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(आशु सक्सेना): देश इस बार 75वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। आजादी के इन वर्षों में देश ने काफी कुछ सहा है। शुरुआत विभाजन की त्रासदी से हुई। देश ने पाकिस्तान और चीन से जंग लड़ी। आपातकाल लगा। साम्प्रदायिक दंगे हुए। बाढ़-सुनामी जैसी आपदाएं आईं और देश वर्तमान में कोरोना जैसी वैश्विक महामारी का सामना कर रहा है।

इन घटनाओं का देश पर कुछ न कुछ असर भी हुआ। लेकिन आज़ादी के बाद से देश लगातार प्रगति के पथ पर है। हांलाकि प्रगति में प्राकृतिक आपदा के साथ साथ सांप्रदायिक तनाव, राजनीतिक महत्वकांक्षा बाधक बनते रहे हैं।

आज़ादी के आंदोलन का नेतृत्व कर रही 'कांग्रेस' विभाजन नहीं चाहती थी। लेकिन आल इंडिया मुसलिम लीग और आरएसएस इस बात के पक्षधर थे कि सांप्रदायिक आधार पर देश का बंटवारा हो जाना चाहिए। ब्रिटिश शासन ने भारत के विभाजन के लिए इसी को सबसे बड़ा आधार बताया और देश का विभाजन हो गया। दूसरे विश्व युद्ध के बाद ब्रिटिश भारत का अंत हुआ।

विश्व युद्ध के बाद दुनिया भर की आर्थिक और विकास की स्थिति का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। भारत भी उससे अछूता नही था। लेकिन अब यह बात गर्व से कही जा सकती है कि 75 सालों में भारत ने शून्य से शुरू होकर दुनिया में एक बेहतर जगह बना ली है। आज दनिया में आज़ाद भारत की बात को तरजीह दी जाती है।

दिलचस्प पहलू यह है कि जो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) सांप्रदायिक आधार पर भारत के बंटवारे का पक्षधर था, उसका राजनीतिक संगठन भाजपा आज 'धर्म निरपेक्ष' भारत का नेतृत्व कर रहा है। संघ की कोशिश है कि जब वह अपनी स्थापना के सौवें वर्ष 2025 का जश्न मना रहा हो, उस वक्त भाजपा देश की सत्ता पर काबिज हो। यही वजह है कि जो आरएसएस कभी आरक्षण की धूर विरोधी था, वह पिछड़ों के आरक्षण पर इस हद तक सहमति व्यक्त कर रहा है कि आरक्षण तब तक लागू रहना चाहिए, जब तक सामाजिक दृष्टि से पिछड़ों के जीवन स्तर में सुधार ना आ जाए।

आरएसएस के राजनीतिक संगठन भाजपा का 2024 में सत्ता वापसी के लिए सांप्रदायिक मुद्दों के साथ ही पिछड़ों का आरक्षण भी एक अहम मुद्दा होगा। भाजपा की कोशिश है कि सांप्रदायिक धुव्रीकरण के साथ ही पिछड़ों की गोलबंदी बरकरार रहे। पीएम मोदी ने 2013 में खुद को पिछड़ा बताकर पिछड़ों के एक बड़े वोट बैंक में सेध लगायी थी। अब यूपी चुनाव से पहले एक बार फिर पीएम मोदी ने वही कार्ड खेला है।

आइए, आज़ादी के बाद से अब तक की कुछ ऐसी बड़ी घटनाओं पर नज़र डालते हैं, जिन घटनाओं का देश पर गहरा असर पड़ा है और उन घटनाओं का भविष्य से भी संबंध जुड़ा है।

भारत का विभाजन

14 अगस्त 1947 को विभाजन की प्रक्रिया शुरू हुई। इस दिन 'भारत' का विभाजन करके एक अलग देश पाकिस्तान अस्तित्व में आ गया। अगले दिन 15 अगस्त को 'भारत' एक स्वतंत्र देश बन गया। भारत छोड़ने से पहले अंग्रेजी हुकुमत विभाजन की अपनी ​आखिरी चाल में कामयाब रही। विभाजन के दस्तावेज पर हस्ताक्षर के बाद ब्रिटिश हुकमरानों ने सत्ता की बागड़ोर भारतीय हुकुमरानों को सौंप दी। भारत एक स्वतंत्र देश बन गया। पाकिस्तान एक धार्मिक देश बना, जबकि भारत ने धर्म निरपेक्ष सिद्धांत को अपनाया। लेकिन विभाजन की त्रासदी भारत के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। ब्रिटिश शासन ने देश को स्वतंत्रता देने से पहले भारत का सांप्रदायिक आधार पर बंटवारा किया। भारत धर्म निरपेक्ष होने के बावजूद आज भी इस तनाव से मुक्त नहीं हुआ है।

