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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों द्वारा कांवड़ मार्ग पर स्थित दुकानदारों को नामपट्टिका (नेमप्लेट) लगाने के आदेश पर अंतरिम रोक जारी रखी है। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के हलफनामे के बाद भी आदेश पर रोक बरकरार रखी है। कोर्ट ने उतराखंड और मध्य प्रदेश सरकार को एक हफ्ते में जवाब दाखिल करने का समय दिया है। यूपी सरकार ने हलफनामा दाखिल कर दिया। अब अगली सुनवाई 5 अगस्त को होगी।

यूपी सरकार ने भेदभाव की बात स्वीकार की है: याचिकाकर्ता के वकील

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि मुझे यूपी का जवाब आज सुबह मिला है। यूपी की तरफ से वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि यूपी ने अपना जवाब दाखिल कर दिया। उत्तराखंड ने कहा कि जवाब दाखिल करने के लिए दो हफ्ते का समय चाहिए। मध्य प्रदेश ने कहा कि उनके प्रदेश मे ऐसा नहीं हुआ सिर्फ उज्जैन म्युनिसिपल ने जारी किया था, लेकिन कोई दबाव नहीं डाला गया है। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि जवाब में यूपी सरकार ने स्वीकार किया है कि कम समय के लिए ही सही हमने भेदभाव किया है।

मुकुल रोहतगी ने कहा कि हम एकपक्षीय आदेश से पीड़ित हैं, जिसका जीवनकाल समाप्त हो जाएगा। अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि इस पर अभी भी समय रहते निर्णय लिया जा सकता है। पिछले 60 वर्षों से नाम नहीं मांगे गए। यूपी के हलफनामे में भेदभाव की बात स्वीकार की गई है, कहा गया है कि यह केवल अस्थायी है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने हलफनामा पढ़ा नहीं है। हमें कल रात को ही ये मिला है। तो इसे सभी जगह लागू किया जाना चाहिए, सिर्फ कुछ राज्यों में नहीं। पूरे भारत में इसे लागू करने का दावा पेश करें।

कोर्ट ने एकतरफा दिया आदेश: यूपी सरकार के वकील

यूपी सरकार के वकील ने कहा कि बोर्ड पर मालिक का नाम लिखने के लिए कहना गलत नहीं है, बल्कि कानून की भी आवश्यकता है। कोर्ट ने एकतरफा आदेश दिया है, जिससे हम सहमत नहीं है। उत्तराखंड के वकील ने कहा कि कानून के अनुसार, अनिवार्य रूप से प्रदर्शन किया जाना चाहिए। यात्राएं सालों से होती आ रही हैं। कुछ उप-नियम हैं, जिन्हें हम लागू कर रहे हैं, खास तौर पर कांवड़ियों के लिए हमने इस साल कोई उप-नियम जारी नहीं किया है। यह कहना गलत है कि मालिक का नाम प्रदर्शित करने के लिए कोई कानून नहीं है। मुकुल रोहतगी ने कहा कि उन्हें अदालत को यह दिखाना चाहिए था कि एक केंद्रीय कानून है। हमने कल निर्देश जारी किए हैं कि आपको यह कानून सभी पर लागू करना होगा।

हमें शिव भक्त कांवड़ियों के भोजन की पसंद का भी सम्मान करना चाहिए

एक अन्य हस्तक्षेपकर्ता के लिए वकील ने कहा कि हम भक्तों को दिक्कत हो रही है। नाम दुर्गा या सरस्वती ढाबा रखा गया है, तो हम मानकर चलते हैं कि शाकाहारी खाना होगा। उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि हमें शिव भक्त कांवड़ियों के भोजन की पसंद का भी सम्मान करना चाहिए। हस्तक्षेपकर्ता ने कहा कि अंदर जाने पर हमने पाया कि कर्मचारी अलग हैं। मांसाहारी भोजन परोसा जाता है। मैं अपने मौलिक अधिकार के बारे में चिंतित हूं। स्वेच्छा से यदि कोई प्रदर्शन करना चाहता है, तो उसे ऐसा करने की अनुमति होनी चाहिए। अंतरिम आदेश में इस पर रोक लगाई गई है।

नाम लिखने को मजबूर नहीं कर सकते: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमारा आदेश साफ है। अगर कोई अपनी मर्जी से दुकान के बाहर अपना नाम लिखना चाहता है, तो हमने उसे रोका नहीं है। हमारा आदेश था कि नाम लिखने के लिए मज़बूर नहीं किया जा सकता।

यूपी सरकार का हलफनामा

यूपी सरकार ने अपने जवाब मे कहा है कि राज्य द्वारा जारी निर्देश दुकानों और भोजनालयों के नामों से होने वाले भ्रम के बारे में कांवड़ियों की ओर से मिली शिकायतों के बाद किए गए थे। ऐसी शिकायतें मिलने पर पुलिस अधिकारियों ने तीर्थयात्रियों की चिंताओं को दूर करने और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए कार्रवाई की। यूपी सरकार ने कहा है कि राज्य ने खाद्य विक्रेताओं के व्यापार या व्यवसाय पर कोई प्रतिबंध या निषेध नहीं लगाया है (मांसाहारी भोजन बेचने पर प्रतिबंध को छोड़कर), और वे अपना व्यवसाय सामान्य रूप से करने के लिए स्वतंत्र हैं। ⁠मालिकों के नाम और पहचान प्रदर्शित करने की आवश्यकता पारदर्शिता सुनिश्चित करने और कांवड़ियों के बीच किसी भी संभावित भ्रम से बचने के लिए एक अतिरिक्त उपाय मात्र है।

 

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