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संयुक्त राष्ट्र: भारत की अध्यक्षता में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) ने संकल्प लिया कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल किसी अन्य देश के खिलाफ करने न दिया जाए और आतंकवादियों की पनाहगाह न बनने दिया जाए। इसने उम्मीद जताई कि अफगानिस्तान से अफगानी व अन्य देशों के नागरिकों की वापसी को लेकर तालिबान अपनी प्रतिबद्धताओं का पालन करेगा। यूएनएससी ने एक प्रस्ताव ग्रहण किया है। इस प्रस्ताव को फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका ने प्रायोजित किया था। 13 सदस्यों ने इसके पक्ष में वोट किया तो चीन और रूस अनुपस्थित रहे। 

तालिबान द्वारा अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा कर लेने के बाद भारत की सदस्यता के अंतिम दिन 15 देशों के इस संगठन ने अफगानिस्तान में हालात को लेकर यह पहला प्रस्ताव अपनाया है। उल्लेखनीय है कि अगस्त महीने के लिए यूएनएससी की अध्यक्षता भारत के पास थी। इस प्रस्ताव में अफगानिस्तान में संप्रभुता, स्वतंत्रता, क्षेत्रीय अखंडता और राष्ट्रीय एकता को लेकर प्रतिबद्धता की पुष्टि की गई। इसके साथ ही 26 अगस्त को काबुल एयरपोर्ट के पास हुए इस्लामिक स्टेट की ओर से किए गए आतंकवादी हमले की भी निंदा की गई।

इस्लामाबाद: पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने मंगलवार को अंतरराष्ट्रीय समुदाय को चेतावनी देते हुए कहा कि उन्हें अफगानिस्तान को अकेला नहीं छोड़ना चाहिए। कुरैशी ने कहा कि पिछली गलतियों को दोहराने और आर्थिक बर्बादी की कगार पर खड़े युद्धग्रस्त देश को अकेला छोड़ने के गंभीर परिणाम होंगे। वह अपने जर्मनी के समकक्ष हीको मास के साथ एक प्रेस वार्ता को संबोधित कर रहे थे। मास यहां द्विपक्षीय और क्षेत्री मुद्दों पर चर्चा करने के लिए दो दिवसीय यात्रा पर आए हैं।

कुरैशी ने कहा कि यह अफगानिस्तान के इतिहास का एक महत्वपूर्ण क्षण है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यहां जुड़े रहना चाहिए। मानवीय सहायता की श्रृंखला जारी रहनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान को आर्थिक रूप से बर्बाद मत होने दीजिए। उन्होंने पिछली गलतियों को न दोहराने की बात कही और कहा कि अफगानिस्तान कोई विकल्प नहीं है। कुरैशी ने कहा कि दुनिया को अफगानिस्तान के हालात पर और इसे खराब करने वाले तत्वों पर अपनी नजर बनाए रखनी चाहिए।

नई दिल्ली: अमेरिकी सेना के अफगानिस्तान में 20 साल पुराने युद्ध का अंत हो गया है, हालांकि काबुल छोड़ने से पहले अमेरिकी सेना ने बड़ी ही सूझबूझ से हथियारबंद वाहनों को निष्क्रिय कर दिया, ताकि तालिबान के हाथों में पड़ने के बावजूद इनका इस्तेमाल न किया जा सके। अमेरिका ने कहा कि ये विमान अब कभी हवा में नजर नहीं आएंगे। ज्यादातर विमान काम के नहीं रह गए थे। फिर इन्हें बेकार कर दिया गया। वहीं इस युद्ध के अंत के बाद तालिबान 2001 से कहीं ज्यादा मजबूत होकर अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज हो गया। सोशल मीडिया पर कई वीडियोज शेयर किए गए हैं, जिसमें अमेरिकी और नाटों सेनाओं के निकलने के बाद तालिबानी लड़ाके काबुल एयरपोर्ट में प्रवेश कर रहे हैं और हवा में फायर कर जश्न मना रहे हैं। लड़ाके आधी रात को ये फायरिंग करते दिखे।

रिपोर्टस के मुताबिक, आखिरी अमेरिकी सैनिक के काबुल हवाई अड्डे से निकलने के बाद तालिबान के प्रवक्ता ने कहा कि हमारे देश को पूर्व स्वतंत्रता मिल गई है। अमेरिका के इस सबसे लंबे युद्ध में 2500 अमेरिकी सैनिकों और 2,40,000 अफगानों को अपनी जान देनी पड़ी।

वाशिंगटन: अमेरिकी सेना ने सोमवार को अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों के अंतिम दल की विदाई की घोषणा की। तालिबान द्वारा देश पर नियंत्रण करने के बाद अमेरिकी सैनिकों की विदाई के साथ 20 साल के संघर्ष का समापन हुआ। मध्य कमान के प्रमुख जनरल केनेथ मैकेंजी ने कहा, "मैं यहां अफगानिस्तान से अपनी वापसी पूरी होने और अमेरिकी नागरिकों को निकालने के लिए सैन्य मिशन की समाप्ति की घोषणा करने आया हूं।" मैकेंजी ने कहा कि एक बड़े सी-17 सैन्य परिवहन विमान ने काबुल के हामिद करजई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से काबुल के समयानुसार आधी रात से एक मिनट पहले उड़ान भरी।

राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस साल की शुरुआत में अमेरिकी सेना की वापसी के लिए 31 अगस्त की समय सीमा तय की थी। इस्लामिक स्टेट-खोरासन ने दो सप्ताह के निकासी अभियान के दौरान दो हमले किए। एक आत्मघाती बम विस्फोट में 13 अमेरिकी सैनिकों सहित 100 से अधिक लोग मारे गए थे। इसके बाद भारी सुरक्षा के बीच अंतिम उड़ान हुई।

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