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मुंबई: बंबई हाई कोर्ट ने पुणे के वर्ष 2010 के जर्मन बेकरी विस्फोट मामले में एकमात्र दोषी हिमायत बेग को दी गई मौत की सजा को सुबूतों के अभाव में आज (गुरूवार) निरस्त कर दिया, लेकिन विस्फोटक सामग्री रखने के लिए उसे दी गई आजीवन कारावास की सजा की पुष्टि की। न्यायमूर्ति एनएच पाटिल और न्यायमूर्ति एस बी शुकरे की खंडपीठ ने कहा कि बेग को गैरकानूनी गतिविधि निरोधक कानून (यूएपीए) के सभी आरोपों और भारतीय दंड संहिता की धाराओं 120 बी (आपराधिक साजिश), 302 (हत्या) और 307 (हत्या का प्रयास) तथा विस्फोटक सामग्री कानून की कुछ धाराओं से बरी किया जाता है। हालांकि अदालत ने विस्फोटक सामग्री कानून की धारा 5 (बी) के तहत उसे आरडीएक्स रखने का दोषी ठहराने और आजीवन कारावास की सजा की पुष्टि की। अदालत ने मोबाइल फोन के सिम कार्ड खरीदने के लिए फर्जी दस्तावेज देने के लिए भादंसं की धारा 474 के तहत उसकी दोषसिद्धि की भी पुष्टि की। हाई कोर्ट ने कहा कि उसे इस मामले के दो गवाहों द्वारा दायर आवेदनों पर कोई आदेश पारित करने की जरूरत नहीं है क्योंकि उसने बेग को उन आरोपों से बरी कर दिया है।

खास बात यह है कि जब बेग ने मृत्युदंड को चुनौती देने के लिए हाई कोर्ट में अपनी अपील दायर की तो इस मामले के दो गवाहों ने भी एक आवेदन दायर करके अपने सबूत फिर से दर्ज कराने का अनुरोध किया था क्योंकि उनके बयान दबाव में दिये गये थे। काली शर्ट और नीली जीन्स पहने बेग को फैसल के वक्त अदालत में पेश किया गया। बेग को पुणे के कोरेगांव पार्क क्षेत्र में एक लोकप्रिय रेस्तरां जर्मन बेकरी में विस्फोट में शामिल होने पर सितंबर 2010 में र्गिरफ्तार किया गया था। इस घटना में 17 लोगों की मौत हुई थी जबकि 58 घायल हुए थे। वर्ष 2013 में पुणे की एक सत्र अदालत ने उसे दोषी ठहराया था और मौत की सजा सुनाई थी।

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