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(आशु सक्सेना): केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के स्टार प्रचारक और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र दमोदर मोदी के लिए आज़ादी का 75वां साल काफी चुनौतियों भरा रहने वाला है। देश में अगले साल 2022 के दिसंबर तक सात राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें पंजाब को छोड़कर बाकी सभी राज्यों में सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा हैं। जाहिर है कि पीएम मोदी इन राज्यों में अपने 'डबल इंजन' की सरकार के नारे पर एक बार फिर सत्ता में वापसी की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं।

दरअसल, पीएम मोदी अपने गृहराज्य गुजरात और अपने कर्म क्षेत्र वाले उत्तर प्रदेश में चुनाव अभियान शुरू कर चुके हैं। उत्तर प्रदेश में वह केंद्र की योजनाओं से लाभांवित लोगों से सीधे संवाद के कार्यक्रम प्रयोजित करवा रहें हैं। वहीं अपने गृहराज्य गुजरात में एक बार फिर धार्मिक माहौल गरमाकर सांप्रदायिक धुव्रीकरण की रणनीति को अंजाम दे रहे है। सवाल यह है कि गौधरा के बाद हुए विधानसभा चुनाव से लेकर पिछले विधानसभा चुनाव तक जब भाजपा के प्रदर्शन में लगातार गिरावट दर्ज की गयी है, ऐसे में क्या अगले विधानसभा चुनाव में पीएम मोदी का चमत्कार भाजपा की सत्ता में वापसी करवा पाएगा?

आपको बता दें कि पीएम मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर नवंबर 2001 में बागड़ोर संभाली थी। करीब 14 साल सूबे के मुख्यमंत्री और सात साल देश का प्रधानमंत्री रहने के बाद इस चुनावी साल में उन्हें सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार की याद आयी है। सूबे में दो दशक तक शासन करने के बाद आज़ादी के 75 वें साल में इस ऐतिहासिक मंदिर स्थल को आधुनिक पर्यटन स्थल में तब्दील करने का पीएम मोदी ने ख्याब देखना शुरू किया है। यह ख्याब कब साकार होगा, यह तो भविष्यवाणी नहीें की जा सकती, लेकिन इसी सूबे में 'स्टेचू आफ यूनिटी' क्षेत्र के पर्यटन विकास से इसका मोटा अनुमान लगाया जा सकता है। सोमनाथ मंदिर चूंकि धार्मिक स्थल है और वहां श्रद्धालुओं की आवाजाही पहले से है, लिहाजा विकसित होने के बाद उसमें थोड़ी बढ़ोत्तरी का अनुमान लगाना गलत नहीं होगा। लेकिन सवाल यह है कि जब सूबे के इस सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल को विकसित करने की योजना को अंजाम देने में भाजपा के स्टार प्रचारक पीएम मोदी को दो दशक लगे है, तब इस बार सूबे के मतदाता उन्हें किस लोभ में सत्ता सौंपेंगे। जबकि वह साफ तौर पर पिछले दो दशक में इस नाम पर सिर्फ ठगे गये हैं। ऐसा उन्होंने 2002 से लेकर 2017 तक हुए चार विधानसभा चुनाव नतीज़ों से लगातार जाहिर किया है। ऐसे में क्या दिसंबर 2022 में होने वाले चुनाव में मतदाता भाजपा सरकार को एक और मौका सिर्फ इस बिना पर देगा कि भविष्य में वह उसकी आस्था से जुड़े सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार और जूनागढ़ को एक पर्यटन स्थल में तब्दील होता देखेगा। जबकि पिछले चुनाव में ही प्रदेश का मतदाता पीएम मोदी को यह एहसास करवा चुका है कि वह उनकी (पीएम मोदी) सरकार की कारगुजारी से नाखुश है।

