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मुंबई: मुंबई में 6 दिसंबर 2002 से 13 मार्च 2003 के बीच हुए 3 धमाकों के मामले में पोटा कोर्ट ने दो को उम्रकैद, एक को ताउम्र कैद, चार को 10 साल और तीन को 2 साल की सजा सुनाई है। कोर्ट ने फ़रहान अब्दुल मलिक खोत और डॉ वाहिद अंसारी को उम्रक़ैद, मुजम्मिल अख्तर अब्दुल अंसारी को ताउम्र कैद, साक़िब अब्दुल हामिद नाचन, अतीफ नासिर मुल्ला, हसीब जुबेर मुल्ला और गुलाम अकबर खोताल को 10 साल की सजा और मोहम्मद कमील जमील शेख, नूर मोहम्मद अंसारी और अनवर अली जावेद अली को 2 साल की सजा सुनाई है। गौरतलब है कि वर्ष 2002 से 2003 के बीच मुंबई में हुए तीन बम धमाकों में 12 लोगों की मौत हो गई थी जबकि 139 लोग घायल हुए थे। पहला धमाका 6 दिसंबर 2002 को मुंबई सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर किया गया था जिसमें 27 लोग जख्मी हुए थे। 27 जनवरी 2003 को विले पारले रेलवे स्टेशन पर एक धमाका हुआ था जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी जबकि 32 अन्य घायल हो गए थे। तीसरा और अंतिम धमाका 13 मार्च 2003 को मुलुंद स्टेशन पर पहुंचते ही एक ट्रेन के लेडीज कोच में किया गया था। तीसरे धमाके में 90 लोग घायल हुए थे। तीनों धमाके अलग-अलग हुए थे लेकिन जांच में पता चला कि सिमी के एक ही मोड्यूल ने तीनों धमाकों को अंजाम दिया है इसलिए सभी मामलों को एक साथ जोड़कर मुकदमा चला।

तब पोटा कानून अस्तित्व में था इसलिये पोटा के तहत दर्ज उस मुक़दमे में कुल 16 आरोपियों के खिलाफ आरोपपत्र दायर कर मुकदमा चला। सिमी एक्टिविस्ट और पुराने कई मामलों से जुड़े साक़िब नाचन को धमाकों का मास्टर माइंड बताया गया। आरोपी आरिफ हुसैन सादिक हुसैन शैख़ को अदालत ने डिस्चार्ज कर दिया। जबकि आरोपी राशिद अहमद अब्दुल मलिक अंसारी और आरोपी मोहम्मद सैयद सादिक तुराब अली की मौत हो गई। बाकी बचे 13 में से 12 जमानत पर हैं। पकड़े गए ज्यादातर 8 साल की सजा काट चुके हैं और वर्तमान में जमानत पर हैं। मामले में 5 से ज्यादा आरोपी फरार हैं। जिनमे ताहेर और नूर मोहम्मद मलिक अंसारी ने पकड़े गए आरोपियों को बम बनाना सिखाया था। इन्होंने ठाणे में पडघा के पास महोली के पहाड़ पर ट्रेनिंग दी थी। पुलिस का दावा है कि इसी मोड्यूल ने ठाणे के एक वकील सहित 3 लोगों की हत्या की थी। जिसके लिए उनपर अलग से मामले चल रहे हैं। पुलिस के मुताबिक तीनों धमाकों के तार पाकिस्तान से जुड़े हैं क्योंकि धमाकों को अंजाम दिलाने में 2 पाकिस्तानी आतंकियों का हाथ था जिनमें एक अबू अनवर अली पाकिस्तानी सेना से जुड़ा हुआ था। दूसरा पाकिस्तानी अबु सुल्तान उर्फ़ फैज़ल खान उर्फ इरफ़ान था। इरफ़ान ने बंगलोर में कंप्यूटर ट्रेनिंग सेंटर भी खोल रखा था। इनके साथ जम्मू कश्मीर का मोहमद इक़बाल वाणी भी था। पुलिस की माने तो तीनों ही मुंबई और गुजरात में आतंकी कार्रवाई को अंजाम देने के इरादे से आए थे। वो कुछ दिन कल्याण में किसी जगह ठहरे थे। पडघा में जाकर साक़िब नाचन से भी मिले थे। 29 मार्च 2003 को मुंबई पुलिस की क्राइम इंटेलिजेंस यूनिट के एनकाउंटर स्पेस्लिस्ट प्रदीप शर्मा, सचिन वझे और दया नायक ने गोरेगांव हाईवे पर तीनो को एनकाउंटर में मार गिराया था। तलाशी में एक की जेब से डायरी मिली थी जिसमे साक़िब नाचन और उसके ग्रुप के नाम कोड वर्ड में लिखे थे। पुलिस का दावा है कि उसी डॉयरी के जरिये तीनों धमाकों का राज खुला और एक एक कर 16 आरोपी पकड़े गए। तीनों ही मुंबई में बम धमाकों के बाद गुजरात जाने की फ़िराक़ में थे वहां लालकृष्ण आडवाणी उनके निशाने पर थे।

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