ताज़ा खबरें
'हाईकोर्ट के आदेश तक ट्रायल कोर्ट कोई कार्रवाई न करे': सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: चांद की सतह पर ऐतिहासिक लैंडिंग के बाद चंद्रयान-3 अपने मिशन में जुटा हुआ है। इसी क्रम में रोवर पर लगे लगे लेजर इन्ड्यूड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप (एलआईबीएस) उपकरण ने चांद की सतह पर ऑक्सीजन की पुष्टि की है। इसके अलावा चंद्रमा की सतह पर एल्युमीनियम (एआई), सल्फर (एस), कैल्शियम (सीए), आयरन (एफई), क्रोमियम (सीआर) और टाइटेनियम (टीआई) की मौजूदगी का भी का खुलासा हुआ है। चांद की सतह पर मैंगनीज (एमएन) और सिलिकॉन (सी) की उपस्थिति का भी पता चला है। इसरो के मुताबिक, हाइड्रोजन की मौजूदगी के संबंध में गहन जांच चल रही है।

इसरो ने बताया कि रोवर प्रज्ञान में लगे उपकरण से चंद्र-चट्टान को लेजर से जलाकर सल्फर सहित 9 धातु व खनिजों की पुष्टि की गई है। इस उपलब्धि को भविष्य के खगोल अभियानों व चंद्रमा पर बेस बनाने की महत्वाकांक्षा के लिए अहम माना जा रहा है। इसरो ने यह भी बताया कि रोवर पर लगे लेजरयुक्त ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोपी (लिब्स) उपकरण ने जो काम किया, वह अभियान में भेजे किसी भी उपकरण से करना कतई संभव नहीं था। 

चंद्र सतह पर उतर कर पहली बार उपकरण से यह प्रयोग किया गया।

दरअसल, रोवर पर लगे लेजरयुक्त ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोपी (लिब्स) उपकरण ने दक्षिणी ध्रुव के पास चंद्र सतह की मौलिक संरचना पर पहली बार इन-सीटू मूल्यांकन किया। ये एक वैज्ञानिक तकनीक है। इसरो के मुताबिक, किसी तत्व का विश्लेषण करने के लिए उस पर लिब्स उपकरण बेहद गहन लेजर पल्स छोड़ता है। उच्च ऊर्जा वाली लेजर पल्स तत्व पर कुछ देर फोकस की जाती है। लिब्स ने चंद्र चट्टान और मिट्टी पर यह लेजर पल्स छोड़ और उन्हें अत्यधिक गर्म किया। इससे तत्व का प्लाज्मा प्रकाश बना। यह ठोस, द्रव्य और गैस के बाद तत्व का चौथा स्वरूप माना जाता है। ब्रह्मांड का हर तत्व प्लाज्मा स्वरूप में होने पर विलक्षण वेव-लेंथ का प्रकाश छोड़ता है। इसी के आधार पर उसकी रासायनिक संरचना पहचानी जाती है। लिब्स ने तत्वों से निकल रहे इसी प्लाज्मा प्रकाश को संग्रहित किया। इसका स्पेक्ट्रोस्कोपी (प्रकाश के वर्ण-क्रम को मापना) विश्लेषण किया गया, जिसमें डिटेक्टर उपकरणों ने इनमें विभिन्न तत्वों की पुष्टि की। लिब्स को पेलोड को इलेक्ट्रो-ऑप्टिक्स सिस्टम (एलईओएस) इसरो, बेंगलुरु की प्रयोगशाला में विकसित किया गया है।

इस बीच, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने मंगलवार को चंद्रयान 3 के प्रज्ञान रोवर को लेकर एक ताजा अपडेट दिया है। इसरो ने अपने आधिकारिक एक्स (पूर्व में ट्विटर) एकाउंट पर पोस्ट कर बताया कि रोवर अब चंद्रमा के रहस्यों को उजागर करने की राह पर है।