असर:
सांप्रदायिक आधार पर विभाजन में करोड़ों लोग प्रभावित हुए। करोड़ों दिल रोए, तड़पे, दोनों तरफ भारी सांप्रदायिक हिंसा हुई। दोनों तरफ के लोग अपनी मातृभूमि छोड़ने को मजबूर हो गये। अनुमान है कि विभाजन की त्रासदी में करीब 10 लाख लोग मारे गए। आज़ादी से अब तक हुए सांप्रदायिक दंगों फेहरिस्त काफी लंबी है। उस पर अगली फुर्सत में विस्तार से चर्चा होगी।

'कश्मीर युद्ध' 1947

भारत और पाकिस्तान के बीच पहली लड़ाई को 'कश्मीर युद्ध' के नाम से जाना जाता है। जम्मू कश्मीर मुसलिम बहुल रियासत थी। लेकिन हुकुमत महाराजा हरिसिंह हिंदू के पास थी। 26 अक्टूबर 1947 को जब महाराजा हरिसिंह ने भारत के साथ जाने के फैसले पर हस्ताक्षर किये। तब सूबे की ट्राइवल मुसलिम आबादी ने पाकिस्तानी सेना की मदद से कश्मीर पर हमला बोल दिया और कश्मीर के एक हिस्से पर कब्जा कर लिया। भारत इस मुद्दे को लेकर संयुक्त राष्ट्र पहुॅंचा। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने 22 अप्रैल 1948 को एक प्रस्ताव पास करके 'नियंत्रण रेखा' निर्धारित कर ​दी। सूबे का दो तिहाई हिस्सा यानि कश्मीर घाटी, जम्मू और लद्दाख भारत के कब्जे में रहा। जबकि सूबे का एक छोटा सा हिस्सा गिलगित और बालटिस्तान पर पाकिस्तान का कब्जा बरकरार रहा। इसे एलओसी कहा जाता है, आज़ादी के शुरूआती वक्त से ही यहां तनाव रहा है और आज भी यह तनाव बरकरार है। आज़ादी की पूर्व संध्या पर घाटी में सुरक्षाकर्मियों पर ग्रेनेड हमला ताजा समाचार है।

असर
भारत का मुकुट कहा जाने वाला सूबा जम्मू कश्मीर आज़ादी के बाद से आजतक एक अंतरराष्ट्रीय विवाद बना हुआ है। मोदी सरकार ने दो साल पहले ही इस सूबे को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधानों को रद्द कर दिया और सूबे को दो केंद्र शासित प्रदेश में तब्दील कर दिया है। फिलहाल यह मामला अंतरराष्ट्रीय  मुद्दे के साथ ही देश की सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।

चीन-भारत युद्ध (1962)

भारत-चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर युद्ध हुआ। चीन ने मैकमोहन रेखा और वास्तविक नियंत्रण रेखा को स्वीकार करने से इंकार कर दिया था। एक महीने बाद चीन ने युद्धविराम की घोषणा की। इस जंग में भारत का काफी नुकसान हुआ।

असर

लोगों का मनोबल बुरी तरह टूट गया। देश भारी निराशा में डूब गया। हम जिसे दोस्त समझ रहे थे, उस चीन की चुनौती का पहली बार देश को एहसास हुआ। इस सीमा पर हालात आज भी तनावपूर्ण बने हुए है।

भारत-पाकिस्तान युद्ध (1965)

अभी देश चीन के साथ हुए युद्ध से उबरा नहीं था कि पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया। इस युद्ध में दोनों पक्ष को भारी नुकसान हुआ, आखिरकार जीत भारत की हुई। आजादी के बाद यह पाकिस्तान के खिलाफ मिली दूसरी जीत थी।

असर

देश में चीन से मिली हार की निराशा कम हो गई। प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को जनता ने सिर आंखों पर बैठाया। इस युद्ध के दौरान प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने 'जय जवान जय किसान' का नारा बुलंद किया था।

बांग्लादेश की मुक्ति (1971)

पूर्वी पाकिस्तानियों ने पाकिस्तान से आजादी के लिए लड़ाई लड़ी और भारत ने उनका साथ दिया। इस पर बौखलाए पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया। भारत ने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए।प्रधानमंत्री श्रीमती इंद्रिरा गांधी ने सबसे पहले बांग्लादेश को एक स्वतंत्र देश की मान्यता दी। 26 मार्च 1971 को शेख मुजीबुर रहमान के नेतृत्व में बांग्लादेश एक स्वतंत्र देश बन गया।

 असर

पाकिस्तान को विभाजन के दर्द का एहसास हुआ। पाकिस्तान को यह साफ हो गया कि भारत से वह कोई जंग नहीं जीत सकता। लेकिन एलओसी पर पाकिस्तानी सेना की मदद से आतंकी घुसपैठ की बारदात आए दिन सुर्खियों में बनती रहती है।  'कारगिल युद्ध' भी ऐसा ही एक युद्ध है, 1947 की तरह घाटी के उपरी हिस्से से पाकिस्तानी सेना की मदद से आतंकियों ने भारत पर हमला किया, जिस पर काबू पाने के लिए भारतीय सेना को कई कुर्बानियां देनी पड़ी थीं। उस वक्त पाकिस्तान की कमान तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ के पास थी। वह भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के साथ एक तरफ 'शांति वार्ता' कर रहे थे। वहीं दूसरी तरफ कारगिल में आतंकी गतिविधि को भी अंजाम दे रहे थे।

