भोपाल: कोरोना से लड़ने वाले वो योद्धा जो मरीजों की सैंपलिंग, टेस्टिंग से इलाज में जुटे थे उनके लिए अब सरकार के पास बजट नहीं है। कोविड में जब हम सब डरे हुए थे, तब स्वास्थ्य सेवाओं का जिम्मा अस्थायी चिकित्साकर्मियों ने संभाला। हालांकि अब राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने बजट न होने का हवाला देते हुए कोरोना काल में सेवाएं देने वाले डॉक्टरों सहित सभी अस्थायी कर्मचारियों को हटाने के आदेश जारी कर दिए हैं। ऐसा उस राज्य में जहां डॉक्टरों के आधे से ज्यादा पद खाली हैं, जहां सरकार ने हर साल दो लाख युवाओं को रोजगार देने, 5 साल में एक करोड़ युवाओं को रोजगार देने का वायदा किया है।
31 मार्च से पूरे मध्यप्रदेश के सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में रखे गए अस्थायी डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टॉफ घर पर बैठ गए। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन से आया आदेश साफ कहता है कि इनके मानेदय के लिए अब बजट नहीं है, ऐसे में इनकी सेवाएं समाप्त होती हैं। शरीर पर सफेद एप्रिन और गले में स्टेथेस्कोप साथ में ढेर सारी फिक्र। डॉ चंचल शर्मा कोरोना काल में अस्थायी चिकित्सक के तौर पर नियुक्त किए गए थे।
31 मार्च 2022 को उनके काम करने का आखिरी दिन था। भारी मन से अस्पताल से घर जा रहे डॉ. शर्मा कहते हैं "जब हाहाकार मचा था तो हमारे साथ लैब टेक्निशियन, आयुष डॉक्टर सब थे, लोग नहीं थे तब हम सेवाएं दे रहे थे, लेकिन अब दूध में पड़ी मक्खी की तरह सरकार ने हमें निकाल दिया हम इतना चाहते हैं कि सरकार संविदा में ही सही हमें कहीं रखे।"
ऐसे समय में जब लाशों को हाथ लगाने वाला भी कोई नहीं था, डॉ. सर्वेश नागर ने आयुष चिकित्सक के तौर पर अपनी सेवाएं आगर जिला अस्पताल को दीं थीं, लेकिन अब काम नहीं है। उन्होंने कहा, "टीस है हमने जिस परिस्थिति में काम किया सरकार ने हमारी कद्र नहीं समझी हमें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। परिवार परेशानी में है और मानसिक प्रताड़ना झेल रहा है।"
पहली लहर से लगातार लैब टैक्नीशियन राधेश्याम मालवीय सैंपल ले रहे थे, अब अस्पताल में भीड़ नहीं है और उनके पास नौकरी नहीं है। 31 मार्च को भी सैंपल बूथ में बैठे रहे। अब नहीं बैठ पाएंगे। राधेश्याम कहते हैं "ऐसे काल में काम किया जब कोई घर से निकलता नहीं था, ये वर्दी सफेद कफन था, 2 बजे तक सैंपल लेता था और फिर गाड़ी से भोपाल आता था। लोगों ने आस छोड़ दी थी। उन्होंने कहा कि पूरे मध्य प्रदेश में 8000 लोग हैं जो परेशान हैं।"
इस मामले में चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग कहते हैं "ये सुनिश्चित पहले से ही किया गया था जितने स्टाफ की जरूरत थी उतने लोग रखे गए थे, उनका युक्तियुक्तकरण (कर्मचारियों को दूसरे कामों में लगाना या छंटनी करना) किया जाएगा।"
ये हालात उस राज्य में हैं, जहां 21 घंटे 52 मिनट में ही 2.79 लाख करोड़ का बजट मंज़ूर हो जाता है। वो भी तब जब 2022-23 में राजकोषीय घाटा 52,511 करोड़ रु. अनुमानित है और जो राज्य के सकल घरेलू उत्पाद का 4.56 प्रतिशत है। बावजूद इसके सरकार ओंकारेश्वर में सिर्फ आदिगुरू शंकराचार्य की प्रतिमा पर 370 करोड़ रु. खर्चे करने, महाकाल मंदिर के विस्तार में 700 करोड़ से अधिक लगाने, 150 करोड़ से ज्यादा की लागत से नया जहाज खरीदने, सीएम के काफिले में 5 नई फॉर्च्युनर गाड़ियां और मंत्रियों के लिए नई इनोवा क्रिस्टा लाने की योजना बनाती है। वहां स्वास्थ्य विभाग के अधीन डॉक्टरों के 8,717 पद स्वीकृत हैं, जिसमें 4,042 पद खाली हैं। स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के तो 3618 पद स्वीकृत हैं, इनमें 2995 पद खाली हैं। जहां 10,380 करोड़ रु. का स्वास्थ्य बजट है यानी हर व्यक्ति की सेहत पर सालाना सरकारी खर्च लगभग 1428 रुपए है। 17000 लोगों पर एक डॉक्टर है।
एनएचएम कहता है इन चिकित्साकर्मियों की सेवाएं 89 दिनों के हिसाब से अस्थाई तौर पर ली गईं थीं, अब बजट नहीं तो सेवा खत्म, तर्क वाजिब है लेकिन जब हमारे हुक्मरान खुद पर खर्च करते हैं और जिस जनता के पैसों से सरकारी तिजोरी भरती है, उसके लिए ठन ठन गोपाल बन जाते हैं तब सवाल उठते हैं जो बिल्कुल गैर वाजिब नहीं।