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नई दिल्ली: एलआईसी का मेगा आईपीओ इसी साल आने की संभावना कम है। सूत्रों के हवाले से मीडिया ने बताया कि भारत के सबसे बड़े बीमाकर्ता का आईपीओ इस फाइनेंशियल ईयर 2021-22 में आने की संभावना नहीं लगती। सरकार रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से शेयर बाजार में जारी उतार-चढ़ाव के बीच इस मेगा आईपीओ को टाल सकती है। हालांकि केंद्र के पास सेबी को नए कागजात दाखिल किए बिना एलआईसी का आईपीओ लॉन्च करने के लिए 12 मई तक का समय है। सूत्रों की मानें तो अप्रैल की शुरुआत में लिस्टिंग की संभावना नहीं है क्योंकि रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से आ रही खबरों के बीच बाजार में उतार-चढ़ाव का दौर जारी है।
एलआईसी द्वारा 13 फरवरी, 2022 को दाखिल दस्तावेजों के मसौदे (डीआरएचपी) को सेबी ने मंजूरी दे दी थी। इससे शेयर बिक्री का रास्ता साफ हो गया था।
सरकार एलआईसी में लगभग 31.6 करोड़ शेयर यानी 5 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने की योजना बना रही है, जिससे सरकारी खजाने में लगभग 60,000 करोड़ रुपये आने का अनुमान है।
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नई दिल्ली: कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) ने वित्त वर्ष 2021-22 के लिए भविष्य निधि (पीएफ) जमा पर ब्याज दर घटाकर 8.1 फीसदी करने का शनिवार को फैसला किया है। यह बीते चार दशक से भी अधिक समय में सबसे कम ब्याज दर है। वित्त वर्ष 2020-21 में यह दर 8.5 फीसदी दी। इससे पहले ईपीएफ पर ब्याज दर सबसे कम 8 फीसदी 1977-78 में थी।
ईपीएफओ के देश में करीब पांच करोड़ सदस्य हैं। एक सूत्र ने बताया, ‘‘ईपीएफओ की निर्णय लेने वाली शीर्ष संस्था सेंट्रल बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज की शनिवार को बैठक हुई, जिसमें 2021-22 के लिए ईपीएफ पर ब्याज दर 8.1 फीसदी रखने का फैसला लिया गया।''
सेंट्रल बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज (सीबीटी) ने 2020-21 के लिए ईपीएफ जमा पर ब्याज दर 8.5 रखने का निर्णय मार्च 2021 में लिया था। इसे अक्टूबर 2021 में वित्त मंत्रालय ने मंजूरी दी थी. अब सीबीटी के हालिया फैसले के बाद 2021-22 के लिए ईपीएफ जमा पर ब्याज दर की सूचना वित्त मंत्रालय को अनुमोदन के लिए भेजी जाएगी।
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नई दिल्ली: क्या यूक्रेन संकट की वजह से अंतर्राष्ट्रीय तेल बाजार में तेज़ी से महंगे होते कच्चे तेल की वजह से भारत में जल्दी ही पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ेंगे? इस अहम सवाल पर पेट्रोलियम मंत्री हरदीप पुरी ने मंगलवार को चुप्पी तोड़ी। हरदीप पुरी ने कहा, "यह कहना कि चुनाव के कारण हमने कीमतें नहीं बढ़ाई थी... यह कहना ग़लत होगा। तेल की कीमतों को लेकर कंपनियों को तय करना है क्योंकि उन्हें भी बाज़ार में बने रहना है। तेल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाज़ार के अनुसार तय होती है।''
पुरी ने इशारा किया कि अंतराष्ट्रीय हालात का असर कीमतों पर पड़ेगा जो मंगलवार को 127 डॉलर प्रति बैरल के आस पास रहीं। उन्होंने कहा, "मैं आप सबको आश्वस्त करता हूं कि देश में कच्चे तेल की कोई कमी नहीं होगी। हम सुनिश्चित करेंगे कि हमारी ऊर्जा जरूरतें पूरी हो सकें। हालांकि, हमारी जरूरतों का 85 प्रतिशत तेल और 55 प्रतिशत गैस हम आयात करते हैं... ये भी तो ध्यान रखिए कि दुनिया में हालात क्या हैं? रूस और यूक्रेन में जंग चल रही है। तेल की कीमत इंटरनेशल स्थितियों पर निर्भर करती है।
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नई दिल्ली: रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच कच्चा तेल बाजार की रिकॉर्ड तेजी से इतना तो साफ है कि आने वाले दिनों में भारत में इसका असर साफ दिखाई देगा। गुजरे हुए हफ्ते में कच्चे तेल की कीमत एक समय पिछले 7 साल के सबसे ऊंचे स्तर 119 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थी। शुक्रवार को एक बैरल क्रूड ऑयल की कीमत 111 यूएस डॉलर से ऊपर चल रही थी। भले ही पिछले चार महीनों से ज्यादा वक्त से देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतें स्थिर चल रही हैं, लेकिन ऐसा कहा जा रहा है कि जैसे पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के नतीजे आते हैं, पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़नी शुरू हो जाएंगी, क्योंकि तेल के दाम बढ़ने से भारत सरकार का आयात बिल भी बढ़ेगा क्योंकि देश में 75 फ़ीसदी से ज्यादा कच्चे तेल का आयात होता है।
पिछले 2 महीनों में कच्चा तेल काफी महंगा हुआ है, लेकिन इस दौरान भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी नहीं की गई है। इसकी वजह से तेल कंपनियों पर आर्थिक बोझ बढ़ता जा रहा है।
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