जेपी आंदोलन (1974)

18 मार्च 1974 को बिहार में छात्रों ने कुशासन और भ्रष्टाचार के खिलाफ यह आंदोलन शुरू किया। इसका नेतृत्व समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण ने किया था। देखते-देखते यह आंदोलन पूरे देश भर में फैल गया। लोगों के मन में इंदिरा गांधी सरकार के प्रति गुस्सा था। जेपी ने इंदिरा गांधी के खिलाफ आवाज उठाई। यह आंदोलन बाद में जेपी आंदोलन के नाम से जाना गया। इसका असर यह रहा कि 1975 में देश पर आपातकाल थौंपने की पृष्ठभूमि में जेपी आंदोलन भी एक कारण था।

आपातकाल (1975)

देश में आंतरिक तनाव के कारण इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को आपातकाल लागू कर दिया। इसकी पृष्ठभूमि में जेपी आंदोलन के साथ इलाहाबाद हाईकोर्ट का वह फैसला था जिसमें इंदिरा गांधी को रायबरेली के चुनाव अभियान में सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का दोषी पाया गया था।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के निर्वाचन को खारिज कर दिया था। साथ ही छह साल तक उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी थी।

इंदिरा गांधी की सिफारिश पर तब के राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने देश में इमरजेंसी की घोषणा कर दी। आपतकाल 1975 से 1977 तक रहा।

असर

भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में आपातकाल को सबसे काला अध्याय माना गया। इससे नागरिकों के मौलिक अधिकार और स्वतंत्रता पर अंकुश लग गया। करीब एक हजार विरोधी नेताओं को जेलों में डाल दिया गया।

आपातकाल के बाद पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी (1977)

आपातकाल खत्म होने के बाद देश में पहली बार कांग्रेस को सत्ता से बेदखल होना पड़ा था। कांग्रेस के बागियों के साथ समाजवादियों के गठजोड़ से अस्तित्व में आयी 'जनता पार्टी' ने लोकसभा चुनाव में जबरदस्त जीत दर्ज की। आरएसएस का राजनीतिक संगठन भारतीय जनसंघ का जनता पार्टी में विलय कर दिया गया था। आपातकाल के बाद सत्ता पर काबिज होने वाली सरकार को विपक्ष की सरकार कहा गया। यह सरकार प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के नेतृत्व में करीब 28 महीने चली। उसके बाद पार्टी में उभरे वैचारिक मतभेदों के चलते जनता पार्टी टूट गयी। भारतीय जनसंघ ने अपने स्वतंत्र अस्तित्व का एलान कर दिया। वहीं समाजवादी खेमें भी बिखर गये और मोरारजी देसाई सरकार के पतन के बाद समाजवादियों ने कांग्रेस के समर्थन से चौधरी चरणसिंह को प्रधानमंत्री की शपथ दिलवाने में कामयाबी हासिल कर ली। लेकिन यह सरकार भी लोकसभा के बाकी कार्यकाल को पूरा नहीं कर सकी। नतीजतन देश को पहले मध्यावधि चुनाव का सामना करना पड़ा। गौरतलब है कि आज़ादी के बाद पहली गैर कांग्रेसी सरकार को गिराने में आरएसएस और कांग्रेस की सामूहिक भूमिका रही। मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस ने इंद्रिरा गांधी के नेतृत्व में ज़ोरदार वापसीं​ की और बहुमत का आंकड़ा हासिल किया। श्रीमती इंद्रिरा गांधी ने एक बार फिर प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और सत्ता से बेदखल होने के बाद पुन: देश की बागड़ोर संभाली। लेकिन अगले आम चुनाव से पहले ही स्वर्ण मंदिर में सेना भेजने से नाराज़ सिख अंगरक्षकों ने उन्हें उनके ही निवास में गोलियों से छलनी कर दिया। इसके साथ ही आयरन लेड़ी कही जानें वाली इंद्रिरा गांधी की जीवन यात्रा का अंत हो गया।

ऑपरेशन ब्लू स्टार (1984)

अलग खालिस्तान की मांग कर रहे सिख आतंकवादियों के खिलाफ सेना ने बड़ी कार्रवाई की। 1981 से जरनैल सिंह भिंडरांवाले अमृतसर में सिखों के सबसे पवित्र गुरुद्वारे स्वर्ण मंदिर के पास छुपा था। उसके साथ हथियारबंद अनुयायी भी थे।

