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बर्लिन: कोरोना के बूस्टर डोज को लेकर फाइजर इंक और जर्मन पार्टनर कंपनी बायोएनटेक एसई ने हालिया में एक शोध किया है। इस शोध के तीसरे फेज के डेटा से पता चला कि दोनों डोज की कोरोना वैक्सीन लगाए जाने के बाद फिर से संक्रमण को लेकर बूस्टर डोज काफी प्रभावी है। कोरोना के डेल्टा वैरिएंट पर भी इस बूस्टर डोज का असर काफी प्रभावी देखा गया है।

दवा निर्माता कंपनियों ने कहा कि 16 वर्ष या उससे अधिक उम्र के 10,000 प्रतिभागियों में इसका परीक्षण किया गया। कोरोना से संबंधित बीमारियों के खिलाफ यह बूस्टर डोज 95.6 फीसद प्रभावशाली देखा गया। उस अवधि के दौरान प्रतिभागियों में डेल्टा वैरिएंट के भी लक्षण थे। अध्ययन में यह भी पाया गया कि बूस्टर डोज सुरक्षा को लेकर काफी अनुकूल है। फाइजर के सीईओ अल्बर्ट बौर्ला ने कहा कि ट्रायल के रिजल्ट से पता चलता है कि बूस्टर डोज लेने के बाद संक्रमण से अच्छी तरह से सुरक्षित रहा जा सकता है।

शोध की अधिक जानकारी देते हुए दवा निर्माताओं ने कहा कि अध्ययन में दूसरी खुराक और बूस्टर डोज के बीच का औसत समय लगभग 11 महीने का था।

शोध का हवाला देते हुए आगे कहा गया कि बूस्टर डोज में कोरोना के केवल पांच मामले थे, जबकि समूह में 109 लोगों को बूस्टर डोज दिया गया था। शोध के दौरान प्रतिभागियों की औसत आयु 53 वर्ष थी। 55.5 फीसद प्रतिभागी 16 से 55 साल के बीच के थे। 23.3 फीसद प्रतिभागी 65 साल से ऊपर के थे।

फाइजर ने एक अध्ययन का हवाला देते हुए यह भी कहा कि दो डोज वाले टीके की प्रभावशीलता समय के साथ कम हो जाती है, जिसमें दूसरी खुराक के चार महीने बाद 96 फीसद की प्रभावशीलत घटकर 84 फीसद दिखाई देती है। कुछ देश पहले ही बूस्टर डोज देने की योजना पर आगे बढ़ चुके हैं।

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