नई दिल्ली: केंद्र की मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिकाओं पर सोमवार को जवाबी हलफनामा दाखिल किया। गृह मंत्रालय ने हलफनामे में कहा है कि जम्मू-कश्मीर बीते तीन दशकों से आतंकवाद का दंश झेल रहा था। इसको खत्म करने के लिए अनुच्छेद 370 हटाना ही एकमात्र विकल्प था। केंद्र सरकार ने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ घाटी में जीरो-टॉलरेंस की नीति अपनाई जा रही है।
सरकार ने कहा कि इस ऐतिहासिक कदम ने क्षेत्र के आम आदमी पर अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया है। जम्मू-कश्मीर के लोग अब पर्याप्त आय के साथ शांति, समृद्धि और स्थिरता से जी रहे हैं। आजादी के बाद पहली बार इस क्षेत्र के निवासियों को वही अधिकार मिल रहे हैं, जो देश के अन्य हिस्सों के निवासियों को मिल रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप क्षेत्र के लोग मुख्यधारा में आ गए हैं। इस तरह अलगाववादी और राष्ट्र-विरोधी ताकतों के भयावह डिजाइन को अनिवार्य रूप से विफल कर दिया गया है।
कश्मीर की तस्वीर बदली
मंत्रालय ने हलफनामे में कहा, 'आज कश्मीर में स्कूल, कॉलेज, उद्योग सहित तमाम आवश्यक संस्थान सामान्य रूप से चल रहे हैं। प्रदेश में औद्योगिक विकास हो रहा है। कभी डरकर जी रहे लोग आज सुकून की जिंदगी जी रहे हैं।' केंद्र ने जानकारी दी है कि आतंकवादी-अलगाववादी एजेंडे के तहत वर्ष 2018 में 1767 संगठित पत्थर फेंकने की घटनाएं हुई, जो 2023 में मौजूदा तारीख तक जीरो हैं।
2023 में आज की तारीख तक कोई हड़ताल नहीं
गृह मंत्रालय ने आगे बताया, 'वर्ष 2018 में 52 बंद और हड़ताल हुईं, जो काफी दिनों तक चलीं। साल 2023 में आज की तारीख तक शून्य हैं। एंटी-टेरर एक्शन का रिजल्ट भी घाटी में देखने को मिला है, जिससे आतंकियों के इको-सिस्टम को भारी आघात लगा है।' सरकार ने बताया कि घाटी में आतंकी भर्ती में भी भारी गिरावट आई है। यह आंकड़ा वर्ष 2018 में 199 था, जो साल 2023 में आज की तारीख तक गिरकर 12 पहुंच गया है।
जम्मू-कश्मीर में शुरू हुईं कई योजनाएं
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने हलफनामे में कहा है कि अनुच्छेद 370 के हटाने के बाद जनता की बेहतरी के लिए कई योजनाएं शुरू की गई हैं। कश्मीर घाटी में औद्योगिक विकास के लिए केंद्र ने 28400 करोड़ रुपये का बजट रखा है। साथ ही 78000 करोड़ रुपये के निवेश के प्रस्ताव आ चुके हैं।
सुप्रीम कोर्ट 12 जुलाई को करेगा सुनवाई
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि अगर याचिकाकर्ता की मांगें मानी गईं, तो ये न केवल जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लोगों के हित के खिलाफ होगा, बल्कि भारत की सुरक्षा और संप्रभुता के खिलाफ भी होगा। क्योंकि यहां अत्यंत विचित्र भौगोलिक स्थिति है। विशिष्ट सुरक्षा चुनौतियां उत्पन्न होती हैं। सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की संविधान पीठ बुधवार 12 जुलाई को सुनवाई करेगी।