एक जून 1984 को सैन्य कार्रवाई हुई। सेना ने स्वर्ण मंदिर परिसर के अंदर जाकर आंतकियों को मार गिराया। मेजर जनरल बराड़ ने इसकी जिम्मेदारी संभाली। इस कार्रवाई का कोडनेम था ऑपरेशन ब्लू स्टार।

असर

इस कार्रवाई से कुछ सिखों में इंदिरा सरकार के प्रति गुस्सा भर गया। सेना की ईकाइयों में विरोध के स्वर सामने आने लगे। इसके कुछ ही समय बाद सिख अंगरक्षकों ने इंदिरा गांधी की हत्या कर दी।

सिख विरोधी दंगे (1984)

यह भारत के इतिहास की सबसे भयानक घटनाओं में दर्ज है। इंदिरा गांधी की हत्या के एक दिन बाद एक नवंबर 1984 को देशभर में सिख विरोधी दंगे भड़क गए। नरसंहार में करीब 15 हजार निर्दोष लोगों को मार दिया गया। राजधानी दिल्ली के भी ज्यादातर इलाकों में हत्या और लूटपाट की घटनाएं हुईं। निर्दोष लोगों की दुकानें, घर और गुरुद्वारे लूट लिए गए।

असर
पंजाब में आतंकवाद चरम पर पहुंचा और यह सूबा पाकिस्तान की आतंकी गतिविधियों के साथ ही खालिस्तान समर्थकों के आतंक की चपेट में आ गया। फिलहाल वहां हालात काबू में हैं।

भोपाल गैस कांड (1984)

दो दिसंबर को भोपाल के यूनियन कार्बाइड प्लांट में भीषण गैस रिसाव से पूरे देश में हड़कंप मच गया। इससे पूरे भोपाल शहर में मौत का तांडव मच गया था। करीब पांच लाख 58 हजार से ज्यादा लोग जहरीले रसायनों के रिसाव की चपेट में आ गए। अनुमान है कि इस त्रासदी में तकरीबन 25 हजार लोगों की जानें चली गईं। हजारों लोग विकलांगता के शिकार हो गए। घटना के सालों बाद भी जन्म लेने वाले कई बच्चे विकलांग पैदा हो रहे हैं।

असर

दुनिया के लिए यह हादसा एक सबक बना। गैस प्रभावितों के स्वास्थ्य सुविधाओं, राहत और पुनर्वास, मुआवजे के लिए लंबी लड़ाई चली।

शाहबानो केस (1985)

65 साल की शाहबानो पांच बच्चों की मां थीं। तलाक के बाद पति से गुजारा भत्ता पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को पति से गुजारा भत्ता पाने का हक है। कोर्ट के इस फैसले का कट्टपरंथी मुस्लिम संगठनों ने विरोध किया।

इस दबाव में कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटते हुए मुस्लिम महिला (तलाक पर संरक्षण अधिनियम), 1986 पारित किया। इसके तहत पति को गुजारा भत्ता देने के दायित्व से मुक्त कर दिया गया।

असर

मुस्लिम महिलाओं के लिए सरकार का यह फैसला किसी झटके से कम नहीं था। इस फैसले की वजह से राजीव गांधी की तत्कालीन सरकार पर मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लगा।

विवादित बावरी मसजिद का ताला खुलना (1986)

प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने निचली अदालत के एक फैसले के बाद अयोध्या में विवादित बावरी मसजिद का ताला खुलवाने का फैसला किया। 1948 में मसजिद में मुर्ति रखे जाने के विवाद के बाद से यह मसजिद इवादत के लिए बंद थी। लेकिन चबूतरे पर हिंदू श्रद्धालू पूजा अर्चना करते रहते थे। मसजिद का ताला खुलने के बाद विवाद गरमा गया। भाजपा ने इस मुद्दे को अपने चुनावी एजेंड़ में शामिल कर लिया। हांलाकि राजीव गांधी ने मुसलिम तुष्टिकरण के जबाव में हिंदुओं को खुश करने की कोशिश की थी।

वीपी सिंह सरकार ने लागू की मंडल आयोग की रिर्पोट (1990)

राजीव गांधी सरकार में रक्षामंत्री रहे विश्वनाथ प्रताप सिंह ने 1887 में बोफोर्स दलाली का आरोप लगाकर सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया। 1988 में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले समाजवादियों ने एकता मुहिम के तहत 'जनतादल' का गठन हुआ। इसका नेतृत्व कांग्रेस के बागी नेता वीपी सिंह सौंपा गया। 1989 के लोकसभा चुनाव में 'जनतादल' ने वामपंथी दलों और आरएसएस के राजनीतिक संगठन भाजपा के साथ भी चुनाव तालमेल किया। आज़ादी के बाद वैचारिक दृष्टि से कांग्रेस के खिलाफ यह सबसे बड़ी गोलबंदी थी। यह पहला मौका था, जब चुनावी तालमेल में वामपंथ और दक्षिण पंथ एक साथ नज़र आया था। वीपी सिंह के 'राष्ट्रीय मोर्चा' में 'जनतादल' के अलावा दक्षिण के क्षेत्रीय दल शामिल थे। कांग्रेस के खिलाफ भारी आक्रोष के बावजूद दक्षिण के क्षेत्रीय दल कांग्रेस को रोकने में कामयाब नही रहे। नतीजतन, केंद्र में 'राष्ट्रीय मोर्चा' सरकार बहुमत के आंकड़े से काफी पीछे रह गयी। इन हालात में वामपं​थी मोर्चा और भाजपा के बाहरी समर्थन से वीपी सिंह सरकार अस्तित्व में आ सक।

