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नई दिल्‍ली: सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली आबकारी नीति से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की याचिका पर सुनवाई खत्‍म हो गई है। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत पर कुछ नहीं कहा, बिना कुछ कहे बेंच उठ गई और अंतरिम जमानत पर फिलहाल आदेश नहीं दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कथित शराब नीति घोटाले में गिरफ्तारी के खिलाफ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की याचिका पर सुनवाई करते हुए मंगलवार को प्रवर्तन निदेशालय से कई महत्वपूर्ण सवाल पूछे। सुप्रीम कोर्ट ने जांच में देरी पर ईडी से सवाल किया कि दिल्ली आबकारी नीति मामले में गवाहों, आरोपियों से सीधे प्रासंगिक सवाल क्यों नहीं पूछे गए? कोर्ट ने ईडी द्वारा जांच में लिए गए समय पर सवाल उठाया और कहा कि उसने चीजों को सामने लाने में दो साल लगा दिए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 15 मिनट बचे हैं.. ईडी अपनी केस फाइल दे। एसजी ने कहा कि अरविंद ने किसी फाइल पर हस्ताक्षर नहीं किए, क्योंकि इनके पास मंत्रालय नहीं है।

उन्होंने आगे कहा, केवल नियुक्ति पर हस्ताक्षर करते थे, मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी है कि वही ये करते है, लेकिन बाद मैं हम कानून ले आए, इनके पास कुछ भी नही है।

सुप्रीम कोर्ट: अगर याचिकाकर्ता राहत चाहता है, तो हम क्या राहत पर विचार न करें?

एसजी: लेकिन फिर आपको हर किसी की याचिका पर विचार करना होगा, चाहे वो किसी भी समूह से हो।

सुप्रीम कोर्ट- हम ये नहीं कह रहे कि नेताओं के लिए अलग कानून है।

एसजी तुषार मेहता: इन लोगों ने बड़ी चतुरता से याचिका दाखिल की है। ये गिरफ्तारी को चुनौती वाली है, लेकिन इसमें जमानत भी मांगी है।

जस्टिस दीपांकर दत्ता: ये अर्नब गोस्वामी केस में भी हुआ था।

जस्टिस खन्ना: अगर हम अंतिम आदेश जारी कर सकते हैं, तो फिर अंतरिम आदेश भी जारी कर सकते हैं।

जस्टिस खन्ना : हम इस पर जा रहे हैं कि ए राजनेता है या नहीं...? हम ये देख रहे हैं कि चुनाव हो रहे हैं तो क्या व्यक्ति के पास असाधारण परिस्थिति का आधार है?

-अरविंद केजरीवाल की अंतरिम जमानत पर फैसला सुरक्षित।

एसजी: एक राजनेता होने के कारण उन्हें रिहा करना सही मिसाल नहीं है। उन्होंने बिना पोर्टफोलियो वाला मुख्यमंत्री बनना चुना और ऐसा कुछ लोगों को समायोजित करने के लिए किया गया है। यदि जमानत की अनुमति दी जाती है, तो क्या याचिका की अनुमति होने पर यह अपरिवर्तनीय नहीं होगा?

जस्टिस खन्ना: नहीं, नहीं, अपरिवर्तनीय नहीं होगा।

एसजी: मेहता: जिन फैसलों का हवाला दिया जा रहा है वो सभी अंतिम आदेश थे। उनका कहना है कि यह मेरा मौलिक अधिकार है... लेकिन भोजन का अधिकार भी मौलिक अधिकार है। बड़ी संख्या में लोग जेल में सड़ रहे हैं। क्या आम आदमी का अधिकार कम है?

एसजी:: कई फैसले हैं, जिसमें जमानत देते हुए अदालत ने राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने को मना किया है। अरविंद गंभीर मामले में आरोपी है।

एसजी: आरपी एक्ट कहता है की राइट टू वोट भी निलंबित हो जाता है, अगर आप न्यायिक हिरासत में रहते है तो।

सिंघवी: मैं रोज 10 फाइल पर हस्ताक्षर करता हूं।

सॉलिसिटर जनरल: अरविंद कोई फाइल नहीं करते है।

अभिषेक मनु सिंघवी: मैं एक बयान दूंगा कि वह किसी भी फाइल पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे, इस शर्त के साथ कि एलजी इस आधार पर कोई काम नहीं रोकेंगे कि मैंने किसी फाइल पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।

जस्टिस दत्ता- हम सिर्फ चुनाव के लिए अंतरिम बेल पर विचार कर रहे हैं। अगर चुनाव ना होते तो हम फैसला रिजर्व करते. हम केस की सुनवाई पूरी कर छुट्टियों से पहले फैसला नहीं दे सकते।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम आपको चुनाव को लेकर अंतरिम जमानत पर सुनवाई कर रहे थे। लेकिन अगर आप मुख्य मुद्दे पर बहस करना चाहते है, तो आप करें। आज केवल 2.30 तक ही बेंच बैठी है। फिर मामले की सुनवाई गर्मियों की छुट्टियों के बाद करेंगे।

