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मुंबई: बंबई हाईकोर्ट ने आज (बुधवार) कहा कि कोई भी कानून महिलाओं को पूजास्थल पर प्रवेश से नहीं रोकता और अगर पुरुषों को अनुमति है तो महिलाओं को भी अनुमति मिलनी चाहिए। अदालत ने कहा कि अगर कोई मंदिर या व्यक्ति इस तरह का प्रतिबंध लगाता है तो उसे महाराष्ट्र के एक कानून के अंतर्गत छह महीने की जेल की सजा हो सकती है। मुख्य न्यायाधीश डीएच वाघेला और न्यायमूर्ति एमएस सोनक की खंडपीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता नीलिमा वर्तक और सामाजिक कार्यकर्ता विद्या बल द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान ये टिप्पणियां कीं। इस याचिका में महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में शनि शिग्नापुर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी को चुनौती दी गई थी। मुख्य न्यायाधीश वाघेला ने आज कहा, ‘‘ऐसा कोई कानून नहीं है जो महिलाओं को किसी स्थान पर जाने से रोके। अगर आप पुरूषांे को अनुमति देते हैं तो आपको महिलाओं को भी अनुमति देनी चाहिए। अगर एक पुरूष जा सकता है और मूर्ति के सामने पूजा कर सकता है तो महिलाएं क्यांे नहीं? महिलाओं के अधिकारांे का संरक्षण करना राज्य सरकार का कर्तव्य है।’’ अदालत ने कहा कि अगर आप भगवान की शुद्धता को लेकर चिंतित हैं तो सरकार को ऐसा कोई बयान देने दीजिए। महाराष्ट्र हिन्दू पूजास्थल :प्रवेश अधिकार: कानून 1956 के तहत अगर कोई मंदिर या व्यक्ति किसी व्यक्ति को मंदिर में प्रवेश से रोकता है तो उसे छह महीने की सजा हो सकती है।

अदालत ने सरकारी वकील अभिनंदन वग्यानी को निर्देश लेने और शुक्रवार को इस बात पर बयान देने का निर्देश दिया कि क्या वह सुनिश्चित करेगी कि महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी जाए। याचिका में महिलाओं को केवल मंदिर नहीं बल्कि गर्भगृह के अंदर प्रवेश की मांग की गई है।

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