पीएम मोदी की इस बार सबसे बड़ी चुनौती यह है कि गुजरात में भाजपा सरकार की वापसी के लिए केंद्र सरकार के कामकाज में पीएम मोदी को खुद को खरा साबित करना बेहद जरूरी है। जिसमें पीएम मोदी इन दिनों तमाम विवादों में घिरे हैं। उनमें वैश्विक महामारी कोरोना से निपटने की बात हो या किसानों का मसला या फिर आम आदमी के दैनिक जीवन से जुड़े मंहगाई, रोजगार जैसे मुद्दे हो, इन सभी मुद्दों में ज़मीनी हकीक़त मोदी सरकार के दावों के एकदम विपरित है। लिहाजा अपनी सरकार के कामकाज के बूते तो इस बार गुजरात का क़िला फतह करना पीएम मोदी के लिए नामुमकिन ही नज़र आ रहा है। ऐसे में सांप्रदायिक धुव्रीकरण की सत्ता वापसी का एकमात्र विकल्प है।

संभवत: यही वजह है कि इस बार पीएम मोदी गुजरात चुनाव को लेकर काफी पहले सक्रिय हो गये है। जूनागढ़ के सोमनाथ मंदिर से जुड़ी कई परियोजनाओं के शुभारंभ समेत कई ऐसी ही परियोजनाओं का शिलांयास भी इसी साल में कर चुके है। पीएम मोदी की यह चिंता जायज है। क्योंकि गौधरा कांड़ के बाद हुए चुनाव का आंकड़ा पीएम मोदी उसके बाद हुए किसी भी चुनाव में दोहरा नहीं सके है। उलट हर चुनाव में उनके बहुमत के जादुई आंकड़े तक पहुंचने में पिछले चुनाव तक लगातार गिरावट आयी है। पिछले चुनाव में तो वह 182 सदस्यों वाली विधानसभा में सौ का आंकड़ा भी नहीं छू सके थे। जा​हिर है इस बार थोड़ी सी चूक से गुजरात की सत्ता छिन सकती है, जिसका 2024 के लोकसभा चुनाव में निश्चित ही विपरित प्रभाव होगा। ऐसे में इस बार गुजरात विधानसभा चुनाव जीतना पीएम मोदी के राजनीतिक भविष्य से जुड़ा चुनाव है।

आपको याद दिला दें कि पीएम मोदी ने गुजरात विधानसभा चुनाव 2002 से करीब एक साल पहले नवंबर 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री पद का कार्यभार ग्रहण किया था। इसके कुछ ही दिन बाद 27 फरवरी 2002 को गौधरा में अयोध्या से लौट रहे 59 कारसेवकों को गाड़ी की बागी में ज़िदा जला दिया गया। इसके बाद सूबे में भड़के सांप्रदायिक दंगों में हज़ारों लोग मारे गये। इत्तफाक से जिस दिन गुजरात के गौधरा में यह दर्दनाक बाकया हुआ था, उसी दौरान उत्तर प्रदेश से सत्तारूढ़ भाजपा की विदाई हो रही थी। अयोध्या, काशी और मथुरा वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीज़े आ चुके थे और भाजपा सिमट कर 88 सीट पर रह गयी थी।

बहरहाल, 2002 के दिसंबर में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले विधानसभा चुनाव का सामना किया था। अंतर्राष्ट्रीय ख्याति हासिल करने वाले गुजरात क सांप्रदायिक दंगों के बाद उभरे भावनात्मक उन्माद के दौर में यह चुनाव हुआ था। मुख्यमंत्री मोदी के नेतृत्व हुए इस चुनाव में भाजपा को प्रदेश की 182 सीट वाली विधानसभा में 127 सीट पर कामयाबी मिली और नरेंद्र मोदी ने दूसरी बार सूबे की बागड़ोर संभाली थी।

