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नई दिल्ली: सबरीमाला मंदिर प्रबंधन ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि दस से 50 साल के आयुवर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी इसलिए है क्योंकि वे मासिकधर्म के कारण 41 दिन के व्रत की अवधि में ‘शुद्धता’ कायम नहीं रख सकतीं। इस पर न्यायाधीशों ने पूछा कि मासिक धर्म शुद्धता से कैसे संबंधित है। केरल में इस मंदिर का प्रबंधन संभाल रहे त्रावणकोर देवस्वाम बोर्ड ने दावा किया कि प्रतिबंध भेदभावपूर्ण नहीं है और यह ‘तार्किक वर्गीकरण’ पर आधारित है। बोर्ड की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता केके वेणुगोपाल ने न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ से कहा, ‘कोई लैंगिक भेदभाव नहीं है। यह तार्किक वर्गीकरण है जिसके द्वारा कुछ खास वर्ग की महिलाओं को अलग किया गया है।’ पीठ ने खास आयुवर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी के संदर्भ में पूछा, ‘इस वर्गीकरण का आधार क्या है?’ वेणुगोपाल ने कहा कि इस आयुवर्ग की लड़कियों और महिलाओं को अलग इसलिए किया गया है क्योंकि वे मासिक धर्म के कारण 41 दिन की व्रत की अवधि में शुद्धता बरकरार नहीं रख सकतीं। पीठ ने कहा, ‘क्या आप यह कहना चाहते हैं कि मासिक धर्म महिलाओं की शुद्धता से जुड़ा हुआ है? क्या आप शुद्धता के आधार पर अंतर कर रहे हैं। अब सवाल यह है कि क्या संवैधानिक सिद्धांत इसकी अनुमति देते हैं?’

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