इसरो इनसाइट ने एक्स पर पोस्ट कर कहा कि "नमस्कार पृथ्वीवासियों! यह चंद्रयान 3 का प्रज्ञान रोवर है। मुझे आशा है कि आप अच्छे होंगे। मैं हर किसी को बताना चाहता हूं कि मैं चंद्रमा के रहस्यों को उजागर करने के रास्ते पर हूं। मैं और मेरे दोस्त विक्रम लैंडर संपर्क में हैं। हम अच्छी तरह से हैं।

इससे पहले, 28 अगस्त को इसरो ने चंद्र सतह पर प्रज्ञान रोवर की राह में आए चार मीटर व्यास वाले गड्ढे के बारे में जानकारी दी थी। इसरो ने बताया कि इसके बाद रोवर को निर्देश भेजे गए। रोवर ने अपना रास्ता बदला और खतरे से बचते हुए नई दिशा में आगे बढ़ गया। यह घटना 27 अगस्त की है। इसरो ने कहा कि रोवर अब सुरक्षित रूप से नए रास्ते पर आगे बढ़ रहा है।

इसरो ने दो तस्वीरें जारी कीं

इसरो ने इससे जुड़ी दो तस्वीरें भी जारी की हैं। पहली तस्वीर में नेविगेशन कैमरे के जरिए यह दिखाई दे रहा है कि रोवर प्रज्ञान की राह में कैसे आगे की तरफ एक बड़ा गड्ढा मौजूद है। रोवर जब अपने स्थान से तीन मीटर आगे चला, तब वहां यह गड्ढा मौजूद था। दूसरी तस्वीर में नेविगेशन कैमरा बता रहा है कि कैसे रोवर ने बाद में रास्ता बदला और अब वह नए रास्ते पर आगे बढ़ रहा है।

चंद्रमा पर बड़े गड्ढे

चंद्रमा पर विशालकाय गड्ढों की अच्छी खासी संख्या है। गहरे गड्ढों में सदियों से सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंचा है। इन क्षेत्रों में तापमान माइनस 245 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है। चंद्रमा की सतह पर उल्कापिंड का गिरना, ज्वालामुखी फटना या भूगर्भ में किसी अन्य कारण से हुए विस्फोट के चलते ये विशालकाय आकार के गड्ढे बने हुए हैं।

चंद्रमा की सतह गर्म, 80 मिमी अंदर तापमान कम

इससे पहले चंद्रयान-3 के 'विक्रम' लैंडर में लगे चास्टे उपकरण ने चंद्रमा के तापमान से जुड़ी पहली जानकारी भेजी थी। इसके अनुसार चंद्रमा पर अलग-अलग गहराई पर तापमान में काफी अंतर है। चंद्र सतह जहां करीब 50 डिग्री सेल्सियस जितनी गर्म है, वहीं सतह से महज 80 मिमी नीचे जाने पर तापमान माइनस 10 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है। चंद्रमा की सतह एक ऊष्मारोधी दीवार जैसी है, जो सूर्य के भीषण ताप के असर को सतह के भीतर पहुंचने से रोकने की क्षमता रखती है।

सतह के नीचे पानी होने की संभावना

कुछ विशेषज्ञों का दावा है कि यह एक संकेत भी है कि चंद्र सतह के नीचे पानी के भंडार हो सकते हैं। इसरो ने रविवार को इस नई जानकारी के बारे में लिखा था कि 'विक्रम' लैंडर ने चंद्र सरफेस थर्मो फिजिकल एक्सपेरिमेंट यानी चैस्ट उपकरण ने दक्षिणी ध्रुव के निकट चंद्रमा की ऊपरी परत के तापमान की प्रोफाइल बनाई है। इसके जरिए चंद्रमा की सतह के तापीय व्यवहार को समझने में मदद मिल सकती है।

  • देश
  • प्रदेश
  • आलेख