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काबुल: अफगानिस्तान पर कब्जा कर चुके तालिबान आतंकी नई इस्लामी सरकार बनाने और अपने सबसे बड़े धार्मिक नेता शेख हैबतुल्ला अखुंदजादा को देश का सबसे बड़ा नेता घोषित करने की तैयारी में है। हैबतुल्ला अखुंदजादा उन गिने-चुने आतंकियों में से एक है, जिसकी जानकारी दुनिया के पास बेहद कम है। वह आज तक कभी भी सार्वजनिक रूप से लोगों के सामने नहीं आया है। अभी यह साफ नहीं है कि घोषणा कब होगी। माना जा रहा है कि तीन दिनों के अंदर एलान संभव है। सरकार में महिलाओं और साथी पक्षों की भागीदारी को लेकर अलग-अलग कयास लगाए जा रहे हैं। अपनी छवि को सुधारने के लिए तालिबान कुछ चौंकाने वाली घोषणाएं भी कर सकता है।

तालिबान के कई बड़े नेता तक उसे नहीं देख पाते 
हैबतुल्ला अखुंदजादा एक ऐसा आतंकी है, जिसको उसके ही संगठन के बहुत ही कम लोग देख पाते हैं। तालिबान के कई बड़े नेताओं को भी उसके ठिकाने के बारे में नहीं पता है। वह रोजमर्रा की जिंदगी में क्या कर रहा है, इसकी जानकारी भी तालिबानी लड़ाकों के पास नहीं होती।

काबुल: अफगानिस्तान की खामा प्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार तालिबान के निर्देशन और प्रोत्साहन आयोग के अध्यक्ष मुल्ला आमिर खान मोतकी ने कहा कि  पंजशीर प्रांत के नेताओं के साथ वार्ता नाकाम रही है। मोतकी ने प्रांत के लोगों से अपने नेताओं को प्रोत्साहित करने की अपील की। 

कब्जे से आजाद अकेला प्रांत

पंजशीर घाटी हिंदुकुश पहाड़ियों में स्थित है। यह काबुल से करीब 90 किलोमीटर उत्तर की ओर है। कुछ ही महीनों में देश की राजधानी काबुल समेत लगभग पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लेने वाले कट्टर इस्लामी संगठन तालिबान की पकड़ से यह प्रांत अभी दूर है।

रिपोर्ट के अुसार मुल्ला ने कहा, 'अफगानिस्तान के हालिया इतिहास में यह पहली बार हो रहा है कि एक नई नियुक्त हुई सरकार ने आम माफी का एलान किया है। पंजशीर प्रांत के लोगों को अभी भी समस्याओं के बीच किसलिए रहना चाहिए? उन्हें आजादी क्यों नहीं मिलनी चाहिए?' बता दें कि तालिबान के खिलाफ विद्रोह आंदोलन के एक मुख्य अफगान नेता अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद तालिबान को चुनौती का एलान कर चुके है।

वाशिंगटन: अफगानिस्तान से अमेरिकियों के निकलने की कोई समय सीमा खत्म नहीं हुई है। जो लोग वहां रह गए हैं और आना चाहते हैं तो वो आ सकते हैं। उनके आने पर कोई रोक नहीं है। काबुल से अमेरिकी सैनिकों की पूरी तरह से वापसी के बाद मंगलवार को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में राष्ट्रपति जो बाइडन ने ये बातें कहीं।

अफगानिस्तान में लोगों को निकालने के काम को अभूतपूर्व बताते हुए बाइडन ने कहा कि काबुल से निकलने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।

उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में अभी 100 से 200 अमेरिकियों के रह जाने का अनुमान है। इनमें से जो आने चाहेंगे उन्हें भी वापस लाया जाएगा। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान से आने के इच्छुक 90 फीसद अमेरिकी नागरिकों को निकाल लिया गया गया है। जो लोग रह गए हैं उन्हें भी निकाला जाएगा। उन्होंने कहा कि 31 अगस्त तक की समय सीमा सैनिकों की वापसी के लिए थी।

बाइडन ने कहा कि अमेरिका ने अफगानिस्तान में जो किया उसे भुलाया नहीं जा सकता है। अमेरिका की मौजूदगी में अफगानिस्तान में लंबे समय तक शांति रही। वहां बहुत ज्यादा भ्रष्टाचार था। हमारा मिशन कामयाब रहा।

संयुक्त राष्ट्र: भारत की अध्यक्षता में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) ने संकल्प लिया कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल किसी अन्य देश के खिलाफ करने न दिया जाए और आतंकवादियों की पनाहगाह न बनने दिया जाए। इसने उम्मीद जताई कि अफगानिस्तान से अफगानी व अन्य देशों के नागरिकों की वापसी को लेकर तालिबान अपनी प्रतिबद्धताओं का पालन करेगा। यूएनएससी ने एक प्रस्ताव ग्रहण किया है। इस प्रस्ताव को फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका ने प्रायोजित किया था। 13 सदस्यों ने इसके पक्ष में वोट किया तो चीन और रूस अनुपस्थित रहे। 

तालिबान द्वारा अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा कर लेने के बाद भारत की सदस्यता के अंतिम दिन 15 देशों के इस संगठन ने अफगानिस्तान में हालात को लेकर यह पहला प्रस्ताव अपनाया है। उल्लेखनीय है कि अगस्त महीने के लिए यूएनएससी की अध्यक्षता भारत के पास थी। इस प्रस्ताव में अफगानिस्तान में संप्रभुता, स्वतंत्रता, क्षेत्रीय अखंडता और राष्ट्रीय एकता को लेकर प्रतिबद्धता की पुष्टि की गई। इसके साथ ही 26 अगस्त को काबुल एयरपोर्ट के पास हुए इस्लामिक स्टेट की ओर से किए गए आतंकवादी हमले की भी निंदा की गई।

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