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(सुरेन्द्र सुकुमार) श्री गोपालदास नीरज से हमारा पारिवारिक सम्बंध लगभग 45 वर्ष पुराना है, है क्या था। भाई साहब निरहंकारी व्यक्ति थे वो एक तहमद और आधी आस्तीन की जेबदार मार्कीन की बनियान पहने रेलवे के रिजर्वेशन काउंटर पर कभी भी देखे जा सकते थे। यदि भाई साहब अलीगढ़ में होते तो भी इसी भेष भूषा में नज़र आते थे घर के बरामदे में पलँग पर अधलेटे रहते थे। पास में कुछ कुर्सियाँ पड़ी रहती थीं। बैठे.बैठे कुछ न कुछ लिखते पढ़ते रहते थे। कुछ नहीं तो खतों के उत्तर दे रहे होते... हम जब अपने गाँव कौड़ियागंज में रहते थे तब जब भी हम अलीगढ़ आते तो नेहरू युवा केन्द्र में नरेन्द्र तिवारी जी और नीरज जी भाई साहब से उनके घर मिलने अवश्य जाते थे।

नेहरू युवा केन्द्र पर अक्सर क़ाज़ी अब्दुल सत्तार ‘शहरयार‘ और केपी सिंह मिल जाते थे। उन दिनों नेहरू युवा केन्द्र अलीगढ़ के साहित्यकारों के लिए एक साहित्यिक अड्डा होता था। अधिकतर मित्रों से वहाँ मिलना हो जाता था।

एक बार जब नीरज जी की षष्टी पूर्ति मनाई गई यानिकि जिस दिन नीरज जी 60 वर्ष के हुए, तो डॉक्टर रविन्द्र भृमर के घर पर एक भव्य आयोजन रखा गया। नीरज जी भी थे, अलीगढ़ के लगभग सभी साहित्यकार मौज़ूद थे।

डॉक्टर वेदप्रकाश अमिताभ संचालन कर रहे थे। सभी वक्ता अपनी.अपनी तरह से नीरज जी के व्यक्तित्व और कृतित्व का आकलन कर रहे थे। फिर अमिताभ जी ने हमारा नाम पुकारा कहा कि अब सुरेन्द्र सुकुमार नीरज जी के व्यतित्व पर प्रकाश डालेंगे, क्योंकि सुरेन्द्र सुकुमार और नीरज जी का काव्य यात्राओं का लंबा साथ रहा है।

नीरज जी कवि हैं ही नहीं, नीरज जी को हम फ़क़ीर मानते हैं ...

हम खड़े हुए सबसे पहले हमने कहा कि हम नीरज जी को कवि ही नहीं मानते हैं सब लोग चौंक गए भाई साहब ने भी हमें कर्री निगाहों से घूरा हमने आगे कहा कि हम नीरज जी को फ़क़ीर मानते हैं। अब तो भाई साहब बहुत ही संतुष्ट हो गए, क्योंकि नीरज जी ख़ुद को फ़क़ीर कहलवाना ज्यादा पसंद करते थे। इसका कारण उनका फ़क़्क़ड़ स्वभाव फ़क़्क़डी रहन सहन आदि।

आगे हमने कहा कि नीरज जी की प्रसिद्धि नगेटिव प्रसिद्धि है, आचार्य रजनीश जैसी। नीरज जी कविता से ज़्यादा सुरा सुंदरी के लिए अधिक विख्यात हैं, जबकि असलियत यह है कि हमने एक बार में उनके साथ दो तीन लड़कियों से अधिक नहीं देखीं और एक बार में दो तीन पैग से अधिक लेते हुए नहीं देखा। एक ठहाका गूँज उठा

सब लोग कहते हैं कि नीरज जी प्रेम के गीतकार हैं, यह बात भी ग़लत है। नीरज जी का मन जब जैसा हुआ तब तैसा लिख दिया। देश पर संकट है, तो देश भक्ति के गीत, विश्व शांति पर खतरा है, तो उस तरह के गीत।

'मैं सोच रहा हूँ अगर तीसरा युद्ध हुआ तो,

इस नई उमर की नई फसल का क्या होगा'

जब इनके मन पर फ़क़ीराना स्वभाव हावी हुआ, तो सूफ़ियाना गीत। प्रेम हावी हुआ तो प्रेम के गीत लिखे। इसलिए हम नीरज जी को किसी एक विधा में नहीं बाँध सकते हैं, न इनके व्यक्तित्व को और न ही कृतित्त्व को।

खूब तालियाँ बजीं और नीरज जी भी बहुत प्रसन्न हुए उस दिन हम भाई साहब के घर पर ही रुके। शाम को जम के वारुणी का सेवन किया गया पपलू खेला गया।

जब हम कौड़ियागंज छोड़ कर अलीगढ़ रहने आए और अलीगढ़ में एक मंहगी कोठी खरीद कर रहने लगे। तो भाई साहब ने हमारी बहुत ही सहायता की। हम पर थोड़ा क़र्ज़ हो गया था, सो उसे चुकाने के लिए भाई साहब ने हमको बहुत सारे कवि सम्मेलन दिलवाए। न जाने कहाँ कहाँ हमारा नाम रिकमेंड किया। उन दिनों हमने उनके साथ भुवनेश्वर, जगन्नाथ पुरी और उड़ीसा के कई आयोजन किए और उनके ही साथ पहली बार हमने रेल के ऐसी सैकंड क्लॉस में सफ़र किया। उसके बाद तो हम ऐसी में ही सफ़र करने लगे। क्रमशः

नोटः सुरेन्द्र सुकुमार 80 के दशक का पूर्वार्ध के उन युवा क्रांतिकारी साहित्यकारों में हैं, जो उस दौर की पत्रिकाओं में सुर्खियां बटोरते थे। ‘सारिका‘  पत्रिका में कहानियों और कविताओं का नियमित प्रकाशन होता था। ‘जनादेश‘ साहित्यकारों से जुड़े उनके संस्मरणों की श्रंखला शुरू कर रहा है। गीतों के चक्रवर्ती सम्राट गोपालदास नीरज से जुड़े संस्मरणों से इस श्रंखला की शुरूआत कर रहे हैं। 

 

 

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