केंद्र में 'राष्ट्रीय मोर्चा' के सत्तारूढ़ होने के बाद भाजपा अध्यक्ष लाल कृष्ण आड़वाणी के नेतृत्व में अयोध्या में रामजन्म भूमि मुक्ति आंदोलन शुरू कर दिया। कारसेवा के लिए हिंदुओं के जत्थे अयोध्या की ओर बढ़ने लगे। जब कानून व्यवस्था बेकाबू होने लगी। तब लालकृष्ण आड़वाणी को उत्तर प्रदेश की सीमा में घुसने से पहले बिहार के समस्तीपुर में हिरासत में ले लिया गया। बहरहाल, इस घटना के बाद भाजपा ने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया। नतीजतन, 11 महीने में केंद्र सरकार का पतन हो गया। इसके बाद से देश में सांप्रदायिक उन्माद भड़क गया और रामजन्म भूमि मुक्ति आंदोलन राष्ट्रव्यापी बन गया। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल इस मामले को निपटाकर मंदिर निर्माण का रास्ता साफ कर दिया है। सत्तारूढ़ भाजपा इस श्रेय ले रही है। 2024 में एक बार और सत्तारूढ़ दल इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश करेगा।

उस वक्त उत्तर प्रदेश की मुलायम सिंह सरकार ने अयोध्या में बेकाबू कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया था। पुलिस फायरिंग में कुछ कारसेवकों की मौत भी हुई थी। उस वक्त भाजपा अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी थे।

भाजपा की इस सांप्रदायिक राजनीति से निपटने के लिए प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने 1983 से आलमारी में धूल चाट रही मंडल कमीशन की रिर्पोट लागू कर दी। वीपी सिंंह के इस फैसले को राजनीतिक जगत में 'मंडल बनाम कमंडल' कहा गया। इसका असर यह है कि केंद्र की मोदी सरकार ने आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ से ठीक पहले खत्म हुए संसद के मानसून सत्र में राज्यों के पिछड़ों को चिंहित करने के ​अधिकार को बहाल कर दिया है। चर्चा है कि अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा के चुनावी मुद्दों में पिछड़ों का मुद्दा प्रमुखता से छाया रहेगा।

राजीव गांधी की हत्या (1991)

राजीव गांधी की हत्या 21 मई को 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरम्बदूर में कर दी गई। उनकी हत्या तमिल के लिबरेशन टाइगर्स के आत्मघाती हमलावर ने लोकसभा चुनाव के प्रचार अभियान के दौरान की। श्रीलंका में 1987-90 में तैनात भारतीय सैनिकों द्वारा तमिलों की हत्या का बदला लेने के लिए लिट्टे ने यह हत्या की। इस हत्या से पूरा देश सदमे में था।

असर

राजीव गांधी की हत्या के बाद श्रीलंका पर लिट्टे को खत्म करने का दबाव बढ़ा। सेना ने मई 2009 में लिट्टे का खात्मा कर दिया। लिट्टे नेता प्रभाकरण और पोत्तू अम्मान की भी कहानी खत्म हो गई।

बाबरी मस्जिद विध्वंस (1992)

1990 में अयोध्या में रामजन्म भूमि मुक्ति आंदोलन शुरू हुआ था। 1992 में यह आंदोलन अपने चराम पर तब नज़र आया, जब अयोध्या में विवादित बाबरी मस्जिद के ढांचे को गिरा दिया गया। 16वीं सदी में अयोध्या में बनी मस्जिद को कारसेवकों ने ढहा दिया। इस मामले में फैजाबाद में दो एफआईआर दर्ज हुई। भाजपा नेता लालकृष्ण आडवणी, उमा भारती समेत लाखों कारसेवकों के खिलाफ केस दर्ज हुआ।

असर

इस वजह से पूरे देश में सांप्रदायिक तनाव फैल गया। देशभर में हुए सांप्रदायिक दंगों में दो हजार से ज्यादा लोग मारे गए।

मुंबई धमाका (1993)

