नई दिल्ली: कांग्रेस ने रविवार को अपनी मांग दोहराई कि महिला आरक्षण विधेयक को 18 सितंबर से शुरू हो रहे संसद के विशेष सत्र के दौरान पारित किया जाना चाहिए। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने ट्विटर (अब एक्स) पर एक पोस्ट में कहा कि कांग्रेस कार्य समिति ने मांग की है कि इस विधेयक को संसद के पांच दिवसीय विशेष सत्र के दौरान पारित किया जाना चाहिए। गौरतलब है कि विधेयक 9 मार्च, 2010 को राज्यसभा में पारित हो चुका है।
उन्होंने कहा, 'राजीव गांधी ने पहली बार मई 1989 में पंचायतों और नगरपालिकाओं में एक तिहाई आरक्षण के लिए संविधान संशोधन विधेयक पेश किया था। यह लोकसभा में पारित हो गया लेकिन सितंबर 1989 में राज्यसभा में विफल हो गया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने अप्रैल 1993 में पंचायतों और नगरपालिकाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण के लिए संविधान संशोधन विधेयक फिर से पेश किया और दोनों विधेयक पारित हुए और कानून बन गए।
उन्होंने कहा, 'अब पंचायतों और नगरपालिकाओं में 15 लाख से अधिक निर्वाचित महिला प्रतिनिधि हैं।
कांग्रेस नेता ने कहा, 'प्रधानमंत्री के तौर पर डॉ. मनमोहन सिंह संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण के लिए संविधान संशोधन विधेयक लेकर आए थे। विधेयक 9 मार्च, 2010 को राज्यसभा में पारित किया गया। लेकिन इसे लोकसभा में नहीं लाया गया। उन्होंने कहा कि राज्यसभा में पेश या पारित किए गए विधेयक निष्प्रभावी नहीं होते हैं और महिला आरक्षण विधेयक अभी भी बहुत प्रासंगिक है।
रमेश ने कहा, 'कांग्रेस पार्टी पिछले नौ साल से मांग कर रही है कि राज्यसभा में पहले ही पारित महिला आरक्षण विधेयक अब लोकसभा में भी पारित होना चाहिए। कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) ने पुनर्गठन के बाद अपनी पहली बैठक में शनिवार को पारित एक प्रस्ताव में मांग की है कि महिला आरक्षण विधेयक को विशेष सत्र के दौरान पारित किया जाए। कांग्रेस की सर्वोच्च नीति निर्धारण इकाई की यह मांग ऐसे समय में आई है जब महिला आरक्षण विधेयक को पारित करने की फिर से मांग की जा रही है और अटकलें लगाई जा रही हैं कि इसे संसद के पांच दिवसीय विशेष सत्र के दौरान पेश किया जा सकता है। मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार के दौरान राज्यसभा में पारित किया गया विधेयक अब भी इसलिए प्रासंगिक है क्योंकि संसद का ऊपरी सदन कभी भंग नहीं होता है।