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नई दिल्ली: केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने शनिवार को कहा कि सरकार एयर इंडिया के परिचालन से बाहर निकलने की योजना बना रही है। जेटली ने डीडी न्यूज के साथ एक साक्षात्कार में कहा, "जेट एयरवेज, इंडिगो, गोएयर जैसी कई निजी विमानन कंपनियां हैं। अगर 86 फीसदी विमानन बाजार निजी क्षेत्र संभाल सकता है तो 100 फीसदी भी निजी क्षेत्र द्वारा चलाया जा सकता है।" राष्ट्रीय यात्री विमानन कंपनी एयर इंडिया की बाजार हिस्सेदारी 14 फीसदी है और उस पर 50,000 करोड़ रुपये का कर्ज है। जेटली ने कहा, "एयर इंडिया पर 50,000 करोड़ रुपये का कर्ज है, जबकि उसके विमानों का मूल्यांकन 20,000-25,000 करोड़ रुपये होगा। नागरिक विमानन मंत्रालय सभी संभावनाएं तलाश रहा है।" नागरिक विमानन राज्यमंत्री जयंत सिन्हा ने पहले कहा था कि एयर इंडिया के कर्जो को कम करने की जरूरत है तथा इसमें वित्तीय बदलाव के लिए बैलेंस शीट के पुर्नगठन की जरूरत है। सिन्हा ने कहा था, "एयर इंडिया में कॉरपोरेट प्रशासन और बेहतर प्रबंधन को लागू करने की भी जरूरत है। इसके अलावा यह भी देखा जाना चाहिए कि एयर इंडिया की गैर-महत्वपूर्ण संपत्तियों का किस प्रकार से सर्वश्रेष्ठ उपयोग किया जा सकता है।" सरकारी नागर विमान सेवा उपक्रम एयर इंडिया ने पिछले वित्त वर्ष में 105 करोड़ रुपये का परिचालन लाभ का दावा किया।

पुणे: कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के केंद्रीय न्यासी बोर्ड (सीबीटी) ने शनिवार को कर्मचारियों और नियोक्ताओं के लिए अनिवार्य योगदान घटाकर 10 फीसदी करने के प्रस्ताव को आज खारिज कर दिया। अभी कर्मचारी और नियोक्ता मूल वेतन का 12 फीसदी ईपीएफ में योगदान करते हैं। ईपीएफओ की शनिवार को यहां बैठक हुई. आज की बैठक के एजेंडा में कर्मचारियों और नियोक्ताओं के लिए अनिवार्य योगदान घटाकर 10 फीसदी किए जाने का प्रस्ताव था। श्रम सचिव एम सत्यवती ने कहा कि नियोक्ता, कर्मचारियों और सरकार के प्रतिनिधियों ने इस पर आपत्ति जतायी और उनका मानना था कि इसे 12 फीसदी बने रहना चाहिए। श्रम मंत्री बंडारू दत्तात्रेय भी बैठक में शामिल हुए। उन्होंने संवाददाताओं को बताया कि बैठक में सीबीटी ने शेयर बाजार में निवेश की सीमा मौजूदा 10 फीसदीसे बढ़ाकर 15 फीसदी करने का निर्णय किया।

नई दिल्ली: कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) का न्यासी बोर्ड अपनी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में अनिवार्य अंशदान को घटाकर 10 प्रतिशत करने के प्रस्ताव को शनिवार को मंजूरी दे सकता है। मौजूदा व्यवस्था के तहत कर्मचारी व नियोक्ता कर्मचारी भविष्य निधि योजना (ईपीएफ), कर्मचारी पेंशन योजना (ईपीएस) तथा कर्मचारी जमा संबद्ध बीमा योजना (ईडीएलआई) में कुल मिला कर मूल वेतन की 12-12 प्रतिशत राशि का योगदान (प्रत्येक) करते हैं। सूत्रों ने बताया कि ईपीएफओ की बैठक 27 मई को पुणे में होनी है। बैठक के एजेंडे में यह विषय भी है। इसके तहत कर्मचारी व नियोक्ता द्वारा अंशदान को घटाकर मूल वेतन (मूल वेतन व महंगाई भत्ता सहित) का 10 प्रतिशत करने का प्रस्ताव है। सूत्रों के अनुसार श्रम मंत्रालय को इस बारे में कई ज्ञापन मिले हैं जिनके अनुसार इस तरह के कदम से कर्मचारियों के पास खर्च के लिए अधिक राशि बचेगी जबकि नियोक्ताओं की देनदारी भी कम होगी। वहीं श्रमिक संगठनों ने इस प्रस्ताव का विरोध करने का फैसला किया है। उनका कहना है कि इससे ये सामाजिक सुरक्षा योजनाएं कमजोर होंगी। ईपीएफओ के एक न्यासी व भारतीय मजदूर संघ के नेता पी जे बनसुरे ने कहा, ''हम इस प्रस्ताव का विरोध करेंगे. यह श्रमिकों के हित में नहीं है।''

बेंगलुरु: इनफोसिस के संस्थापक चेयरमैन एनआर नारायणमूर्ति ने लागत में कटौती के उपाय के तौर पर कर्मचारियों को नौकरी से हटाये जाने पर शुक्रवार को दुख जताया। मूर्ति ने इस संबंध में पूछे गये सवाल पर कहा, ''यह काफी दुख पहुंचाने वाला है।'' हालांकि उन्होंने इस बारे में आगे ज्यादा कुछ नहीं कहा। उल्लेखनीय है कि सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग में चुनौतीपूर्ण परिवेश के बीच इनफोसिस ने घोषणा की है कि वह अर्द्धवार्षिक कार्य प्रदर्शन की समीक्षा करते हुये अपने मध्य और वरिष्ठ स्तर के सैकड़ों कर्मचारियों को 'पिंक स्लिप' पकड़ा सकता है। इनफोसिस में यह घटनाक्रम ऐसे समय सामने आया है जब उसके समकक्ष दूसरी कंपनियां विप्रो और काग्निजेंट भी अपनी लागत को नियंत्रित करने के लिये ऐसे ही कदम उठा रही हैं। अमेरिका की कंपनी काग्निजेंट ने अपने निदेशकों, सहायक उपाध्यक्षों और वरिष्ठ उपाध्यक्षों को 6 से 9 माह के वेतन की पेशकश करते हुये स्वैच्छिक सेवानिवृति कार्यक्रम की पेशकश की है। समझा जाता है कि विप्रो ने भी अपने सालाना कार्य प्रदर्शन आकलन के हिस्से के तौर पर करीब 600 कर्मचारियों को नौकरी छोड़ने के लिये कहा है। इस बारे में ऐसी भी चर्चा है कि यह संख्या 2,000 तक पहुंच सकती है। कार्यकारी सर्च इंजन कंपनी हेड हंटर इंडिया के अनुसार अगले तीन साल तक सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में सालाना 1.75 लाख से दो लाख के बीच रोजगार के अवसर में कटौती की जा सकती है।

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