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पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड (जद-यू) छोड़ने और एक नयी पार्टी राष्ट्रीय लोक जनता दल (आरएलजेडी) बनाने के एक सप्ताह से भी कम समय बाद उपेंद्र कुशवाहा ने शनिवार को बिहार विधान परिषद् की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। कुशवाहा ने बिहार विधानमंडल का पांच सप्ताह चलने वाला बजट सत्र शुरू होने से कुछ दिन पहले विधान परिषद् के सभापति देवेश चंद्र ठाकुर को अपना इस्तीफा सौंप दिया।

इस्तीफा देने के बाद कुशवाहा ने मुख्यमंत्री पर कटाक्ष किया. कुशवाहा ने ट्वीट किया, ‘‘मुख्यमंत्री जी, 'त्वदीयं वस्तु तुभ्यमेव समर्पये (इसका अर्थ है तुम्हारी दी गई चीज तुम्हें ही समर्पित कर रहा हूं।" उन्होंने लिखा है, ‘‘आज मैंने विधान परिषद् की सदस्यता से इस्तीफा सौंप दिया। मन अब हल्का है. चक्रव्यूह से बाहर आ जाने की सुखद अनुभूति हो रही है। याचना का परित्याग कर रण के रास्ते पर निकल पड़ा हूं।''

कुशवाहा के जद(यू) छोड़ने के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने उनके ‘‘साहस'' के लिए उनकी प्रशंसा की है।

कुशवाहा 2021 में अपनी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का विलय करके जद (यू) में लौट आए थे और उन्हें पार्टी के संसदीय बोर्ड का प्रमुख बनाया गया था। जल्द ही, वह विधान परिषद् के लिए मनोनीत कर दिये गए थे।

कुशवाहा के इस्तीफे के फैसले की रविशंकर प्रसाद और संजय जायसवाल जैसे भाजपा के नेताओं ने प्रशंसा की है, जिनका मानना है कि परिषद् का मनोनीत सदस्य होने के नाते जद (यू) छोड़ने के बाद भी उन्हें अयोग्यता का सामना नहीं करना पड़ सकता था।

कुशवाहा नरेंद्र मोदी नीत सरकार के पहले कार्यकाल में मंत्री रहे थे और 2019 के लोकसभा चुनावों से कुछ महीने पहले राजग छोड़कर महागठबंधन में शामिल हो गए थे।

कुशवाहा का मानना ​​है कि नीतीश कुमार ने वर्तमान सहयोगी राजद के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है, जो राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख लालू प्रसाद के छोटे बेटे तेजस्वी यादव को अगला मुख्यमंत्री बनाना चाहता है।

कुशवाहा 27 फरवरी को एक राज्यव्यापी दौरे की शुरुआत करेंगे, जिसे वह ‘‘लव-कुश'' (कुर्मी और कोइरी) और अत्यंत पिछड़े वर्गों की आकांक्षाओं की रक्षा के प्रयास का हिस्सा बताते हैं। उनका आरोप है कि ये समुदाय ‘‘भाई-भतीजावादी'' राजद के निशाने पर है।

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