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जयपुर: राजस्थान में विवादित अध्यादेश पर सियासी बवाल बढ़ता ही जा रही है। विवादित अध्यादेश के खिलाफ प्रदेश की वसुंधरा राजे सरकार को विधानसभा के भीतर और बाहर दोनों ही जगह विरोध का सामना करना पड़ रहा। इसके बाद मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने विवादित अध्यादेश को सेलेक्ट कमेटी को भेज दिया है।

बता दें कि इस अध्यादेश के खिलाफ कांग्रेस जहां विधानसभा के भीतर विरोध कर रही है, तो वहीं विधानसभा के बाहर पत्रकार विरोध मार्च निकाल नारेबाजी कर रहे हैं। मीडिया में चल रही खबरों की मानें तो राजे ने कैबिनेट के वरिष्ठ मंत्रियों से इस मसले पर बातचीत के बाद यह फैसला लिया।

इस फैसले के बाद बीजेपी नेता और राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने इस कदम का स्वागत किया। स्वामी ने इस बिल को विधान सभा की सेलेक्ट कमेटी को भेजे जाने को एक स्मार्ट मूव बताया है। राजे ने अपने लोकतांत्रिक स्वभाव का परिचय दिया है।

बता दें कि इस अध्यादेश के तहत राजस्थान में अब पूर्व व वर्तमान जजों, अफसरों, सरकारी कर्मचारियों और बाबुओं के खिलाफ पुलिस या अदालत में शिकायत करना आसान नहीं होगा। ऐसे मामलों में एफआईआर दर्ज कराने के लिए सरकार की मंजूरी अनिवार्य होगी। वहीं वरिष्ठ वकील एके जैन ने अध्यादेश के खिलाफ राजस्थान हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की है।

कांग्रेस ने काली पट्टी बांध किया था विरोध

कांग्रेसी विधायकों ने काली पट्टी बांधकर किया विरोध विधानसभा परिसर में इस अध्यादेश के विरोध में कांग्रेसी विधायकों ने मुंह पर काली पट्टी बांधकर विरोध किया। इस अध्यादेश का कई संगठन भी विरोध कर रहे हैं। नागरिक अधिकार समूह पीयूसीएल ने इसे रद्द करने की मांग की जबकि राज्य के गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया ने इस कदम का बचाव किया। कटारिया ने कहा कि यह अध्यादेश लोकप्रियता पाने के इरादे से सरकार के कामकाज में बाधा उत्पन्न करने वाले लोगों पर लगाम लगाने के लिए लाया गया है।

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