नई दिल्ली: रेप-दुष्कर्म के बाद गर्भपात की इजाजत का मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा कदम उठाया है। कोर्ट ने 28 हफ्ते की गर्भवती महिला को गर्भपात की इजाजत दी है। मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट देखने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला लिया। रिपोर्ट के मुताबिक, महिला का गर्भपात किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि चिकित्सीय प्रक्रिया के बाद, यदि भ्रूण जीवित पाया जाता है, तो अस्पताल को भ्रूण के जीवित रहने को सुनिश्चित करने के लिए सभी सुविधाएं देनी होंगी। बच्चे को कानून के अनुसार गोद देने के लिए सरकार कानून के मुताबिक कदम उठाए।
सुनवाई के दौरान एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट पर सवाल उठाया और कहा कि शनिवार को सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने आदेश जारी कर दिया। देश में कहीं भी नहीं होता कि कोई अदालत अपने से बड़ी अदालत के खिलाफ आदेश जारी करे। इसके अलावा मुझे यह कहते हुए खेद है कि लिया गया दृष्टिकोण संवैधानिक दर्शन के विरुद्ध है? आप कैसे अन्यायपूर्ण स्थिति कायम रख सकते हैं और बलात्कार पीड़िता को गर्भधारण के लिए मजबूर कर सकते हैं? पीड़िता को आज या मंगलवार सुबह 9 बजे अस्पताल में ले जाएं।
25 साल की रेप पीड़िता ने लगाई थी गर्भपात की अर्जी
शनिवार को हुई विशेष सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट के रवैये पर चिंता जाहिर की थी। कोर्ट ने कहा था कि मामले के लंबित होने के कारण कीमती समय बर्बाद हो गया। अदालत ने मेडिकल बोर्ड से ताजा रिपोर्ट मांगी थी, यानि पीड़िता की एक बार फिर जांच की जाएगी। दुष्कर्म पीड़िता 25 साल की है। उसने गर्भपात के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई थी, जिस पर शनिवार को आनन-फानन में सुनवाई हुई थी। पीड़िता का दावा है कि चार अगस्त को गर्भ का पता चला। सात अगस्त को कोर्ट में अर्जी लगाई। कोर्ट ने बोर्ड बनाया और 11 अगस्त को रिपोर्ट आई। बोर्ड हमारी दलील के समर्थन में था, लेकिन हाईकोर्ट ने सरकार की नीति के हवाले से अर्जी को खारिज कर दिया था।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गुजरात हाई कोर्ट में क्या हो रहा है? हम इसकी सराहना नहीं करते। जस्टिस उज्ज्वल भुइयां ने भी आश्चर्य व्यक्त करते हुए पूछा कि उच्च न्यायालय को 19 अगस्त को स्वत: संज्ञान लेते हुए यह आदेश पारित करने की क्या जरूरत थी। जस्टिस नागरत्ना ने कहा, "किसी भी अदालत के किसी भी माननीय न्यायाधीश को अपने आदेश को उचित ठहराने की कोई आवश्यकता नहीं है।"
उच्च न्यायालय किसी बलात्कार पीड़िता पर अन्यायपूर्ण शर्त नहीं लगा सकता: जस्टिस
जस्टिस भुइयां ने कहा कि उच्च न्यायालय किसी बलात्कार पीड़िता पर अन्यायपूर्ण शर्त नहीं लगा सकता, जिससे उसे बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर होना पड़े। मुझे यह कहते हुए खेद है कि जो दृष्टिकोण अपनाया गया है, वह संवैधानिक दर्शन के खिलाफ है? आप कैसे अन्यायपूर्ण स्थिति कायम रख सकते हैं और बलात्कार पीड़िता को गर्भधारण के लिए मजबूर कर सकते हैं? सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता अदालत के सामने पेश हुए और पीठ से अनुरोध किया कि वह जज के बारे में टिप्पणी करने से बचें। साथ ही उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता को राहत दी जा सकती है।
एसजी मेहता ने अनुरोध किया कि कुछ गलतफहमी हुई है। वो सरकार की ओर से अनुरोध कर रहे हैं। जस्टिस नागरत्ना ने जवाब दिया कि हम कैसे नजरअंदाज कर सकते हैं? कोई भी न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पलटवार नहीं कर सकता। एसजी ने कहा कि आदेश स्पष्ट करने वाला प्रतीत होता है। मेहता ने फिर से पीठ से उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश के खिलाफ कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं करने का अनुरोध करते हुए कहा, "वह एक अच्छे जज हैं। ये टिप्पणियां हतोत्साहित करने वाली हो सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि टिप्पणियाँ किसी विशेष न्यायाधीश के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि जिस तरीके से निपटा गया, उस पर हैं, हालांकि आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वो कोई टिप्पणी करने से बच रहे हैं।