बाबरी मस्जिद विध्वंस का बदला लेने के लिए दाऊद इब्राहिम ने मुंबई में बम धमाकों की साजिश रची। पूरी योजना के साथ मुंबई के 13 अलग-अलग स्थानों पर धमाके किए गए। इन धमाकों में 257 लोग मारे गए, जबकि 700 बुरी तरह घायल हो गए। 19 नवंबर 1993 में यह मामला केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपा गया। इन धमाकों के मास्टरमाइंड अबू सलेम समेत अन्य कई दोषियों को विशेष टाडा अदालत ने सजा भी सुना दी है।

असर

पूरा देश इस धमाके से दहल गया। मुंबई की तेज रफ्तार जिंदगी पटरी से उतर गई। आतंकियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग उठी।

भाजपा ने पहली बार केंद्र की बागड़ोर संभाली (1996)

राम मंदिर मुद्दे पर भाजपा की ताकत देश में काफी बढ़ चुकी थी। 1996 के लोकसभा चुनाव में किसी भी राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। त्रिशंकु लोकसभा में भाजपा 162 सीट के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। सदन में सबसे बड़ा दल होने के नाते भाजपा ने सरकार बनाने का दावा राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा के समक्ष पेश किया। राष्ट्रपति ने भाजपा संसदीय दल के नेता अटल बिहारी बाजपेयी को सरकार बनाने का मौका दिया। लेकिन इस सरकार को 13 दिन में पतन हो गया और उसके बाद कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचड़ी देवगौडा के नेतृत्व में राष्ट्रीय मोर्चा सरकार का गठन हुआ। कांग्रेस के समर्थन से बनी इस सरकार का दस महीने में पतन हो गया। उसके बाद कांग्रेस ने चेहरा बदलवा कर मोर्चा सरकार को पुन: समर्थन दिया। लेकिन जैन आयोग की एक रिर्पोट के मुद्दे पर कांग्रेस ने मोर्चा सरकार से समर्थन वापस ले लिया। गुजराल सरकार के पतन के बाद हुए मध्यावधि चुनाव में भाजपा 183 सांसदों के साथ एक बार फिर सबसे बड़ा दल बनकर उभरी।

भाजपा ने दूसरी बार अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए सरकार का गठन किया। लेकिन 13 महीने बाद लोकसभा में यह सरकार एक मत से हार गयी और प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी को इस्तीफा देना पड़ा। एक बार फिर हुए मध्यावधि चुनाव में भाजपा 183 सांसदों का आंकड़ा बरकरार रखने में कामयाब रही और तीसरी बार अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा सत्ता पर काबिज हुई। एनडीए की इस सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया। केंद्र की अटल सरकार ने 2004 का चुनाव में इंडिया शाइनिंग के नारे पर लड़ने का फैसला किया। यह चुनाव भाजपा हार गयी और उसे 6 साल बाद फिर सत्ता से बेदखल होना पड़ा।

सोनिया गांधी की राजनीति में एंट्री (1998)
राष्ट्रीय मोर्चा सरकार से समर्थन वापस लेेने बाद कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी के खिलाफ पार्टी में जबरदस्त असंतोष व्यप्त हो गया। उस वक्त पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी ने राजनीति में आने का फैसला किया और सीताराम केसरी के बाद सोनिया गांधी को पार्टी की कमान सौंप दी गयी। लोकसभा के 1999 में मध्यावधि चुनाव में वह यूपी की रायबरेली सीट से चुनाव जीतीं। 2004 में उनके नेतृत्व में कांग्रेस की एक बार फिर सत्ता में वापसी हुई। भाजपा नेताओं ने उस वक्त सोनिया गांधी को विदेशी बताते हुए पीएम बनने का विरोध किया। तब सोनिया गांधी ने सिख समुदाय के कांग्रेस नेता मनमोहन सिंह का राजतिलक करवाया। सिंह के नेतृत्व में यूपीए सरकार 10 केंद्र की सत्ता पर काबिज रही।

कारगिल में पाक को शिकस्त (1999)

कश्मीर मुद्दे पर भारत-पाकिस्तान के बीच यह अघोषित युद्ध हुआ। शुरुआत पाकिस्तान ने की, हांलाकि पाकिस्तान ने कभी इसे युद्ध नहीं माना। तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ ने कारगिल युद्ध को अंजाम दिया। यह जंग कारगिल की पहाड़ियों पर लड़ी गई। एलओसी के अंदर पाकिस्तानी सेना की घुसपैठ के बाद भारत ने 'ऑपरेशन विजय' शुरू किया। जुलाई में युद्ध समाप्त हो गया। भारत ने टाइगर हिल पर सफलतापूर्वक कब्जा कर लिया। उस वक्त देश के प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी थे।

असर:

पाकिस्तान को एक बार फिर हार का सामना करना पड़ा। उसे भारत से करारा जवाब मिला। दुनियाभर में पाकिस्तान बेनकाब हो गया।

कंधार विमान अपहरण कांड (1999)

