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नई दिल्ली: हिंदी साहित्य के शीर्षस्थ आलोचक नामवर सिंह का पार्थिव शरीर बुधवार को यहां पंच तत्व में विलीन हो गया। लोदी रोड शवदाह गृह में शाम पौने पांच बजे साहित्य, मीडिया और शिक्षा-जगत की अनेक हस्तियों ने अश्रुपूरित आंखों से उन्हें अंतिम विदाई दी। सिंह के पुत्र विजय सिंह ने उन्हें मुखाग्नि दी। सिंह का मंगलवार रात यहां के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में निधन हो गया था। वह 92 साल के थे। वह एक महीने से कुछ अधिक समय से बीमार थे और बीते तीन हफ्ते से वेंटिलेटर पर थे।

सिंह का पार्थिव शरीर बुधवार दोपहर तकरीबन 3:30 बजे लोदी रोड शवदाह गृह लाया गया, जिसे लोगों के अंतिम दर्शन के लिए तकरीबन एक घंटे तक रखा गया। इस दौरान हिंदी साहित्य, शिक्षा जगत, पत्रकारिता और सियासत से जुड़ी अनेक हस्तियों ने उन्हें श्रद्धांजिल अर्पित की। सिंह को यहां श्रद्धांजलि अर्पित करने वाले साहित्यकारों में अशोक वाजपेयी, विश्वनाथ त्रिपाठी, निर्मला जैन, मैनेजर पांडेय, सुधीश पचौरी, शंभूनाथ सिंह, पुरुषोत्तम अग्रवाल, मंगलेश डबराल, अशोक चक्रधर, सुरेंद्र शर्मा, अपूर्वानंद, विजेंद्र त्रिपाठी, गीताश्री आदि शामिल थे।

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तरफ से भी पुष्पांजलि अर्पित की गई। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष रामबहादुर राय और साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवास राव ने भी सिंह को श्रद्धांजलि दी। वेद प्रताप वैदिक, ओम थानवी, रवीश कुमार और हेमंत शर्मा समेत मीडिया जगत की हस्तियों ने भी सिंह को अंतिम विदाई दी। सिंह की कोरियाई शिष्या ऊ जो किम और कुछ अन्य विदेशी छात्र-छात्राएं भी मौजूद थे । भाकपा, माकपा, साहित्य अकादेमी और हिंदी अकादमी, दिल्ली समेत अनेक संस्थानों के प्रतिनिधियों ने भी सिंह के पार्थिव शरीर पर पुष्प अर्पित किए।

अपनी लेखनी से साहित्य को नए आयाम देने वाले नामवर सिंह का जन्म 28 जुलाई 1926 को वाराणसी के जीयनपुर गांव में हुआ था, जो अब चंदौली जिले में है। उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा हासिल की। पीएचडी की डिग्री भी वहीं से ली। 1953 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय में ही व्याख्याता के पद पर अस्थायी नियुक्ति से उनके अध्यापन का सिलसिला शुरू हुआ, जो सागर विश्वविद्यालय, जोधपुर विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय तक जारी रहा। वह राजा राममोहन राय लाइब्रेरी फाउंडेशन के अध्यक्ष और महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलाधिपति भी रहे।

उन्होंने साहित्यिक जीवन की शुरुआत कविता लिखने से की, लेकिन बाद में वह आलोचना में रम गए और हिंदी साहित्य में आलोचना को एक नया आयाम दिया। बकलम खुद, आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियां, छायावाद, इतिहास और आलोचना, कहानी नई कहानी, कविता के नए प्रतिमान, दूसरी परंपरा की खोज, आलोचना और विचारधारा तथा वाद विवाद संवाद उनकी प्रमुख कृतियां हैं। कविता के नए प्रतिमान पर उन्हें 1971 में साहित्य अकादेमी का पुरस्कार प्रदान किया गया। सिंह ने हिंदी की दो पत्रिकाओं ‘जनयुग’ और ‘आलोचना’ का संपादन भी किया।

शोक-श्रद्धांजलि 

भारतीय भाषाओं की ताकतवर आवाज थे नामवर  

दूसरी परंपरा की खोज करने वाले नामवर जी का जाना साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। उन्होंने आलोचना के जरिये हिंदी साहित्य को नई दिशा दी। -नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री 

हिंदी साहित्य में नए प्रतिमान स्थापित करने वाले शीर्षस्थ समालोचक डॉ. नामवर सिंह के निधन से गहरा दुःख हुआ। उनका जाना केवल हिंदी ही नहीं अपितु सभी भारतीय भाषाओं के साहित्य के लिए बहुत बड़ा आघात है। रामनाथ कोविंद, राष्ट्रपति 

डॉ. नामवर सिंह का जाना हिंदी साहित्य जगत एवं हमारे समाज के लिए अपूरणीय क्षति है। हिंदी भाषा ने अपना एक बहुत बड़ा साधक और सेवक खो दिया है। -राजनाथ सिंह, गृह मंत्री

नामवर सिंह के निधन से भारतीय भाषाओं ने अपनी एक ताकतवर आवाज खोज दी है। समाज को सहिष्णु, जनतांत्रिक बनाने में उन्होंने जिंदगी लगा दी। हिंदुस्तान में संवाद को बहाल करना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी। -राहुल गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष  

प्रख्यात साहित्यकार व समालोचक नामवर सिंह ने आलोचना के माध्यम से हिंदी साहित्य को नए आयाम दिए। उनका देहांत हिंदी साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। -अशोक गहलोत, मुख्यमंत्री, राजस्थान 

नामवर जी के निधन से हिंदी साहित्य जगत में हुई रिक्तता को भर पाना मुश्किल है| हिंदी आलोचना में उनका योगदान सदैव शोधार्थियों और समाज का मार्गदर्शन करता रहेगा। -सचिन पायलट, उपमुख्यमंत्री, राजस्थान

 नामवर सिंह का निधन हिंदी साहित्य के लिए अपूरणीय क्षति है। हिंदी साहित्य जगत में उनका अमूल्य योगदान चिरस्मरणीय रहेगा।  -वसुंधरा राजे, पूर्व मुख्यमंत्री, राजस्थान 

डॉ. नामवर सिंह का न सिर्फ हिंदी साहित्य की दुनिया में अहम योगदान था बल्कि शिक्षण के क्षेत्र में भी उनका खासा योगदान रहा। उनके निधन से न सिर्फ हिंदी साहित्य बल्कि शिक्षण के क्षेत्र में भी अपूरणीय क्षति हुई है। - नीतीश कुमार, मुख्यमंत्री, बिहार 

डॉ. नामवर सिंह का साहित्य की दुनिया में बहुत विशेष स्थान था। उनका काम और उनका योगदान, उनके जाने के बाद भी कई पीढ़ियों को प्रभावित करेगा। -सीताराम येचुरी, महासचिव, माकपा   

 

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