नई दिल्ली: कृषि क्षेत्र के लिए 9 लाख करोड़ रुपए की ऋण योजना के बेहतर तरीके से क्रियान्वयन पर सुझाव देने के लिए गठित सरकारी समिति ने सुझाव दिया है कि तीन लाख रुपए से अधिक के अल्पकालिक ऋण पर ब्याज छूट नहीं दी जानी चाहिए। समिति ने यह भी सुझाव दिया है कि सब्सिडी पूरी भुगतान अवधि के लिए दी जानी चाहिए न कि सिर्फ एक साल के लिए। कृषि मंत्रालय ने नाबार्ड के पूर्व चेयरमैन वी सी सारंगी की अध्यक्षता में फसल ऋण जरूरतमंद छोटे तथा सीमांत किसानों तक पहुंचाने और ब्याज छूट योजना का बेहतरीन उपयोग सुनिश्चित करने के लिए नौ सदस्यों की एक समिति का गठन किया है। ब्याज छूट की योजना के तहत किसानों को फिलहाल एक साल तक के लिए तीन लाख रुपए तक का अल्पकालिक ऋण सात प्रतिशत के ब्याज पर मिलता है। जो किसान इसे समय पर चुका देते हैं उन्हें यह रिण चार प्रतिशत ब्याज पर मिलता है। सरकार ने इस साल के बजट में कृषि ऋण लक्ष्य बढ़ाकर 9 लाख करोड़ रुपए कर दिया और चालू वित्त वर्ष में ब्याज सब्सिडी के लिए 15,000 करोड़ रुपए का आवंटन किया है। समिति ने हाल में सौंपी गई रिपोर्ट में कहा कि 2006-07 में ब्याज सब्सिडी योजना पेश करने के बाद कृषि ऋण प्रवाह बढ़ा है।
हालांकि, समिति ने इस कार्यक्रम को लक्षित समूह तक पहुंचाने के लिए कई सुझाव दिए हैं। इस रिपोर्ट के आधार पर मंत्रालय कैबिनेट नोट तैयार कर रहा है। सारंगी समिति ने अपने प्रमुख सिफारिशों में कहा कि ब्याज छूट योजना तीन लाख रपए प्रति किसान की अल्पकालिक फसल ऋण आवंटन सीमा के साथ बरकरार रखनी चाहिए। इसमें कहा गया, ‘यह सुविधा उन स्थितियों में उपलब्ध नहीं हो सकती जबकि फसल ऋण आवंटन तीन लाख रुपए से अधिक हो।’ सूत्रों ने बताया कि फिलहाल यदि आवंटित ऋण की राशि तीन लाख रुपए से अधिक है तो इस योजना के तहत किसानों को सिर्फ तीन लाख रुपए तक के ऋण पर ब्याज छूट मिलेगी। समिति ने सुझाव दिया है कि उन किसानों को ब्याज सब्सिडी प्रदान न की जाए जिन्हें तीन लाख रुपए से अधिक का ऋण लेते हैं। ऋण के बोझ से दबे कृषि क्षेत्र के संकट को कम करने के लिए समिति ने सुझाव दिया कि तय तरीख तक 12 महीने के बाद भी फसल ऋण पर ब्याज सब्सिडी मुहैया कराई जाए ताकि किसानों को कर्ज चुकाने के लिए साहूकारों से कर्ज न लेना पड़े। समिति ने कहा कि गन्ना और केले जैसी फसले हैं जो लंबी अवधि वाली फसल है इसलिए किसानों को साल भर के भीतर रिण भुगतान में मुश्किल होती है। ये सुझाव ऐसे वक्त आए हैं जबकि किसान संकट का सामना कर रहे हैं और देश के विभिन्न भागों में लगातार दो साल सूखे की स्थिति के कारण आय कम होने तथा रिणग्रस्तता के कारण किसानांे द्वारा आत्महत्या जैसे कदम उठाए जा रहे हैं।