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(जलीस अहसन) पिछले कुछ सालों से एक खास विचारधारा वाली भीड़ द्वारा लोगों को पीट पीट कर मार देने की बढ़ती घटनाओं पर गहरी चिंता और कड़ा रूख अपनाते हुए देश की शीर्ष अदालत ने सरकार को कटघरे में खड़ा करके उससे साफ साफ कहा है कि ‘‘भीडतंत्र को नया सामान्य चलन ‘‘ बनने की इजाज़त हरगिज़ नहीं दी जा सकती और वह इस चलन को रोकने और धर्मनिरपेक्ष लोकाचार सुनिश्चित करने के लिए फौरन कड़े से कड़े कानून बनाए। उच्चतम न्यायालय के कान इस बात से भी खड़े हुए कि इस भीड़तंत्र के जघन्य अपराध करने वालों को केन्द्रीय और राज्य सरकारों के मंत्री और नेता खुले आम संरक्षण देते पाए गए हैं।

पिछले लोकसभा चुनाव के प्रचार की शुरूआत से ही भीड़तंत्र द्वारा किन्हीं खास तबके के लोगों को मारने पीटने की घटनाएं शुरू हो गई थीं। बाद में गऊ रक्षा और कथित ‘लव जिहाद‘ के नाम पर ये घटनाएं बढती गईं। इस मानसिकता वाली भीड़ ने कानून अपने हाथ में लेकर कभी गरबा देखने वाले दलित को मार डाला तो कभी मरी गाय की खाल उतारने का पीढ़ियों से पेशा करने वालों को रस्सियों से बांध कर पीट पीट कर अधमरा कर दिया। हाल ही में गुजरात में एक दलित को खंभे से बांध कर सरियों से पीट पीट कर इसलिए मार दिया गया क्योंकि दलित होते हुए उसने आफिस का कचरा उठाने से मना कर दिया था।

भीड़तंत्र की मार पीट का शिकार पशु व्यापार करने वाले लोगों को भी बनाया गया। इनमें हिन्दू और मुसलमान दोनों इनका शिकार बने। इन गैर कानूनी हत्याओं के शिकार बने कुछ लोगों के नाम हैं: जयेश सोलंकी, मुकेश वानिया, पहलू खान, निलेश, रमेश, मुहम्मद अखलाक, इरशाद खान, शुएब चौधरी, सुशील जाटव और हाफिज जुनैद .............. ।

भीड़तंत्र द्वारा लोगों को बेरहमी से मार डालने की घटनाएं देश में छिट-पुट होती रहीं हैं लेकिन उनका स्वरूप गैर राजनीतिक होता था। दूर दराज के पिछड़े इलाकों में ‘‘ चुड़ैल ‘‘ या जादू-टोटका करने के नाम पर कभी कभार ये होती थीं। लेकिन अब चूंकि भीड़तंत्र की हत्याओं ने राजनीतिक रंग ले लिया है, इसलिए यह समाज और देश की एकता के लिए खतरा बन गई हैं। इस तरह की घटनाएं कांग्रेस और अन्य दलों के शासन में भी होती रहीं हैं लेकिन ऐसा करने वालों का सरकार या मंत्रियों की तरफ से कभी खुल्लम खुल्ला संरक्षण नहीं किया गया। लेकिन भीड़तंत्र द्वारा उत्तरप्रदेश में लोगों पर हमला करने वालों को एक केन्द्रीय मंत्री महेश शर्मा ने तिरंगा देकर सम्मानित किया तो जयंत सिन्हा ने झारखंड में ज़मानत पर छूटे ऐसे लोगों को फूल मालाएं पहनाईं। इन मंत्रियों का तर्क है कि अदालत द्वारा ज़मानत पर छोड़े जाने पर उन्होंने ऐसा किया। लेकिन वे पढ़े लिखे और मंत्री हैं, अतः उन्हें यह ज़रूर मालूम होगा कि ज़मानत पर छूटना दोषमुक्त होना नहीं होता है।

भारत के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्र की अध्यक्षता वाली उच्चतम न्यायालय की पीठ ने दो टूक शब्दों में केन्द्र और राज्य सरकारों से कहा है कि वे कानून व्यवस्था, शांति तथा धर्मनिरपेक्ष लोकाचार को बनाए रखने के अपने संवैधानिक दायित्व को पूरी तरह से निभाएं। अदालत ने केन्द्र और राज्य सरकारों को आदेश दिया है कि भीड़ द्वारा लोगो को पीट पीट कर मार देने वाली घटनाओं के मामलों को फास्ट ट्रैक कोर्ट में चलाया जाए और छह महीने के अंदर फैसला दिया जाए।

उसने यह भी कहा है कि उकसाने वाले गैर जिम्मेदाराना बयान, संदेश, वीडियो जारी करने या अफवाहें फैलाने वालों के विरूद्ध तुरंत एफआईआर दर्ज की जाए। भीड़तंत्र की हिंसा रोकने के लिए हर ज़िले में एसपी रैंक के एक अधिकारी को जावबदेह बनाने के अलावा केन्द्र और राज्यों को शीर्ष अदालत ने यह निर्देश भी दिए हैं कि वे रेडियो, टीवी और ऑन लाईन संदेश जारी करना शुरू करें कि भीड़ द्वारा कानून अपने हाथ में लेने वालों को सख्त सज़ा दी जाएगी।

भीड़ हिंसा की ताज़ा घटना का शिकार भगवाधारी समाज सुधारक और उदारवादी स्वामी अग्निवेश झारखंड में हुए हैं। उन पर कथित रूप से भारतीय जनता युवा मोर्चा और एबीवीपी के समर्थकों ने हमला किया। स्वामी अग्निवेश का कहना है कि ‘‘ हिन्दुत्व के उनके उदारवादी नज़रिए के चलते ‘‘ कथित भाजपा समर्थकों ने उन पर हमला किया है। देश में पिछले कुछ समय से भीड़तंत्र की हिंसा का जो माहौल बना है उसे देखते हुए उच्चतम न्यायाल का यह हस्तक्षेप स्वागत योग्य और बहुत सामायिक है, क्योंकि आने वाले लोकसभा चुनाव में ऐसी हिंसा के और बढ़ने की आशंका हैं।

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