इंडियन एयरलाइंस की उड़ान आईसी-814 24 दिसंबर 1999 को काठमांडू से दिल्ली वापस जा रही थी। इसमें 180 यात्री और चालक दल सवार थे। शाम पांच बजे जैसे ही विमान ने भारतीय क्षेत्र में प्रवेश किया, पांच पाकिस्तानी अपहरणकर्ताओं ने उस पर कब्जा कर लिया। लाहौर से दुबई के रास्ते होते हुए इंडियन एयरलाइंस का ये अपहृत विमान अगले दिन अफगानिस्तान के कंधार पहुंचा। उस दौर में कंधार पर तालिबान का राज था।

असर:

यात्रियों की सुरक्षा के लिए विमान को छोड़ने के एवज में भारत को तीन आतंकवादियों को रिहा करना पड़ा। इसमें एक आतंकी मसूद अजहर था। इस वक्त भी प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी थे।

मैच फिक्सिंग कांड: (2000)

मैच फिक्सिंग कांड क्रिकेट इतिहास का सबसे बड़ा स्कैंडल है। दिल्ली पुलिस ने खुलासा किया था कि दक्षिण अफ्रीका और भारतीय टीम के पांच खिलाड़ी मैच फिक्सिंग के लिए दलालों के संपर्क में थे। इस मामले में दक्षिण अफ्रीकी कप्तान हैंसी क्रोनिए का नाम सबसे प्रमुख था। मोहम्मद अजहरुद्दीन और अजय जडेजा जैसे भारतीय खिलाड़ियों के नाम भी सामने आए थे। इन खिलाड़ियों पर जानबूझ कर अंडर-परफॉर्म करने के लिए पैसे स्वीकार करने के आरोप लगे।

असर:

इस कांड ने देश के क्रिकेट प्रेमियों का दिल तोड़ दिया। अजहर और अजय जडेजा पर आजीवन प्रतिबंध लगा दिया गया।
 

गुजरात में भूकंप (2001)

26 जनवरी को गुजरात में करीब दो मिनट तक आया भूकंप भयंकर तबाही लेकर आया। भूकंप ने गुजरात के कच्छ इलाके में तबाही मचा दी।

असर:

करीब 20 हजार लोग मारे गए। करीब चार लाख मकान जमींदोज हो गए। छह लाख लोग बेघर हो गए।

संसद पर हमला (2001)

13 दिसंबर को संसद भवन पर आत्मघाती हमला हुआ। लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने हमला किया। सफेद एंबेसडर से पांच आतंकी संसद परिसर में घुसे। वे 45 मिनट तक गोलियां बरसाते रहे। इस हमले से पूरा संसद भवन दहल उठा। दिल्ली पुलिस के जवान समेत कुल नौ लोग शहीद हुए। आखिरकार सुरक्षाकर्मियों ने आतंकियों को मार गिराया। देश के प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी थे।

असर:

यह देश की आबरू पर हमला था। इस घटना में आतंकी अफजल गुरू को दोषी ठहराया गया। नौ फरवरी 2013 को उसे तिहाड़ जेल में फांसी दी गई। इस हमले के बाद संसद की सुरक्षा अभूतपूर्व रूप से बढ़ाई गई।

गुजरात दंगे (2002)

अयोध्या से ट्रेन में सवार होकर गोधरा लौट रहे 59 हिंदू तीर्थयात्रियों के रेल डिब्बे को दंगाइयों ने आग लगा दी। इसके बाद गुजरात में सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई। तीन दिनों तक चली हिंसा में एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ दिन पहले ही सत्ता की बागड़ोर संभाली थी। केंद्र की अटल बिहारी बाजपेयी सरकार पर गुजरात सरकार बर्खास्त करने का दबाव पड़ा। लेकिन केंद्र ऐसा कोई फैसला नहीं किया। भाजपा ने भी मुख्यमंत्री नहीं बदला।

असर:

राज्य में सांप्रदायिक दंगों ने लोगों का मनोबल तोड़ दिया। तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गोधरा कांड और गुजरात दंगों की जांच के आदेश दिए। जस्टिस नानावटी की अध्यक्षता में आयोग का गठन हुआ।

सुनामी (2004)

26 दिसंबर को हिंद महासागर में समुद्र के नीचे भूकंप आने से विशाल सुनामी आई। इससे भारत में 16,279 लोगों की जानें चली गई। भारत में इसका सबसे ज्यादा असर आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और अंडमान निकोबार में देखा गया।

असर:

इस घटना के बाद भारत ने सुनामी वॉर्निंग सिस्टम बनाया। हैदराबाद में भारतीय सुनामी अर्ली वॉर्निंग सिस्टम की शुरुआत हुई।

मुंबई में आतंकी हमला (2008)

26 नवंबर को मुंबई पर आतंकवादी हमला हुआ। पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा ने यह हमला किया। 10 आतंकी कराची से समुद्र के रास्ते मुंबई में आए थे। इस आतंकी हमले में 166 लोग मारे गए। 300 से ज्यादा लोग हमले में घायल हुए थे। सुरक्षा बल, आतंकवादियों से तीन दिनों तक जूझते रहे। 29 नवंबर की सुबह तक नौ हमलावरों का सफाया हुआ। आतंकी मोहम्मद अजमल कसाब जिंदा पकड़ा गया।

