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(जलीस अहसन) सदियों के विवाद, विध्वंस और बार बार हुए दंगों में हज़ारों लोगों के मारे जाने के बीच, देश की शीर्ष अदालत ने पिछले साल, अयोध्या के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मसले को लेकर बीच का हल निकालने का प्रयास करते हुए, विवादित स्थल पर राम मंदिर और उससे कुछ दूरी पर धन्निपुर गांव में मस्जिद बनाने का फैसला दिया। इसे हिन्दू-मुस्लमान, दोनों पक्षों ने मान लिया। कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस मंदिर निर्माण के भूमि पूजन कार्यक्रम में स्वयं हिस्सा लिया और उस दौरान हुई पूजा में यजमान भी बने। 5 अगस्त का शिलान्यास के लिए जो दिन चुना गया, इत्तेफाक से वह, जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 और 35ए को हटाए जाने की पहली बरसी भी थी।

अदालत द्वारा इस मसले का हल निकाले जाने के प्रयास के बाद भी कटुता और अस्वाद के सुर रूक नहीं रहे हैं। एक ओर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने बयान दिया कि अयोध्या की बाबरी मस्जिद की जगह, धन्निपुर गांव में नयी मस्जिद निर्माण के शिलान्यास कार्यक्रम में अगर उन्हें बुलाया भी गया, तो वह नहीं जाएंगे। उधर मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड ने, तुर्की में हागिया सोफिया चर्च को फिर से मस्जिद बनाए जाने का उदाहरण देते हुए कहा, ‘‘बाबरी मस्जिद थी और हमेशा मस्जिद रहेगी।‘‘ 

एआईएमएम के प्रमुख और लोकसभा सदस्य असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, ‘‘बाबरी मस्जिद ज़िंदा थी, है, और रहेगी।‘‘ वैसे इन मुस्लिम संगठनों के इल्म में भी यह ज़रूर होगा कि सउदी अरब सहित कई मुस्लिम देशों में, सड़क या अन्य बड़ी परियोजनाओं के रास्ते में आने वाली मस्जिदों अथवा धार्मिक स्थलों को गिरा कर उन्हें दूसरी जगह स्थापित किया जाता है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री सहित, इन मुस्लिम संगठनों के नेताओं के बयानों से साफ है कि वे इस बारे में माननीय अदालत के निर्णय का दिल से सम्मान नहीं कर रहे हैं। अदालत ने हालांकि अपने जजमेंट में निम्न तीन महत्वपूर्ण तथ्य मानने के बाद भी मन्दिर निर्माण के पक्ष में फैसला किया था। अदालत ने कहा था कि इस बात के कोई सुबूत नहीं हैं कि किसी निर्माण को गिरा कर बाबरी मस्जिद बनाई गई थी। बाबरी मस्जिद में अवैध तरीके से मूर्तियां रखी गईं और यह भी कि बाबरी मस्जिद का गिराया जाना असंवैधानिक था।

इन तथ्यों के बावजूद सर्वोच्च न्यायालय ने शायद यही सोच कर मंदिर के पक्ष में निर्णय दिया होगा कि मस्जिद गिरा कर अस्थाई मंदिर बना हुआ है और राजनीतिक-धार्मिक आंदोलनो के कारण, हिन्दू समुदाय के एक बड़े वर्ग में यह भावना है कि भगवान राम का जन्म यहीं हुआ था। ऐसे में इस धार्मिक स्थल की स्थिति में बार बार बदलाव करना, देश और समाज दोनों के लिए ठीक नहीं होगा। दूर की सोच वाली अदालत के इस फैसले को हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों ने, कुछ ‘मलाल‘ के बावजूद स्वीकार कर लिया कि देश और समाज की इसी में भलाई है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जैसे ज़िम्मेदार पद पर विराजमान योगी आदित्यनाथ और मुस्लिम संगठनों को ऐसे बयान देने से बचना चाहिए था जिससे समाज में कटुता बढ़े। मगर राजनीति से सरोकार रखने वालो का मक़सद ही जनता को किसी न किसी बहाने बरगलाना और बहकाना होता है, जिससे रोज़ी-रोटी जैसे मूल विषयों से उनका ध्यान भटका रहे और दोनों को यही भय सताए रहे कि उनका 'धर्म संकट' में है।

