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(सुरेन्द्र सुकुमार): असल्लाहमालेकुम दोस्तो ! हुज़ूर साहब से मिल कर हमें बहुत ही अच्छा लगा। उन दिनों हम नितेश्वर आश्रम में ही थे। एक दिन हम महाराज जी की जीप से रात को एक बजे हुज़ूर साहब की ख़ानक़ाह पहुंचे। हम उस समय महाराज जी के पास ही बैठे थे, जैसे ही हमने हुज़ूर साहब के पास जाकर चरण स्पर्श किए, तो बोले ‘किबला किसी फ़क़ीर के प्रयास से आ रहे हैं खुशबू आ रही है।‘ हमने कहा, जी हुज़ूर साहब सूरज मुनि महाराज जी के पास से आ रहे हैं।‘ वही तो ‘आप तो नाद भी सुन रहे हैं।‘ हमने कहा, जी ‘कबसे सुन रहे हैं।‘ हमने कहा कि एक दिन ध्यान में थे तभी प्रकाश देखा तभी से सुन रहे हैं। तो बोले, ‘निहायत ही दुरुस्त हाल है, ये तो कभी कभी किसी को सुनाई देता है। सब अल्लाह की रहम है।

उस दिन भी कई शायर वहाँ थे चाय और पान के दौर मुतवातिर चल रहे थे। फिर उन्होंने एक शायर की ओर मुख़ातिब होकर कहा, ‘आज आप सुनाइए क्या कुछ नया कहा है।‘ उन्होंने ग़ज़ल सुनाई, तो वो दाद देते रहे फिर बोले, ‘ज़नाब ग़ज़ल तो अच्छी है पर एक शेर में सक्ता आ रहा है, ये अल्फ़ाज़ बदल कर ये कर लीजिए दुरुस्त हो जाएगी।

हुज़ूर साहब खुद भी अच्छे शायर थे, इस्लाह भी देते थे। उन शायर महोदय ने कहा, इनाहत है। हुज़ूर साहब ने फिर एक और शायर से सुनाने को कहा, उन्होंने भी एक ग़ज़ल सुनाई। तो बोले, ‘ज़नाब बहुत गज़लें आपने इश्क़ मज़ाजी की कह लीं, अब कुछ इश्क़ हक़ीक़ी भी कहिए।‘
फिर हमसे बोले, ‘आपने कुछ नया कहा है?‘ हमने कहा कि हुज़ूर साहब हम तो इन दिनों ध्यान साधना में ज्यादा लगे रहे हैं, तो बोले, ‘ये तो बहुत ही अच्छी बात है अल्लाह की इबादत से बढ़ के तो कुछ भी नहीं है।‘ और आँखों को बंद कर लिया काफी देर तक वैसे ही बैठे रहे फिर आँखें खोली और बोले, ‘या अल्लाह‘,।

हमने पूछा कि हुज़ूर साहब ये सूफ़ी पंथ क्या होता है, तो थोड़ा मुस्कुराए और बोले, ष्‘इस्लाम में यही एक रास्ता ऐसा है, जिससे आसानी से अल्लाह तक पहुंचा जा सकता है, पर इस्लाम इसकी मुख़ालफ़त करता है। जबकि हज़रत निजामुद्दीन औलिया और अजमेर शरीफ के मोइद्दीन चिश्ती ख़्वाबा ग़रीब नवाज़ और हज़रत राबिया और भी बहुत से फ़क़ीर सूफ़ी ही थे।
फिर समय हो चुका था... हम नमन करके चले आए।
आज इतना ही, सबको नमन, शेष कल

नोटः क्रांतिकारी, लेखक, कवि, शायर और आध्यात्मिक व्यक्तित्व सुरेंद्र सुकुमार जी, 1970 के दशक में वामपंथी विचारधारा से प्रभावित थे। लेकिन ओशो समेत अन्य कई संतों की संगत में आकर आध्यात्म की ओर आकर्षित हुए और ध्यान साधना का मार्ग अख्तियार किया। उनकी आध्यात्मिक यात्रा से जुड़े संस्मरण "जनादेश" आप पाठकों के लिए पेश कर रहा है।

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