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काबुल: नई सरकार में प्रमुख पद पाने के लिए बरादर गुट और हक्कानी नेटवर्क के घमासान की वजह से तालिबान को सरकार का गठन तीन-चार दिन टालना पड़ा। इसी घमासान को शांत कराने के लिए पाकिस्तान को खुफिया एजेंसी प्रमुख जनरल फैज हमीद को काबुल भेजना पड़ा है।

दावा किया जा रहा है कि हक्कानी नेटवर्क के नेता अनस हक्कानी और खलील हक्कानी की मुल्ला बरादर और मुल्ला याकूब के साथ झड़प भी हुई है। हक्कानी नेटवर्क सरकार में बड़ी हिस्सेदारी और रक्षामंत्री का पद मांग रहा है, जबकि तालिबान इतना कुछ देने को तैयार नहीं है। इसी वजह से तालिबान सरकार का एलान नहीं कर सका है।

सैन्य आयोग के पद पर भी पेच 
बरादर और हक्कानी नेटवर्क के बीच विवाद लगातार बढ़ता जा रहा है। मुल्ला उमर के बेटे मुल्ला याकूब शक्तिशाली तालिबान सैन्य आयोग के प्रमुख की भूमिका निभाना चाहता है। उसका काम तालिबान के फील्ड कमांडरों के एक विशाल नेटवर्क की देखरेख करना होगा।

तालिबान सरकार में यह पद बेहद शक्तिशाली और सम्मानित माना जाता है।

चंदे की राशि पर भी झगड़ा 
तालिबान ने कबायली सरदारों से चंदे के रूप में बड़ी रकम एकत्रित की है। राशि का उपयोग अफगानिस्तान फतह के बाद होना था। अब काबुल पर भी तालिबान का कब्जा हो चुका है तो इस पैसे में हक्कानी नेटवर्क हिस्सा मांग रहा है। वहीं, याकूब एक पैसा भी हक्कानी को नहीं देना चाहता। 

दोहा दफ्तर की टीम से भी मुल्ला याकूब खफा
तालिबान के राजनीतिक नेतृत्व ने हक्कानी नेटवर्क को सरकार में कुछ अहम पद देने की हामी भी भरी थी। अनस हक्कानी को काबुल पर कब्जे के तुरंत बाद राजधानी की सुरक्षा का प्रभार भी सौंपा गया था। इस फैसले से मुल्ला याकूब काफी नाराज है। याकूब ने कहा है कि दोहा में विलासिता का जीवन जीने वाले नेता जमीन पर लड़ने में शामिल लोगों पर शर्तें नहीं थोप सकते हैं।

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