योगी आदित्यनाथ यह बयाने देने के साथ ही यह भी कहते हैं कि धन्निपुर गांव में मस्जिद निर्माण शिलान्यास कार्यक्रम के लिए ‘‘....न मुझे निमंत्रण मिलेगा, न मैं जाउंगा। मुझे मालूम है कि मुझे ऐसा निमंत्रण नहीं मिलेगा।‘‘ जब योगी जी को मालूम है कि उन्हें निमंत्रण नहीं मिलेगा, तो वह बेवजह समाज में खटास पैदा करने वाली बातें क्यों कह रहे हैं।

राम मंदिर आंदोलन के सक्रिय नेता पूर्व भाजपा सांसद विनय कटियार ने भी विवादित बयान देने शुरू कर दिये हैं। उन्होंने यह दावा किया कि राम मंदिर का शिलान्यास तो हो चुका है। पीएम तो भूमि पूजन के लिए जाएंगे। पत्रकारों के सवालों के जबाव में उन्होंने मथुरा और काशी को मुक्त कराने की बात भी कही। बाबरी मसजिद गिराए जाने के बाद संसद में यह तय हुआ था कि भविष्य में ऐसा कोई मुद्दा नहीं उठाया जाएगा। इसके बावजूद ऐसे बयानों से सांप्रदायिक माहौल खराब होता है। सत्तारूढ़ दल भाजपा नेताओं को ऐसे बयानों से बचना चाहिए। इसके विपरित पार्टी नेतृत्व ने भी ऐसे बयानों पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है।

इसी तरह योगी सरकार के हज, वक़्फ बोर्ड और अल्पसंख्यक कल्याण मामलों के राज्य मंत्री मोहसिन रज़ा, बिना सलाह मांगे राय दे रहे हैं कि धन्निपुर गांव में बनाई जाने वाली मस्जिद का नाम बाबर के नाम पर ना रखा जाए। लेकिन, जैसे राम मंदिर जाने वालों को वहां जाते ही यह बात याद आएगी कि यहां कभी बाबरी मस्जिद हुआ करती थी उसी तरह धन्निपुर में बनने वाली मस्जिद देख कर भी लोगों के ज़हन में यह आएगा ही, यह बाबरी मस्जिद की जगह बनी है।

अयोध्या की ज़मीन के बदले धन्निपुर में मिली ज़मीन के बारे मे, सुन्नी वक्फ बोर्ड का इरादा है कि उस पांच एकड़ ज़मीन में मस्जिद के अलावा अस्पताल, लाइब्रेरी, अनुसंधान केन्द्र भी बनाया जाएगा। बोर्ड ने इन खबरों को एकदम बेबुनियाद बताया है कि विवादास्पद डा कफील खान की देखरेख में वहां कोई ‘‘बाबरी अस्पताल‘‘ बनाया जाएगा। धन्निपुर में मस्जिद आदि के निर्माण कार्यों के लिए, सुन्नी वक्फ बोर्ड ने 15 सदस्यीय इंडो-इस्लामिक सांस्कृतिक फाउंडेशन ट्रस्ट हाल में गठित किया है।

देश और समाज के भले के लिए यही है कि ‘‘बीती ताही बिसार दे, आगे की सुध ले‘‘ जैसी सीख पर अमल शुरू करके, अब देश और समरस समाज के निर्माण में जुटा जाए। लेकिन, जिन हिन्दू और मुस्लमान संगठनों को जनता का भला करने का प्रयास किए बिना ही, उनमें धार्मिक उन्माद भरने भर से, राजनीतिक रोटियां सिक जाती हों तो वे जन आधार तैयार करने के दूसरे मेहनत के रास्ते क्यूंकर अपनाएंगे।

 

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