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काबुल: नई सरकार में प्रमुख पद पाने के लिए बरादर गुट और हक्कानी नेटवर्क के घमासान की वजह से तालिबान को सरकार का गठन तीन-चार दिन टालना पड़ा। इसी घमासान को शांत कराने के लिए पाकिस्तान को खुफिया एजेंसी प्रमुख जनरल फैज हमीद को काबुल भेजना पड़ा है।
दावा किया जा रहा है कि हक्कानी नेटवर्क के नेता अनस हक्कानी और खलील हक्कानी की मुल्ला बरादर और मुल्ला याकूब के साथ झड़प भी हुई है। हक्कानी नेटवर्क सरकार में बड़ी हिस्सेदारी और रक्षामंत्री का पद मांग रहा है, जबकि तालिबान इतना कुछ देने को तैयार नहीं है। इसी वजह से तालिबान सरकार का एलान नहीं कर सका है।
सैन्य आयोग के पद पर भी पेच
बरादर और हक्कानी नेटवर्क के बीच विवाद लगातार बढ़ता जा रहा है। मुल्ला उमर के बेटे मुल्ला याकूब शक्तिशाली तालिबान सैन्य आयोग के प्रमुख की भूमिका निभाना चाहता है। उसका काम तालिबान के फील्ड कमांडरों के एक विशाल नेटवर्क की देखरेख करना होगा।
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सेन डिएगो: अफगानिस्तान से सेना वापस बुलाने के बाद बाइडन प्रशासन अब अपने नागरिकों की सुरक्षित वापसी को लेकर सवालों के बीच घिर गया है। अमेरिकी सरकार के आंकड़ों में बड़ी गड़बड़ी का दावा करते हुए बचाव कार्य में जुटे तमाम समूहों ने कहा, 200 नहीं हजारों अमेरिकी नागरिक अभी अफगानिस्तान में फंसे। बाइडन प्रशासन ने एक सूची जारी कर कहा था कि करीब 200 लोग अफगानिस्तान में छूट गए हैं और उन्हें लाने के लिए विशेष विमान भेजा जाएगा।
बचाव समूहों के अनुसार बहुत सारे लोग तो वापसी के लिए पंजीकरण ही नहीं करा पाए थे और अमेरिकी दूतावास बंद हो गया। इसके अलावा बाइडन प्रशासन ने वापस लाने वालों में तमाम ग्रीन कार्ड धारकों की तो गिनती नहीं की। सेन डिएगो के एक स्कूल के प्रवक्ता होवार्ड शेन ने बताया कि वह कई ऐसे परिवारों को जानते हैं जो वापस नहीं आए। इनमें कई बच्चे और महिलाएं हैं जो तालिबान की बर्बरता के बीच वहां फंसे हैं।
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काबुल: अफगानिस्तान की पंजशीर घाटी में तालिबान और उसके खिलाफ खड़े हुए बलों के बीच शनिवार को ताजा लड़ाई की सूचना मिली। यह कट्टरपंथी इस्लामवादियों के नई सरकार को अंतिम रूप देने के साथ हो रहा है। तालिबान ने घोषणा की है कि वह पंजशीर में प्रतिरोध को खत्म करने के लिए दृढ़ हैं। इससे पहले सोमवार को विद्रोहियों के शासकों के रूप में बदलने की चुनौती का सामना करते हुए अमेरिकी सेना की वापसी हो गई। दो दशकों का युद्ध समाप्त हो गया। लेकिन पंजशीर, जो सोवियत संघ के कब्जे और फिर 1996-2001 के बीच तालिबान के पहले शासन के खिलाफ लगभग एक दशक तक प्रतिरोध करता रहा। वह अब फिर विद्रोह कर रहा है।
तालिबान विरोधी मिलिशिया और पूर्व अफगान सुरक्षा बलों से बने तथाकथित नेशनल रेसिस्टेंस फ्रंट (एनआरएफ) के लड़ाकों के बारे में समझा जाता है कि उन्होंने काबुल से लगभग 80 किलोमीटर (50 मील) उत्तर में घाटी में एक महत्वपूर्ण शस्त्रागार बना लिया है। राजधानी काबुल में रात भर जश्न के साथ गोलियां चलती रहीं क्योंकि अफवाह फैली थी कि घाटी में तालिबान को फतह मिल गई।
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काबुल: अफगानिस्तान की पंजशीर घाटी में तालिबान सेना और विद्रोही लड़ाकों के बीच चल रहे संघर्ष में तालिबान को भारी नुकसान पहुंचा है। नॉर्दर्न अलांयस ने कहा है कि पंजशीर घाटी में तालिबान को कोई मदद नहीं पहुंच पा रही है। वहां सभी तरह के संपर्क साधनों को ध्वस्त कर दिया गया है।
इससे पहले तालिबान ने दावा किया था कि उसने पंजशीर घाटी पर कब्जा कर लिया है और पूरा अफगानिस्तान अब उसके नियंत्रण में है। उधर, विद्रोही लड़ाकों ने तालिबान के इस दावे का खंडन किया है. विद्रोही गुट के कई अन्य नेताओं ने भी पंजशीर पर तालिबान के कब्जे की रिपोर्टों को खारिज कर दिया है, जहां क्षेत्रीय मिलिशिया के हजारों लड़ाके और पुरानी सरकार की सेना के लड़ाके अब भी मौजूद हैं।
विपक्षी ताकतों के नेताओं में से एक पूर्व उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह ने टोलो न्यूज को बताया कि उनके देश छोड़कर भाग जाने की खबरें झूठी थीं। सालेह ने उनके द्वारा भेजी गई वीडियो क्लिप पर कहा, "इसमें कोई संदेह नहीं है कि हम एक मुश्किल स्थिति में हैं। हम तालिबानी आक्रमण के मध्य में हैं।
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