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पटना: बिहार में शराबबंदी कानून को लागू हुए दो साल हो गए हैं. मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार का दावा है कि इस कानून से सबसे ज्‍यादा लाभान्वित एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग हुआ है लेकिन आंकड़े कुछ और ही गवाही देते हैं। जेल अधिकारियों के मुताबिक इन समुदायों के लोगों पर इस कानून की मार सबसे ज्‍यादा पड़ी है। बिहार के एक्‍साइज व प्रोहीबिशन एक्‍ट की धारा 29 से 41 के तहत शराब रखना, पीना, बेचना और बनाना गैर जमानती अपराध है। कानून में यह भी कहा गया है कि अगर कोई वयस्‍क घर में शराब पीता पाया जाता है तो घर के अन्‍य वयस्‍क भी नपेंगे। इस मामले में बगैर अदालती आदेश सीधे गिरफ्तारी होती है।

दो साल में सबसे ज्‍यादा गिरफ्तार किए गए दलित व ओबीसी

शराबबंदी कानून तोड़ने के मामले में जेलों में बंद कैदियों में दलित समुदाय और ओबीसी कैदी की संख्‍या सबसे अधिक है। यह आंकड़ा अप्रैल 2016 के बाद बिहार की 8 केंद्रीय, 32 जिला और 17 छोटी जेलों से जुटाया गया है। मसलन जेलों में करीब 27.1 फीसदी एससी कैदी हैं जबकि राज्‍य में उनकी आबादी मात्र 16 फीसदी है।

वहीं जेलों में बंद एसटी कैदी की संख्‍या 6.8 फीसदी है जबकि राज्‍य में उनकी आबादी मात्र 1.3 फीसदी है। ओबीसी के मामले में यह आंकड़ा 34.4 फीसदी है जबकि राज्‍य में उनकी आबादी 25 फीसदी है।

कैदियों में 80 फीसदी ज्‍यादा शराब पीने वाले कैदी

इंडियन एक्‍सप्रेस ने जेल अधिकारियों के हवाले से कहा कि शराबबंदी को लेकर जेल में बंद कैदियों में 80 फीसदी नियमित तौर पर शराब पीने वाले हैं, जिन्‍हें बीते दो साल में पकड़ा गया। पूर्व कैदी और सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप है कि सरकार ने शराब माफिया पर कोई कार्रवाई नहीं की। रिपोर्ट में पटना, गया और मोतिहारी जेल सर्किल की तीन केंद्रीय, 10 जिला और 9 छोटी जेलों में बंद कैदियों की प्रोफाइल का जिक्र है। इनमें बीते दो साल में 1,22,392 लोगों (67.1 फीसदी) को बीते दो साल में शराबबंदी कानून तोड़ने पर पकड़ा गया है।

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