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नई दिल्ली: प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने की वकालत करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने शुक्रवार को आगाह किया कि प्रतिस्पर्धा अनुकूल नीतियों के बिना केवल व्यावसाय प्रोत्साहन वाली नीतियों के साठगांठ वाले पूंजीवाद सहित कई खतरनाक नतीजे हो सकते हैं। उन्होंने भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग के वार्षिक दिवस व्याख्यान में कहा, ‘सिर्फ व्यापार को समर्थन देना काफी नहीं है। आपको प्रतिस्पर्धा को भी प्रोत्साहन देना होगा। यदि आप व्यापार को प्रोत्साहन दे रहे हैं, लेकिन प्रतिस्पर्धा को नहीं तो इसके परिणाम खतरनाक होंगे।’ इसके लिए उन्होंने रूस का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि वहां काफी निजीकरण हुआ, लेकिन प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहन के लिए कुछ नहीं किया गया है। इससे प्रभुत्व या एकाधिकार की स्थिति बनी। उन्होंने कहा कि भारत के नियमन वाली अर्थव्यवस्था से बाजार अर्थव्यवस्था बनने से सरकार के पास दोहरी क्षमता हो गई है। वह बीएसएनएल, साधारण बीमा कंपनियां और एलआईसी जैसे उपक्रमों का संचालन कर रही है। वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार और नियामकों के बीच एक निश्चित दूरी होनी चाहिए। ‘हम उनको जितना पेशेवर बना पाएंगे उतना ही हमारी अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा होगा।’

जेटली ने प्रतिस्पर्धा की अहमियत और वृद्धि पर उसके प्रभाव के बारे में बताते हुये कहा, ‘आज पूरी दुनिया में लोग निवेश कर रहे हैं और जब वह निवेश के लिये किसी स्थान को चुनते हैं तो किसी सुस्त अर्थव्यवस्था को नहीं चुनते हैं बल्कि वह अधिक प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था में निवेश करना चाहते हैं, वह उचित परिवेश वाली अर्थव्यवस्था में निवेश करना चाहते हैं और वह वहां निवेश करना चाहते हैं जहां काम शुरू करना और बाहर निकलना आसान हो और जिस अर्थव्यवस्था में व्यवसाय के नियम साफ सुथरे और उचित हों।’ उन्होंने कहा कि दिवाला और शोधन अक्षमता कानून के पारित होने से निवेशकों के लिये किसी कारोबार से बाहर निकलने की सुविधा बेहतर होगी।

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