मुंबई: कला को समय, नस्ल और धार्मिक बाधाओं से आगे निकलने में सक्षम बताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज (शनिवार) कला को आम आदमी के करीब लाने की वकालत की और साथ ही कहा कि इसका इस्तेमाल ‘स्वच्छ भारत’ जैसे मुद्दों पर सामाजिक संदेश प्रसारित करने के लिए किया जाना चाहिए क्योंकि कला में शब्दों की तुलना में कहीं ज्यादा अपील होती है। प्रधानमंत्री ने कहा कि कला अमीर लोगों की दीवारों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए, इसे तो समाज की ताकत बनना चाहिए। उपनगर बांद्रा में बॉम्बे आर्ट सोसाइटी की नयी इमारत का उद्घाटन करने के बाद जनसभा को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि रेलवे प्लेटफॉर्मों पर पड़े खाली स्थानों का इस्तेमाल नवोदित कलाकारों को उनके कौशल प्रदर्शन करने की अनुमति देकर किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इसका इस्तेमाल सामाजिक संदेशों के प्रसार के लिए भी किया जा सकता है।
प्रधानमंत्री ने कहा, कला में शब्दों की तुलना में कहीं ज्यादा अपील है। उन्होंने कहा कि स्वच्छता और साफ-सफाई के मुद्दे पर किसी भी कला में लोगों द्वारा दिए जा रहे भाषणों की तुलना में ज्यादा अपील होती है। उन्होंने रचनात्मक कार्यों के ‘डिजीटल प्रतिरूप’ भी विकसित करने की अपील की ताकि भावी पीढ़ियां किसी कलाकृति के सृजन की प्रक्रिया को समझ सकें। मोदी ने कहा, जब हम कहते हैं ‘आर्ट’, तो यहां ‘ए’ का अर्थ है ऐजलेस (शाश्वत), ‘आर’ का अर्थ है ‘रेस, रीजन एंड रिलीजनलेस’ (नस्ल, क्षेत्र और धर्म से मुक्त) और ‘टी’ का अर्थ है टाइमलेस (चिरकालिक)। कला शाश्वत, धर्मविहीन और चिरकालिक है। उन्होंने कहा कि कला को सहयोग और वित्तपोषण के लिए सरकार पर निर्भर नहीं होना चाहिए बल्कि इसे तो सरकार द्वारा सम्मानित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, पिछली बार, मैंने अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में कहा था कि कलाकार अपना समय दे रहे हैं और अपनी कलाकृतियों के जरिए वे देश के रेलवे स्टेशनों का पूरा माहौल बदल रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा, यह कोई सरकारी योजना नहीं है और न ही इसके लिए बजट आवंटित किया गया है। लेकिन कलाकारों ने इस काम को खुद ही अपने हाथ में लिया है और इसका अच्छा असर हो रहा है। ‘स्वच्छ भारत’ पर भाषण देने से बेहतर है कि ऐसी कलाकृतियां बनाई जाएं, जो लोगों को भारत को स्वच्छ रखने के लिए प्रेरित करें। उन्होंने कहा कि भावी पीढ़ियों के अनुकूल बनाने के लिए कलाकृतियों को डिजीटल दुनिया का इस्तेमाल करते हुए विकसित करना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, उदाहरण के तौर पर, जब किसी कार्य का सृजन किया जाता है, तो कलाकार के दिमाग में इसका सबसे पहला ख्याल कैसे आया? उसे कुछ समय में कागज या कैनवस पर कैसे उतारा गया? इस पूरी प्रक्रिया का तीन-चार मिनट का एक डिजीटल प्रतिरूप। जब कोई व्यक्ति उस कलाकृति को देखे तो उसे संगीतमयी प्रभावों से युक्त इस प्रक्रिया का डिजीटल प्रतिरूप भी देखना चाहिए। मोदी ने कहा कि कलाकृति को समझने में दर्शकों की मदद करने के लिए कला की जानकारी रखने वाले किसी व्यक्ति को मौजूद रहना पड़ता है। मोदी ने कहा, इसे बदलने के लिए डिजीटल दुनिया का इस्तेमाल किया जा सकता है। मैं चाहता हूं कि सॉफ्टवेयर और आईटी से जुड़े लोग इसमें रूचि लें और कलाकारों को एक नयी ताकत दें। छोटी उम्र में ही कला के प्रति रूझान विकसित करने की जरूरत पर जोर देते हुए मोदी ने कहा कि स्कूलों द्वारा जिन भ्रमणों की योजना बनाई जाती है, उनमें आर्ट गैलरी के दौरे भी शामिल किए जाने चाहिए। उन्होंने कहा, मैं स्कूलों को सुझाव देता हूं कि जब वे वाषिर्क पर्यटन के कार्यक्रम बनाते हैं तो साल में कम से कम एक बार किसी आर्ट गैलरी में जाने का भी कार्यक्रम बनाएं। इसी तरह, मैंने रेल विभाग से भी कहा था कि वह रेल प्लेटफॉर्मों पर आर्ट गैलरी बनाए। इस तरह, उस क्षेत्र के कलाकारों को भी अपनी कला के प्रदर्शन की जगह मिलेगी। कला के महत्व को रेखांकित करते हुए मोदी ने कहा कि मंदिर इसका उदाहरण हैं। आप वहां ईश्वर और कला को एकसाथ देख सकते हैं। बच्चों को कला के जरिए उन्मुक्त रूप से अभिव्यक्ति करने देने की अपील माता-पिता से करते हुए, मोदी ने कहा कि अक्सर मांएं अपने बच्चों को मेहमानों के सामने कविता सुनाने के लिए कहती हैं, लेकिन कुछ ही मांएं अपने बच्चों से उनकी बनाई कलाकृतियां दिखाने के लिए कहती हैं। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और राकांपा सुप्रीमो शरद पवार भी इस अवसर पर मौजूद थे।