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इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में आयोजित जश्न-ए-अदब महोतस्व में शनिवार को सुप्रसिद्ध साहित्यकार शानी को प्रमचंद के बाद सबसे बड़ा साहित्यकार बताते हुए मशहूर आलोचक और लेखक डॉ. जानकी प्रसाद शर्मा ने कहा कि साहित्यकार तो अपने-अपने समय में बहुत हुए है, लेकिन शानी एकलौते एसे साहित्यकार थे जो अपनी बात तो कह देना ही नहीं, बल्कि उसकी सच्चाई और गहराई को नाप लेना भी उतना ही उचित समझते थे।

समारोह में ''शानी के कथा साहित्य की प्रासंगिकता'' सत्र पर चर्चा हो रही थी जिसमें शर्मा के अलावा जामिया मिलिया के प्रोफ़ेसर और ऊर्दू के लेखक डॉ. ख़ालिद जावेद, वरिष्ठ पत्रकार महेश दर्पण और शानी के पुत्र तथा वरिष्ठ पत्रकार फ़ीरोज़ शानी ने हिस्सा लिया. सत्र का संचालन करते हुए डॉ. शर्मा ने कहा कि शानी प्रेमचंद्र के बाद सबसे बड़े साहित्यकार के तौर पर सामने आए।

उन्होंने कहा कि प्रेमचंद के बाद शानी एक ऐसे लेखक रहे जिनके साहित्य में ग़र्दिश और ग़रीबी का चित्रण मिलता है.

महेश दर्पण ने कहा कि शानी के जीवन और उनकी रचनाओं में कोई फ़र्क़ नहीं दिखता, वह बनावटीपन के सख़्त ख़िलाफ़ थे. शानी ने वही लिखा जो उन्होंने भोगा था. उन्होंने कहा कि शानी हिंदी के ऐसे मुसलमान लेखक हुए हैं जिन्होंने हिंदी साहित्य मे मुसलमानों की उपेक्षा को लेकर सवाल उठाया.

फ़ीरोज शानी ने कहा कि एक बेटे की तौर पर पिता के बारें में बोलना आसान और कठिन दोनों है। अक्सर लोगों में जिज्ञासा रहती है कि में शानी हूं, सहानी हूं या फिर शहानी हूं? उन्होंने बताया कि मेरे पिता को शानी नाम मां से मिला था जो वह उन्हेंक डांटते हुए पुकारती थीं. दरअसल शानी का मतलब दुश्मन होता है. मेरे पिता यह भली-भांति जानते थे कि वह जीवन में दोस्तों के साथ दुश्मन भी काफी बनाएगे और शायद यही वजह है कि गुलशेर ख़ान ने शानी नाम के साथ लेखन की शुरुआत की.

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