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नई दिल्ली: केन्द्र सरकार ने वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) मामले में कांग्रेस से अपनी मांगों पर एक बार फिर पुनर्विचार करने की अपील की है। सरकार ने कांग्रेस से विशेषतौर से विवाद निपटान के लिये न्यायाधीश की अध्यक्षता में पैनल गठित करने की मांग पर गौर करने को कहा है। सरकार का कहना है कि इससे कर निर्धारण की शक्तियां एक तरह से न्यायपालिका के हाथ में चली जायेंगी जो कि पहले ही धीरे धीरे, एक-एक कदम विधायिका के अधिकार क्षेत्र में घुसपैठ कर रही है। वित्त मंत्री अरूण जेटली ने बुधवार को राज्यसभा में वित्त विधेयक पर हुई चर्चा का उत्तर देते हुये मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस से यह अपील की। इससे पहले कांग्रेस ने कहा कि यदि उसकी तीन मांगों को मान लिया जाता है तो वह जीएसटी का पूरी तरह समर्थन करने को तैयार है। जेटली ने कहा, ‘भगवान के लिये, मैं आपसे प्रार्थना करता हूं कि भारतीय लोकतंत्र के हित में आप इस तरह की बात मत कीजिये (न्यायाधीश के नेतृत्व वाली समिति की)। भारत की न्यायपालिका जिस तरह से विधायिका और कार्यकारी अधिकारों के क्षेत्र में अतिक्रमण कर रही है उसे देखते हुए संभवत: राजकोषीय और बजट बनाना ही आखिरी शक्तियां रह गई हैं जो आपके पास बचीं हैं।

कर लगाना ही एकमात्र अधिकार रह गया है जो राज्यों के पास है।’ उन्होंने कहा, ‘किसी भी राजनीतिक दल के लिये यह पूरी तरह से गलत सोच होगी कि वह यह कहे कि ‘हम कर लगाने का अधिकार अब न्यायपालिका को सौंपते हैं। यह आपका (कांग्रेस का) प्रस्ताव है जो यह कहता है।’ जेटली राज्यसभा के नेता भी हैं। उन्होंने कांग्रेस से कहा कि वह जीएसटी पर रखी गई अपनी मांगों पर फिर से विचार करे। जीएसटी विधेयक राज्यसभा में लंबे अरसे से अटका पड़ा है। कांग्रेस के विरोध की वजह से यह इस सदन में पारित नहीं हो पाया है। जेटली ने कहा कि वह इस मुद्दे पर फिर से कांग्रेस नेताओं के साथ बातचीत करेंगे ताकि इस विधेयक को संसद के मानसून सत्र में विचार एवं पारित कराया जा सके। उल्लेखनीय है कि जीएसटी संविधान संशोधन विधेयक मूल रूप से संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार ने ही तैयार किया था। वित्त मंत्री के जवाब के बाद राज्य सभा ने वित्त विधेयक 2016 और तत्संबंधी विनियोग विधेयक को ध्वनिमत से मंजूरी दे दी और इसे लोकसभा को लौटा दिया। इसके साथ ही संसद में बजट पारित होने की प्रक्रिया पूरी हो गई। जेटली ने अपने जवाब में उच्चतम न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुये कहा कि इसमें शीर्ष अदालत ने सरकार से सूखे से निपटने के लिये एक विपदा शमन कोष बनाने को कहा है। यह कोष राष्ट्रीय आपदा राहत कोष (एनडीआरएफ) और राज्य आपदा राहत कोष (एसडीआरएफ) के अलावा होगा। उन्होंने आश्चर्य जताते हुये कहा कि विनियोग विधेयक पारित हो चुका है ऐसे में शीर्ष अदालत के आदेश का पालन करने के लिये अतिरिक्त धन कहां से आयेगा। क्या आपको यह नहीं दिखाई दे रहा है कि किस प्रकार एक-एक कदम बढ़कर भारत की विधायिका के महल को धराशायी किया जा रहा है। विनियोग विधेयक के बाहर हमें यह कोष बनाने को कहा जा रहा है।’ वित्त मंत्री ने कहा, ‘आने वाले समय में यदि केन्द्र और राज्यों के बीच कर संबंधी कोई विवाद होता है तो एक प्रमुख पार्टी कहेगी कि नहीं इस बारे में अब न्यायाधीश फैसला करेगा, ऐसे में कराधान शक्तियों भी हमारे हाथ से निकल जायेगी।’ कर लगाना एक राजनीतिक मुद्दा है और इसे राजनीतिक दायरे में ही सुलझाया जाना चाहिये। इस अधिकार को न्यायालय के हाथ में नहीं सौंपा जाना चाहिये।

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