चेन्नई: मद्रास हाईकोर्ट ने शनिवार को मौजूदा प्रवासी संकट पर स्वत: संज्ञान लेते हुए केंद्र एवं तमिलनाडु सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि वे दोनों प्रवासी श्रमिकों की देखभाल करने में नाकाम रहीं। साथ ही तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि ‘प्रवासी श्रमिकों की दयनीय स्थिति कुछ और नहीं बल्कि एक मानव त्रासदी है’ और कहा कि यह देखकर कोई भी अपने आंसू नहीं रोक सकता। अदालत ने मौजूदा हालात से निपटने के नाकाफी उपायों पर केंद्र व राज्य सरकार को आड़े हाथों लिया और उन्हें प्रवासी श्रमिकों का राज्यवार डाटा उपलब्ध कराने का आदेश दिया। उन्हें 22 मई तक अपना-अपना पक्ष रखने का आदेश है।
न्यायमूर्ति एन. किरुबाकरन और आर. हेमलता ने कहा कि प्रवासी श्रमिकों को अपने मूल आवास तक पहुंचने के लिए कई दिनों तक पैदल चलते देखना दुखद है। इस क्रम में कई ने हादसों में अपनी जिंदगी गंवा दीं। सभी राज्यों को अपनी मानवीय सेवाओं को उन प्रवासी श्रमिकों तक पहुंचाना चाहिए था। इस दौरान अदालत ने महाराष्ट्र के औरंगाबाद में रेल से कटकर मारे गए 16 प्रवासी श्रमिकों का भी जिक्र किया।
उसने कहा कि पिछले एक महीने से मीडिया में दिखाई गई प्रवासी श्रमिकों की दयनीय स्थिति को देखकर कोई भी अपने आंसू नहीं रोक सकता।
अब तक 53,000 श्रमिकों को पहुंचाया पलानीस्वामी
कोर्ट की इस फटकार के बाद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एडापादी के. पलानीस्वामी ने प्रवासियों से ‘शिविरों में ही बने रहने’ और सरकार को उनकी मदद करने देने की अपील की। उन्होंने कहा, "हम आपको ट्रेनों से वापस भेजने के लिए अन्य राज्यों से बातचीत कर रहे हैं।" साथ ही बताया कि अब तक करीब 53,000 प्रवासी श्रमिकों को बिहार, ओडिशा, झारखंड, बंगाल और आंध्र प्रदेश वापस भेजा जा चुका है।
संकट पर स्वत: संज्ञान
मद्रास उच्च न्यायालय ने प्रवासी संकट पर स्वत: संज्ञान लिया है। अदालत ने यह आदेश महाराष्ट्र में फंसे तमिलनाडु के सैंकड़ों प्रवासी श्रमिकों के संबंध में दाखिल एक पूर्व याचिका पर दिया है। अदालत ने केंद्र सरकार से पूछा है कि क्या प्रत्येक राज्य के प्रवासी श्रमिकों से जुड़ा कोई डाटा उपलब्ध है और यह इंगित किया कि यह उन्हें पहचानने और उनके घर पहुंचाने में मदद करने के लिए अमूल्य होगा। उसने यह भी बताने को कहा कि अब तक कितने प्रवासी श्रमिक मारे गए हैं और वे किन राज्यों से थे एवं क्या उनके परिवारों को मुआवआ देने की कोई योजना है।
‘क्या पलायन कोरोना के प्रसार का एक कारण’
उसने उन प्रवासी श्रमिकों का भी डाटा मांगा है, जिन्हें रेलवे की विशेष ट्रेनों से घर पहुंचाया गया और साथ ही सरकार से पूछा कि क्या उसके पास अन्य श्रमिकों को सुरक्षित पहुंचाने की कोई योजना है। अदालत ने भी पूछा कि क्या महिलाओं एवं बच्चों सहित लाखों प्रवासियों का पलायन पूरे देश में कोविड-19 के प्रसार के कई कारणों में से एक है।
शीर्ष अदालत ने खारिज की याचिका
मद्रास उच्च न्यायालय की यह टिप्पणियां एक दिन पहले सर्वोच्च न्यायालय की ओर से उस याचिका को खारिज करने के बाद आई हैं, जिसमें लॉकडाउन के बीच बिना यातायात संसाधनों के सैंकड़ों किलोमीटर पैदल चले जा रहे लाखों प्रवासी श्रमिकों की सुध लेने की मांग की गई थी।जिस पर शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि राज्यों को तय करने दें। अदालत क्यों सुनवाई करे या फैसला ले? कौन पैदल चल रहा है और कौन नहीं, इसकी निगरानी करना अदालत के लिए नामुमकिन है।