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नई दिल्ली: पुणे पुलिस ने भीमा कोरेगांव मामले के दस्तावेज एनआईए को सौंपने से इंकार कर दिया है। राज्य गृहमंत्री अनिल देशमुख ने कहा है कि जबतक उनकी केंद्र सरकार से इसपर कोई औपचारिक बात नहीं होती तब तक राज्य की पुलिस एनआईए के साथ सहयोग नहीं करेगी। देशमुख ने कहा कि पुणे पुलिस को केंद्र की ओर से ऐसा कुछ नहीं कहा गया है कि मामला एलगार परिषद से एनआईए को सौंपा गया है। देशमुख ने हिंदुस्तान टाइम्स से बात करते हुए कहा कि- हमें मामले के एलगार परिषद से एनआईए को ट्रांस्फर किए जाने की खबर मीडिया से मिली है। हमें इस पर कोई आधिकारिक सूचना नहीं दी गई है। ऐसे में केंद्रीय एजेंसी के साथ सहयोग करना हमारे लिए संभव नहीं है।

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने इसपर कानूनी राय मांगी है जिसके बाद ही कोई फैसला होगा। राज्य सरकार ने एलगार परिषद जांच की समीक्षा शुरू कर दी थी और पुणे पुलिस द्वारा जांच के बारे में शिकायतें मिलने के बाद एक विशेष जांच दल (एसआईटी) विचाराधीन था। उप मुख्यमंत्री अजित पवार और राज्य के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने गृह मंत्रालय के अधिकारियों के साथ इसके लिए एक रिव्यू मीटिंग की थी।

बता दें कि केंद्र सरकार ने शुक्रवार को भीमा कोरेगांव मामला एलगार परिषद से एनआईए को ट्रांस्फर करने की घोषणा की थी। तब महाराष्ट्र सरकार ने इसका विरोध किया था।

राज्य के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने कहा कि केंद्र सरकार ने महाराष्ट्र सरकार को पूछे बिना यह केस एनआईए को सौंप दिया है। हम इसका विरोध करते हैं। वहीं, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस मामले पर कहा था कि, 'यह मामला महाराष्ट्र तक ही सीमित नहीं है। यह पूरे देश में फैला हुआ है। इसलिए यह बहुत ही सही फैसला है। केंद्र सरकार ने सही कदम उठाया है। इससे अर्बन नक्सली के चेहरे से नकाब उतरेगा।'

हाल ही में भीमा- कोरेगांव हिंसा मामले में आरोपी मिलिंद एकबोटे जांच आयोग के समक्ष पेश हुए, लेकिन गवाही देने से इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) जय नारायण पटेल के नेतृत्व वाला आयोग पुणे जिले में कोरेगांव भीमा युद्ध स्मारक के पास एक जनवरी 2018 को हुई जातिगत हिंसा के मामले में जांच कर रहा है।

-----क्या है भीमा-कोरेगांव केस? एक जनवरी 2018 को पुणे के पास भीमा-कोरेगांव लड़ाई की 200वीं वर्षगांठ पर एक समारोह आयोजित किया गया था, जहां हिंसा होने से एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। इतिहास में जाएं तो भीमा-कोरेगांव लड़ाई जनवरी 1818 को पुणे के पास हुई थी। यह लड़ाई ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना और पेशवाओं की फौज के बीच हुई थी। इस लड़ाई में अंग्रेज़ों की तरफ से महार जाति के लोगों ने लड़ाई की थी और इन्हीं लोगों की वजह से अंग्रेज़ों की सेना ने पेशवाओं को हरा दिया था। महार जाति के लोग इस युद्ध को अपनी जीत और स्वाभिमान के तौर पर देखते हैं और इस जीत का जश्न हर साल मनाते हैं।

जनवरी में भीमा-कोरेगांव में भी लड़ाई की 200वीं सालगिरह को शौर्य दिवस के रूप में मनाया गया। इस दिन लोग यह दिवस मनाने के लिए एकत्र हुए। भीम कोरेगांव के विजय स्तंभ में शांतिप्रूवक कार्यक्रम चल रहा था। अचानक भीमा-कोरेगांव में विजय स्तंभ पर जाने वाली गाड़ियों पर किसी ने हमला बोल दिया।

इसी घटना के बाद दलित संगठनों ने दो दिनों तक मुंबई समेत नासिक, पुणे, ठाणे, अहमदनगर, औरंगाबाद, सोलापुर सहित अन्य इलाकों में बंद बुलाया जिसके दौरान फिर से तोड़फोड़ और आगजनी हुई। इसके बाद पुणे के ज्वाइंट कमिश्नर ऑफ पुलिस रवीन्द्र कदम ने भीमा-कोरेगांव में दंगा भड़काने के आरोप में विश्राम बाग पुलिस स्टेशन में केस दर्ज किया और पांच लोगों को गिरफ्तार किया।

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