असर:

पाकिस्तान की भारत के खिलाफ आतंकी साजिश एक बार फिर बेनकाब हुई। पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ा। भारत में चले मुकदमे के बाद अजमल कसाब को फांसी दी गई।

दंतेवाड़ा नरसंहार (2010)

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में यह अब तक का सबसे घातक नक्सली हमला था। इस हमले में नक्सलियों ने सीआरपीएफ के 76 जवानों की घात लगाकर हत्या कर दी।

असर:

तत्कालीन गृहमंत्री पी चिदंबरम ने इस्तीफे की पेशकश की। नक्सलियों के खिलाफ बड़े अभियान चलाए गए।

निर्भया सामूहिक दुष्कर्म केस (2012)

16 दिसंबर की रात चलती बस में एक मेडिकल छात्रा के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ। निर्भया को इलाज के लिए सिंगापुर तक भेजा गया। 13 दिनों तक जिंदगी के लिए संघर्ष करने के बाद उसने दम तोड़ दिया।

असर:

इस घटना से पूरा देश शोक में डूब गया। घटना ने देश को झकझोर कर रख दिया। लोग गुस्से में भर उठे और सड़कों पर उतर आए। महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानून को और सख्त किया गया। इसे निर्भया एक्ट नाम दिया गया। सरकार हर साल महिलाओं की सुरक्षा के लिए निर्भया फंड घोषित करने लगी।

उत्तराखंड में बाढ़ (2013)

16 जून को राज्य ने भयंकर त्रासदी का सामना किया। भारी बारिश और इससे आई बाढ़ की वजह से केदारनाथ से लेकर ऋषिकेश तक भयानक तबाही मची। करीब पांच हजार लोग मारे गए। जानमाल का भारी नुकसान हुआ। हजारों लोग बेघर हो गए, कई लापता हो गए।

असर:

केदारनाथ मंदिर को आंशिक नुकसान पहुंचा। कई गांव तबाह हो गए। बाद में केदारनाथ मंदिर में मरम्मत का काम हुआ।

पुलवामा आतंकी हमला (2019)

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले जम्मू कश्मीर ​के पुलवामा क्षेत्र में एक आतंकी हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हुए थे। 14 फरवरी 2019 को जैश की एक आत्मघाती दस्ता कार में​ 100 किलो विस्फोटक के साथ सीआरपीएफ जवानों की बस से जा टकरायी थी। इस दर्दनाक हादसे में 40  सीआरपीएफ जवानों की मौत हो गयी और ​कई जवान गंभीर रूप से ज़ख्मी हो गये।

असर
देश में चुनावी माहौल बदल गया। केंद्र की मोदी सरकार के पक्ष में मतदाता गोलबंद हुए और मोदी सरकार पहले से ज्यादा ताकतवर हो कर सत्ता में लौटी। पीएम मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल में भाजपा के चुनावी मुद्दों को अमलीजामा पहनाना शुरू किया। मोदी सरकार ने पहले ही साल में अनुच्छेद 370 ​​को रद्द करने और नागरिक संशोधन विधेयक (सीएए) को मंजूरी दे दी। यह दोनों फैसले भाजपा के चुनावी मुद्दे बन चुके है।

कोरोना महामारी: (2020)

2020 को कोरोना महामारी के कारण याद किया जाएगा। इस महामारी ने देश के लाखों लोगों को संक्रमित कर दिया। संक्रमण से अब तक लाखों लोगों की जान चली गई है। देश ने कोरोना की दो लहर का सामना किया। इसने देश की स्वास्थ्य व्यवस्था को हिला कर रख दिया। केंद्र की मोदी सरकार इस महामारी से निपटने में शुरू से विवादों के घेरे में है। विपक्ष जहां सरकार को इस मोर्चे पर असफल मानता है, वहीं सरकार का दावा है कि उसके बेहतर प्रबंधन से इस महामारी पर काबू पाया जा सका है।

असर:

दुनिया का सबसे लंबा और सबसे बड़ा लॉकडाउन भारत में लगाया गया। लोगों के शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ा। दुनिया भर की अर्थ व्यवस्था चरमरा गयी है। भारत भी उससे अछूता नहीं है। महामारी के दौरान गरीबी रेखा के नीचे वालों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। वैक्सीन बनाने की दिशा में देश आत्मनिर्भर बना। लेकिन उसकी उपलब्धता की दिक्कत के चलते टीकाकरण अभियान गति नहीं पकड़ सका है। स्वदेशी वैक्सीन कोवाक्सिन समेत पांच वैक्सीन को आपात इस्तेमाल की मंजूरी मिल चुकी है। अब तक 50 करोड़ से ज्यादा टीकों के डौस लगाए जा चुके है।

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