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जयपुर: सोमवार से शुरू हो रहे विधानसभा सत्र में राजस्थान सरकार एक ऐसा बिल लाने जा रही है जो एक तरह से सभी सांसदों-विधायकों, जजों और अफ़सरों को लगभग इम्युनिटी दे देगा। उनके ख़िलाफ़ पुलिस या अदालत में शिकायत करना आसान नहीं होगा। सीआरपीसी में संशोधन के इस बिल के बाद सरकार की मंज़ूरी के बिना इनके ख़िलाफ़ कोई केस दर्ज नहीं कराया जा सकेगा।

यही नहीं, जब तक एफआईआर नहीं होती, प्रेस में इसकी रिपोर्ट भी नहीं की जा सकेगी। ऐसे किसी मामले में किसी का नाम लेने पर दो साल की सज़ा भी हो सकती है। राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार ने एक अध्यादेश पारित किया है, जिसके अनुसार अब पूर्व और वर्तमान जजों, मजिस्ट्रेटों और सरकारी कर्मियों के खिलाफ पुलिस या कोर्ट में शिकायत करना आसान नहीं होगा।

ऐसे मामलों में प्राथिमिकी दर्ज कराने के लिए सरकार से स्वीकृति लेनी अनिवार्य होगी। सात सितंबर को पारित आपराधिक कानून (राजस्थान संशोधन) अध्यादेश, 2017 के अनुसार ड्यूटी के दौरान किसी जज या किसी भी सरकारी कर्मी की कार्रवाई के खिलाफ कोर्ट के माध्यम से भी प्राथमिकी दर्ज नहीं कराई जा सकती।

इसके लिए सरकार की स्वीकृति अनिवार्य होगी। हालांकि यदि सरकार स्वीकृति नहीं देती है तब 180 दिन के बाद कोर्ट के माध्यम से प्राथमिकी दर्ज कराई जा सकती है।

अध्यादेश के प्रावधानों में यह भी कहा गया है कि इस तरह के किसी भी सरकारी कर्मी, जज या अधिकारी का नाम या कोई अन्य पहचान तब तक प्रेस रिपोर्ट में नहीं दे सकते, जब तक सरकार इसकी अनुमति न दे।

अगर मंजूरी से पहले किसी भी पब्लिक सर्वेंट का नाम किसी प्रेस रिपोर्ट में आता है, तो ऐसे मामलों में 2 साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है।

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