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काबुल: अफगानिस्तान के पंजशीर में तालिबान और विद्रोही बलों यानी रेजिस्टेंस फोर्सेस के बीच खूनी संघर्ष जारी है। तालिबान और प्रतिरोध बलों की जंग में पंजशीर के उत्तर-पूर्वी प्रांत करीब 600 तालिबानी मारे गए हैं। स्पुतनिक ने अफगान रेसिस्टेंस बलों के हवाले से शनिवार को यह बात कही।

पंजशीर के रेजिस्टेंस फोर्स (प्रतिरोध बलों) का दावा है कि शनिवार सुबह से पंजशीर के विभिन्न जिलों में करीब 600 तालिबानियों का खात्मा किया गया। वहीं, 1000 से ज्यादा तालिबानी लड़ाकों को कैद किया गया है या उन्होंने सरेंडर किया है। रेजिस्टेंस फोर्स के प्रवक्ता फहीम दास्ती ने यह ट्वीट किया।

स्पुतनिक के मुताबिक, प्रवक्ता ने आगे कहा कि तालिबान को अन्य अफगान प्रांतों से आपूर्ति प्राप्त करने में समस्या है। इस बीच, क्षेत्र में बारूदी सुरंगों की मौजूदगी की वजह से पंजशीर प्रतिरोध बलों के खिलाफ तालिबान का अभियान धीमा पड़ गया है। अलजजीरा ने बताया कि तालिबान से जुड़े सूत्र ने कहा कि पंजशीर में लड़ाई जारी है।

दुबई: अमेरिकी सेना के अफगानिस्तान छोड़ने के बाद ठप हो गया काबुल स्थित हामिद करजई इंटरनेशनल एयरपोर्ट शनिवार को दोबारा संचालित हो गया। कतर से आई तकनीकी टीम ने अफगानिस्तान की राजधानी के इस एयरपोर्ट को विदेशों से आने वाली सहायता और घरेलू उड़ानों के संचालन के लिए दोबारा शुरू कर दिया।

कतर के अफगानिस्तान में राजदूत ने अल जजीरा चैनल के साथ बातचीत में इसकी पुष्टि की। अल जजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, तकनीकी टीम ने एयरपोर्ट की हवाई पट्टी को पहुंचे नुकसान की मरम्मत स्थानीय अधिकारियों की मदद से की। इसके बाद एयरपोर्ट का संचालन शुरू कर दिया गया। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि खाने, दवाई आदि की मदद लेकर आ रहे विमानों के अलावा अन्य इंटरनेशनल फ्लाइटों का संचालन कब तक शुरू किया जाएगा।
  
लेकिन एयरपोर्ट का संचालन शुरू होने के बाद अरियाना अफगान एयरलाइंस ने काबुल से तीन प्रमुख प्रांतों के बीच घरेलू उड़ानों का संचालन शुरू करने की घोषणा भी कर दी।

वाशिंगटन: अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद दुनिया की नजरें अब वहां सरकार के गठन पर टिकी हुई हैं। अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा कि अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को उम्मीद है कि तालिबान विभिन्न समुदायों और हितों के प्रतिनिधित्व के साथ अफगानिस्तान में समावेशी सरकार गठित करेगा।

अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा, हम देखेंगे कि वास्तव में वहां क्या होता है। लेकिन, सबसे अहम है कि अफगानिस्तान की नई सरकार का स्वरूप कैसा होगा और वह असल में क्या करती है। नई सरकार की नीति कैसी होगी और उसका उद्देश्य क्या होगा, यह अत्यंत महत्वपूर्ण है।

ब्लिंकन ने कहा कि एक समावेशी सरकार के बाद अंत में यही उम्मीद है कि अफगानिस्तान की नई सरकार अपने वादों पर कायम रहते हुए उन्हें पूरा करे। सरकार गठन के बाद खासतौर पर यात्रा की स्वतंत्रता, अफगानिस्तान की धरती को आतंकवाद के लिए इस्तेमाल नहीं होने देना, महिलाओं और अल्पसंख्यकों सहित अफगान नागरिकों के मूल अधिकारों को बरकरार रखते हुए प्रतिशोधों में शामिल नहीं होने जैसे मुद्दों पर नजर रहेगी।

नई दिल्ली: अमेरिका की सैन्य वापसी से अफगानिस्तान में पैदा हुए शून्य को भरने के लिए चीन आतुर नजर आ रहा है। इसके पीछे उसका मकसद मध्य एशिया में अपना प्रभुत्व जमाना है। अंतरराष्ट्रीय विश्लेषण वेबसाइट इनसाइडओवर पर जारी एक रिपोर्ट में फेडेरिको गिलिआनी ने लिखा, बीजिंग लंबे समय से मध्य एशिया में अपना दबदबा बढ़ाने की कवायद में जुटा है और रूस के साथ मिलकर वह शंघाई केंद्रीय संगठन (एससीओ) के जरिए क्षेत्रीय समीकरणों को आकार दे रहा है। अमेरिका की मौजूदगी के कारण अफगानिस्तान में वह पांव नहीं जमा पा रहा था।

लेखक का कहना है, वैसे, अमेरिकी सेना की तैनाती के कारण उलटे चीन को ही सुरक्षा और स्थिरता के मोर्चे पर फायदा मिला था, जिसका लाभ उसने आर्थिक रूप से उठाया है। लेकिन अफगानिस्तान में वह अमेरिका और पश्चिमी ताकतों के सामने मुखर नहीं हो सका। अब पश्चिमी सेनाओं के लौटने से चीन को अफगानिस्तान और आसपास प्रभाव बढ़ाने के लिए जरूरी पृष्ठभूमि मिल गई है। यही वजह है कि काबुल पतन के फौरन बाद तालिबान के साथ दोस्ताना संबंध बनाने की इच्छा जाहिर करने वाले देशों में ड्रैगन शामिल रहा।

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