उसके बाद 2007 का चुनाव मोदी ने 'विकास माडल' के नारे पर लड़ा। सूबे में कमजोर विपक्ष के बावजूद भाजपा को इस चुनाव में दस सीट का नुकसान हुआ। बहुमत का आंकड़ा घटकर 117 रह गया। इसके बाद 2012 का विधानसभा चुनाव सीएम मोदी ने देश के भावी प्रधानमंत्री की चर्चा के बीच लड़ा था। चुनाव प्रचार के दौरान मोदी के विकल्प से जुड़ी ख़बरें सुर्खिंया बनने लगी। इसके बावजूद इस चुनाव में भी भाजपा को दो सीट का नुकसान हुआ और भाजपा 115 सीट पर खिसक गयी।

सर्वविदित है​ कि 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव का सामना नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री की हैसियत से किया और इसके चुनाव नतीज़ों ने यह साफ संकेत दे दिया था कि मतदाता उनके कामकाज से संतुष्ट नहीं है। सत्तारूढ़ भाजपा पिछले चुनाव में सौ का आंकड़ा हासिल नहीं कर सकी थी। 182 सदस्यों के सदन में भाजपा मात्र 99 के आंकड़े तक पहुंच सकी थी। यह नतीजा तब था जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को
चुनाव के अंतिम तीन दिन सूबे में ही ढेरा डालना पड़ा था। इसके बावजूद भाजपा बमुश्किल बहुमत के आंकड़े से थोड़ी ही ज्यादा सीट जीतने में सफल हो सकी। यह उनके नेतृत्व में हुए सूबे के चुनावों में सबसे खराब प्रदर्शन था।

आपको यह भी याद दिला दें कि सूबे के दूसरे सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति यानि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को सूरत में जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ा था। जहां इसी साल हुए स्थानीय निकाय चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) ने अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है। यूं तो आप ने पिछला चुनाव भी लड़ा था, लेकिन उस चुनाव में 'आप' का खाता नहीं खुला था। आप की सूरत में जीत अगले चुनाव में उसके प्रदर्शन के सुधार के स्पष्ट संकेत है। हां पिछले चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन काफी बेहतर रहा था, वह सत्ता से सिर्फ 15 सीट पीछे रह गयी थी। उसके खाते में 77 सीट आयीं थीं, जबकि सूबे में बहुमत का जादुई आंकड़ा 92 है। लेकिन पिछले पांच साल में कांग्रेस में भगदड़ का ही दौर रहा है। कांग्रेस के कई विधायकों ने पाला बदलकर आपरेशन कमल के तहत भाजपा का दामन थामा है।

गौधरा के बाद हुए विधानसभा चुनाव से लेकर पिछले चुनाव तक का लेखाजोखा यही दास्तां बया कर रहा है कि इस बार गुजरात की सत्ता हासिल करना पीएम मोदी की अब तक की राजनीति की सबसे बड़ी चुनौती है। इस चुनाव में हार का नतीज़ा यह होगा कि अपने गृहराज्य में पराजय के बाद 2024 में पीएम मोदी की सत्ता में वापसी पर सवालिया निशान लग जाएगा।

इस बार कई अन्य बातें भी पीएम मोदी के पक्ष में नहीं है। पिछले चुनाव तक यह चर्चा छेड़ दी जाती थी कि मोदी नहीं तो बाबू भाई यानि अहमद पटेल सीएम बन जाएंगे। इस बार अहमद पटेल चुनावी चर्चा में नहीं होंगे। कोरोना काल में उनका इंतकाल हो चुका है। दरअसल, गुजरात चुनाव की घोषणा के बाद पिछले चुनाव तक मोदी चुनाव अभियान की शुरूआत अहमद पटेल से ही करते थे। लेकिन इस बार उन्हें ऐसा करने का मौका नहीं मिलेगा। चूंकि इस बार विपक्ष का मुख्यमंत्री चेहरा भी हिंदू ही होगा। ऐसे में पीएम मोदी अपनी चुनावी नैया पार लगा सकेेंगे। इस पर सवालिया निशान लग गया है। फिलहाल देश का राजनीतिक परिदृश्य भाजपा के पक्ष में नज़र नहीं आ रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद हुए विधानसभा चुनाव नतीज़े इसके ​जीवंत सबूत है।

 

 

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