रहा है। पवन ने बताया कि वह डिजायर अब दिल्ली में नही है। वह पारिवारिक कारण से अपने गांव गौरखपुर लौट चुके है। साथ ही उसने जानकारी दी कि अब वह खुद बेव डिज़ाइन का काम कर रहा है। मैंने पवन को "नेशनल मीडिया सेंटर" रायसीना रोड़ बुलाया और कहा कि अगर "जनादेश" नाम मिल जाए, तो बेहतर रहेगा। पवन ने अगले दिन बताया कि "जनादेश डॉट इन" मिल सकता है। मैंने हां कह दिया। पवन ने 11 जून 2015 की सुबह फोन पर बताया कि "आपका जनादेश" अब अपने नये नाम "जनादेश" के बैनर के साथ शुरू हो चुका है। मैंने अपना लेपटॉप उठाया और "जनादेश" को लॉग इन किया हिंदी न्यूज बेवसाइट "जनादेश" मेरे सामने था, सिर्फ एक फर्क था कि मत्थें से "आपका" शब्द हट चुका था। "आपका जनादेश" 2012 के अगस्त महीने में अस्तित्व में आया था। तीसरे साल 11 जून को इस हिंदी न्यूज़ बेव साइट को "जनादेश" नाम से पुनः लॉंच किया गया और तब से अब तक "जनादेश" हर पल अपडेट हो रहा है। शुभचिंतकों ने आज इस हिंदी बेव साइट को पांच लाख से ज्यादा हिट तक पहुंचा दिया है। हांलाकि अभी तक आर्थिक पक्ष को लेकर सामने फिलहाल अंधकार ही है। लेकिन इस उम्मीद के साथ आगे बढ़ रहे हैं कि भविष्य मीडिया के इसी स्वरूप का है और आर्थिक पक्ष का सुगम रास्ता भी जल्द निकलेगा। यूपी सरकार बेव पॉलिसी 2016 को मंजूरी दे चुकी है और केंद्र में यह पॉलिसी फिलहाल तक लंबित है। पिछले गुजरात विधानसभा चुनाव के वक्त शुरू हुआ "जनादेश" पांच साल पूरे कर चुका है। फर्क सिर्फ यह है कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी अब देश के प्रधानमंत्री बन चुके हैं। इस बार भी गुजरात में भाजपा की वापसी के लिए प्रधानमंत्री मोदी चुनाव प्रचार भी शुरू कर चुके हैं। उनके देश का अगला प्रधानमंत्री बनने की सुगबुहाट विधान सभा चुनाव के दौरान शुरू हुई थी और आज वह प्रधानमंत्री के तोर पर तीन साल पूरे कर चुके हैं। "जनादेश" की कोशिश रही है कि अच्छे दिनों की सही तस्वीर देशवासियों के सामने रखे। अपनी इस कोशिश के लिएं "जनादेश" समर्पित है। इसके लिए आप पाठकों का सहयोग और सुझाव आपेक्षिंत है।

आशु सक्सेना

(प्रधान संपादक)

 

सलाहकार संपादक मंडल :

जलीस अहसन    (सेवानिवृत वरिष्ठ संवाददाता, भाषा)

धर्मपाल धनखड़   (वरिष्ठ पत्रकार)

अंशुला सक्सेना-  (प्रबंध  संपादक) 

चमन गौतम      (फोटो पत्रकार)

 

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