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(सुरेन्द्र सुकुमार): असल्लाहमालेकुम दोस्तो ! अगले दिन हम फिर बख़्त से ख़ानक़ाह पहुंचे। हुज़ूर साहब ने गर्मजोशी से इस्तक़बाल किया, ‘आइए मियाँ सुकुमार साहब, कहिए कैसे हैं?‘ हमने कहा कि अल्लाह का क़रम है। तो बोले, ‘दुरुस्त फ़रमाया‘...फिर ख़ादिम को आवाज़ लगाई, ‘मियाँ चाय लाइए, सुकुमार साहब तशरीफ़ फ़रमा हैं।‘ हमने चाय पी फिर उन्होंने पान लगाया और हमें दिया, हमने सलाम किया और पान मुंह में रख लिया। फिर बोले, ‘मियाँ जबसे आप आने लगे हैं, यहाँ का तो माहौल ही बदल गया है।

पहले तो सिर्फ शेरोशायरी होतीं थीं, अब तो रूहानी बातें होती हैं। इन लोगों को भी मज़ा आने लगा है, सब आपका ही इंतज़ार करते हैं।‘ (उन्होंने मुरीदों की ओर इशारा करते हुए कहा) फिर बोले, "हिंदुस्तान में तो सूफ़ीइज़्म बहुत बाद में आया, पर अल्लाह के फ़ज़ल से यहाँ भी खूब पनपा और बड़े बड़े अच्छे फ़क़ीर हुए। दो तो बहुत ही मशहूर हुए। एक हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया दूसरे ख्वाज़ा मूइद्दीन चिश्ती। फिर इनके कुछ मुरीदों को भी यह मरतबा हासिल हुआ। इनमें एक थे हज़रत निजामुद्दीन औलिया के मुरीद हज़रत 'अमीर खुसरो'...!"

इनके बारे में हम एक वाक़या सुनाते हैं।

एक बार हज़रत निजामुद्दीन औलिया के एक ख़ादिम ने हज़रत से गुज़ारिश की हुज़ूर मेरी बेटी की शादी है। मैं कुछ समय तक आपकी खिदमत नहीं कर पाऊंगा। मुझे जाना है... हुज़ूर ने फरमाया... जरूर जाइए। चलते बख़्त उन्होंने कहा कि सुनिए हमारी ये जूतियां ले जाइए, आपके काम आ सकती हैं। वो जूतियां लेकर चला गया। वो एक रात कन्नौज में एक सराय में ठहर गया। बहुत अफसोस में था कि इतने दिनों औलिया की खिदमत की, जब बख़्त बेटी की शादी का आया, तो ये फ़टी पुरानी जूतियां दीं हैं। ऊपर से कह रहे थे कि तुम्हारे काम आ सकती हैं... ये क्या काम आएंगी। उसी शाम हज़रत अमीर खुसरो कन्नौज में आए... कन्नौज में घुसते ही चौंक गए कि ये तो इत्र की नगरी है, यहाँ तो इत्र की महक आनी चाहिए? पर यहाँ तो मेरे औलिया की खुशबू आ गया है।

अमीर खुसरो बहुत सारा धन कमा कर ला रहे थे। उसमें सोने के जेवरात, कीमती कपड़े, बहुत सारा रुपया, सब छकड़ों में भरा हुआ था। जैसे जैसे कन्नौज में घुसते गए, औलिया की खुशबू और तेज आने लगी। वो सराय दर सराय देखने लगे। एक सराय में खुशबू बहुत तेज आई... तो उन्होंने हर कमरे में जाकर देखा। एक कमरे में देखा कि औलिया का पुराना ख़ादिम बैठा है। अमीर खुसरो को देख कर वो रोने लगा... सब वाक़या बताया। तो अमीर खुसरो ने कहा कि बाहर छकड़ों में बहुत सारा धन, कीमती कपड़े लत्ते सोने के जेबरात बहुत सारा धन है। ये सब तुम ले लो, बदले में ये जूतियां मुझे दे दो।

ख़ादिम तो बहुत खुश हुआ, वो खुसरो को पागल समझने लगा।
अमीर खुसरो ने वो जूतियां अपने सर पर रखीं और उसी रात पैदल ही जूतियां सर पर रखे हुए कन्नौज से दिल्ली की ओर रवाना हो गए।

आज इतना ही, सनको नमन

शेष कल

नोटः क्रांतिकारी, लेखक, कवि, शायर और आध्यात्मिक व्यक्तित्व सुरेंद्र सुकुमार जी, 1970 के दशक में वामपंथी विचारधारा से प्रभावित थे। लेकिन ओशो समेत अन्य कई संतों की संगत में आकर आध्यात्म की ओर आकर्षित हुए और ध्यान साधना का मार्ग अख्तियार किया। उनकी आध्यात्मिक यात्रा से जुड़े संस्मरण "जनादेश" आप पाठकों के लिए पेश कर रहा है।

 

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