जस्टिस खन्ना: हम यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि अगर हम आपको अंतरिम जमानत पर रिहा करते हैं, तो हम नहीं चाहते कि आप आधिकारिक कर्तव्य निभाएं।

सुप्रीम कोर्ट, अगर हम आपको अंतरिम जमानत देते हैं और आप मुख्‍यमंत्री के तौर पर ऑफिशियल ड्यूटी करते है तो ये कनफ्लिक्ट हो।

जस्टिस खन्ना ने कहा, हम इस केस को तुरंत डिसाइड नहीं कर सकते। नेशनल चुनाव हर पांच साल बाद आते हैं. ये कोई फसल नहीं है, जो हर 6 महीने बाद बोई जाती हो। ये पूरी तरह अलग मामला है।

-सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने अंतरिम जमानत की सुनवाई का विरोध किया. उन्‍होंने कहा, कि उनके साथ आम आदमी की तरह बर्ताव हो। चुनाव में कैंपेन क्या ज्यादा जरूरी है. देश की जेलों में पांच हजार नेता बंद होंगे।

जस्टिस खन्ना ने कहा कि चुनाव का मौसम है... ये असाधारण स्थिति है, वो दिल्ली के मुख्‍यमंत्री हैं। इनके खिलाफ कोई केस नहीं हैं।

सॉलिसिटर जनरल ने कहा- अगर एक किसान को अपने खेत की देखभाल करनी है और एक किराना दुकान के मालिक को अपनी दुकान पर जाना है, तो एक मुख्यमंत्री को आम आदमी से अलग कैसे माना जा सकता है? क्या हम राजनेताओं के एक वर्ग के लिए ए वर्ग के रूप में एक अपवाद बना रहे हैं। क्या चुनाव प्रचार उस व्यक्ति से अधिक महत्वपूर्ण होगा जो किराना दुकान चलाना चाहता है।

जस्टिस खन्ना ने राजू से कहा, सारी सामग्री देखनी होगी। गिरफ्तारी के मानक बहुत ऊंचे हैं. आप विजय मदनलाल फैसले के विपरीत जा रहे हैं ।आईओ को गिरफ्तारी करने से पहले विधायी उद्देश्य का पालन करना होगा।

एसजी: के वकील ने कोर्ट में कहा- ये पॉलिटिकली मोटिवेटिड केस नहीं है. हमारे पास इसके पुख्ता सबूत हैं।

जस्टिस खन्ना ने ईडी से पूछा कि क्या राजनीतिक कार्यकारिणी भी नीति बनाने में शामिल थी? हमारी चर्चा का दायरा ईडी की धारा 19 के कार्यान्वयन तक है। क्या केजरीवाल की गिरफ्तारी में धारा 19 के प्रावधानों का पालन किया गया या नहीं! बस!! आप इस बारे में कोर्ट को बताएं!

एएसजी राजू ने कहा, हमारे पास गोवा चुनाव के दौरान अरविंद केजरीवाल के होटल खर्च का सबूत है। यह एक 7 सितारा भव्य होटल था। गोवा में ग्रैंड हयात और बिल का भुगतान उद्यमियों द्वारा किया गया था। हमारे पास इस आशय के दस्तावेजी सबूत हैं।

जस्टिस संजीव खन्ना ने पूछा- बयानों में केजरीवाल का नाम पहली बार कब लिया गया?

एएसजी राजू : 23.02.2023 बुची बाबू के बयान में आया. हालांकि, उन्‍होंने कहा कि किसी को यह मानने की ज़रूरत नहीं है कि गवाह ने जो कुछ भी IO को बताया है वो सही है। वह जांच एजेंसी को गुमराह कर सकता है। इसलिए, जांच इस तरह से नहीं होनी चाहिए कि हम पहले आरोपी तक जाएं. इसमें कई बाधाएं हो सकती हैं।

एएसजी राजू ने कहा कि हमें पता चला कि अरविंद केजरीवाल गोवा चुनाव के दौरान गोवा में एक 7 सितारा होटल में रुके थे। उनके खर्च का कुछ हिस्सा उस व्यक्ति ने चुकाया था जिसने नकद पैसे लिए थे। यह राजनीति से प्रेरित मामला नहीं है. हम दिखा सकते हैं कि केजरीवाल ने 100 करोड़ की मांग की।

ईडी की ओर से एएसजी राजू बहस शुरू कर रहे हैं... उन्‍होंने हवाला के 100 करोड़ के लेनदेन के बारे में जानकारी दी।

जस्टिस खन्ना ने पूछा- आपने कहा था कि 100 करोड़ अपराध की आय है, ये 1100 करोड़ कैसे हो गया? यह 2 या 3 वर्षों में 1100 करोड़ कैसे हो गई... यह रिटर्न की एक अभूतपूर्व दर होगी।

-एएसजी ने कहा कि 590 करोड़ थोक व्यापारी का मुनाफा है।

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, अंतर लगभग 338 करोड़ था, पूरी चीज़ अपराध की आय नहीं हो सकती।

 

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