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(आशु सक्सेना) पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव का प्रचार अभियान अपने शबाब पर है। सूबों के चुनावों में भाजपा, कांग्रेस समेत अन्य क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने अपनी ताकत झोंक दी है। इन चुनावों में भाजपा खासकर पीएम मोदी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। क्योंकि इनमें से तीन राज्य भाजपा शासित हैं। इन राज्यों में जहां भाजपा को अपनी सत्ता बरकरार रखने की चुनौती है, वहीं दक्षिण के तेलंगाना और पूर्वोत्तर के मिजोरम में पार्टी के जनाधार को बढाने की भी चुनौती है।

दरअसल इन विधानसभा चुनाव के नतीजों का असर अगले साल 2019 के लोकसभा चुनाव पर पड़ना लाजमी है। फिलहाल जो खबरें आ रही हैं, वह भाजपा के पक्ष में नही है। आंकलन के मुताबिक भाजपा शासित मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में इस बार कड़ा मुकाबला माना जा रहा है। हांलाकि भाजपा के लिए राहत की बात यह है कि इन चुनावों भी भाजपा विरोधी मतों के बिखराव का लाभ उसे मिल सकता है। क्योंकि विपक्ष के महागठबंधन की कवायद इन चुनावों में परवान नही चढ़ सकी। नतीजतन, भाजपा विरोधी दल आमने सामने ताल ठोके हुए हैं।

बहरहाल, विधानसभा चुनावों में अगर भाजपा की रणनीति पर नज़र डालें, तो एक बात साफ झलक रही है कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने अपने स्टार प्रचारक पीएम मोदी को पिछले विधानसभा चुनावों की अपेक्षा थोड़ी कम तरजीह दी है। भाजपा ने प्रचार सामग्री यानि पोस्टर और होर्डिंग में पीएम मोदी की तस्वीर को प्रमुखता नही दी है। भाजपा शासित राज्यों की प्रचार सामग्री में सूबे के मुख्यमंत्री को प्रमुखता दी गई।

भाजपा की इस रणनीति से साफ है कि अगर इन राज्यों में भाजपा सत्ता से वंचित होती है, तो उसका ठीकरा प्रदेश नेतृत्व पर फोड़ा जा सके। भाजपा की इस रणनीति से एक बात साफ हो गई है कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को इस बात का एहसास हो गया है कि केंद्र की मोदी सरकार के साढ़े चार साल के कामकाज के बूते पर मतदाताओं को रिझाना आसान नही है।

दरअसल पांच राज्यों के चुनाव कई मायनों में बेहद महत्वपूर्ण हैं। एक तरफ जहां इन चुनावों के नतीजों से पीएम मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ तय होगा। वहीं यह चुनाव 2019 के भाजपा विरोधी विपक्ष के महागठबंधन की तस्वीर भी साफ कर देंगें। भाजपा शासित मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में महागठबंधन की धुरी सपा और बसपा पूरे दमखम से चुनाव मैदान में हैं। इन दोनों दलों की कोशिश है कि इन राज्यों से भाजपा के सत्ता से बेदखल होने की स्थिति में सरकार के गठन में उनकी अहम भूमिका हो, ताकि 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेेस के साथ सीटों के बंटवारे के वक्त उत्तर प्रदेश के बाहर इन राज्यों में भी हिस्सेदारी का दबाव बनाया जा सके।

2019 के लोकसभा चुनाव से पहले हो रहे पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा को स्थानीय मुद्दों के साथ ही केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ उपजे माहौल का भी सामना करना पड़ रहा है। पार्टी के स्टार प्रचारक पीएम मोदी यद्यपि इन राज्यों में चुनाव प्रचार कर रहे हैं। लेकिन वह अपनी चुनावी रैलियों में नोटबंदी, राफेल रक्षा सौदे और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर चुप हैं। उनका निशाना कांग्रेस के परिवारवाद तक सीमित है। यह बात दीगर है कि इन राज्यों में भाजपा के कदावर नेताओं के परिजनों को विशेष तरजीह दी गई है।

छत्तीसगढ़ की एक चुनावी रैली में पीएम मोदी ने नोटबंदी का ज़िक्र किया। लेकिन इससे कालेधन पर रोक, आतंकवाद और नक्सलवाद के खात्मे की बात नही की। उन्होंने कहा कि जो मां बेटे पैसों के हेरफेर में जमानत पर हैं, वह हमसे नोटबंदी के लाभ पूछ रहे हैं। पीएम मोदी का यह बयान हांलाकि गोदी मीडिया में प्रमुखता से प्रचारित किया गया। लेकिन किसी ने यह सवाल नही किया कि भ्रष्टाचार के आरोप के चलते कांग्रेस लोकसभा में 44 सीट पर सिमट गई थी। अब आरोप आप पर लग रहे हैं, आप उन पर अपना पक्ष क्यों नही रख रहे हैं।

वहीं कांग्रेस विधानसभा चुनाव में नोटबंदी, राफेल रक्षा सौदे और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ हमलावर रुख अख्तियार किये हुए है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी हर चुनावी रैली में इन मुद्दों को प्रमुखता से उठा रहे हैं। 

बहरहाल, पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजों का असर 2019 के लोकसभा चुनाव पर पड़ना लाजमी है। अगर भाजपा को इन राज्यों में झटका लगा, तो 2019 की राह पीएम मोदी के लिए काफी मुश्किल हो जाएगी। क्योंकि भाजपा शासित तीनों राज्यों का विधानसभा चुनाव नतीजा ना सिर्फ सूबे की सरकार के खिलाफ जनादेश होगा, बल्कि वह केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ जन भावनाओं को भी परिलक्षित करेगा।

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