नई दिल्ली: असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के प्रकाशन से पहले केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि घबराने की कोई जरूरत नहीं है और सभी वास्तविक भारतीयों को अपनी नागरिकता साबित करने के पर्याप्त अवसर दिए जाएंगे। गृह मंत्री ने ट्वीट की श्रृंखला में कहा कि एनआरसी, जिसमें असम के नागरिकों की सूची है, को 15 अगस्त 1985 को हस्ताक्षरित ‘असम समझौते’ के अनुरूप प्रकाशित किया जा रहा है और लगातार इस प्रक्रिया की निगरानी कर रहे सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पूरा पालन किया जा रहा है।
डरने या घबराने का कोई कारण नहीं है
राजनाथ ने कहा, ‘डरने या घबराने का कोई कारण नहीं है। किसी को परेशान नहीं होने दिया जाएगा। हम सुनिश्चित करेंगे कि हर व्यक्ति को इंसाफ मिले और उससे मानवीय तरीके से व्यवहार किया जाए।’ गृह मंत्री ने आश्वस्त किया कि पूरी तरह निष्पक्ष, पारदर्शी और प्रभावी तरीके से एनआरसी की कवायद चल रही है और यह काम इसी तरह जारी रहेगा। उन्होंने कहा, ‘सभी लोगों को कानून के तहत उपलब्ध सभी उपायों का पर्याप्त मौका मिलेगा। प्रक्रिया के हर चरण में सभी लोगों को अपनी बात कहने के पर्याप्त अवसर दिए जा रहे हैं।’
गृह मंत्री ने कहा कि कानून के मुताबिक, पूरी प्रक्रिया चल रही है और उचित प्रक्रिया पालन किया जा रहा है।
'दावों और आपत्तियों के लिए पर्याप्त अवसर उपलब्ध होंगे'
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार साफ कर देना चाहती है कि 30 जुलाई को प्रकाशित होने जा रहा एनआरसी सिर्फ एक मसौदा है और मसौदे के प्रकाशन के बाद दावों और आपत्तियों के लिए पर्याप्त अवसर उपलब्ध रहेंगे। राजनाथ ने कहा, ‘सभी दावों और आपत्तियों का उचित रूप से परीक्षण किया जाएगा। दावों और आपत्तियों के निपटारे से पहले अपनी बात रखने के पर्याप्त अवसर दिए जाएंगे। इसके बाद ही अंतिम एनआरसी प्रकाशित किया जाएगा।’
गृह मंत्री ने कहा कि नागरिकता नियम कहते हैं कि दावों और आपत्तियों के नतीजे से असंतुष्ट लोग विदेशी न्यायाधिकरण में अपील कर सकते हैं। इसलिए एनआरसी के प्रकाशन के बाद किसी को हिरासत केंद्र में रखने का सवाल ही नहीं है। उन्होंने कहा कि असम सरकार से यह सुनिश्चित करने को कहा गया है कि कानून-व्यवस्था बनी रहे और किसी को कानून अपने हाथ में नहीं लेने दिया जाए और सभी की संरक्षा एवं सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हरसंभव उपाय किए जाएं। राजनाथ ने कहा, ‘केंद्र सरकार इस बाबत असम सरकार को हर जरूरी मदद मुहैया कराएगी।’ एनआरसी का पहला मसौदा बीते 31 दिसंबर और एक जनवरी की दरम्यानी रात को प्रकाशित हुआ था, जिसमें 3.29 करोड़ आवेदकों में से 1.9 करोड़ लोगों के नाम शामिल किए गए थे।
अवैध प्रवासियों की पहचान के मकसद से कवायद
बांग्लादेश से सटे असम में अवैध प्रवासियों की पहचान के मकसद से एनआरसी के प्रकाशन की कवायद की जा रही है। केंद्र एवं राज्य सरकारों एवं ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) के बीच हुई बैठकों के बाद 2005 में लिए गए एक फैसले के बाद एनआरसी के प्रकाशन की कवायद की जा रही है। 20 वीं सदी की शुरुआत से ही बांग्लादेश से लोगों के असम में आने का सिलसिला चलता रहा है। असम भारत का एकमात्र राज्य है जहां एनआरसी की व्यवस्था है। पहला एनआरसी 1951 में तैयार किया गया था। एनआरसी तैयार करने की मौजूदा कवायद 2005 में कांग्रेस सरकार के दौरान शुरू हुई थी।
साल 1951 में जब पहली बार एनआरसी तैयार किया गया था, उस वक्त असम में 80 लाख नागरिक थे. असम में अवैध प्रवासियों की पहचान की मांग को लेकर ‘आसू’ ने 1979 में छह साल तक आंदोलन किया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की मौजूदगी में 15 अगस्त 1985 को असम समझौते पर दस्तखत के साथ यह आंदोलन खत्म हुआ था।